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विचार लो कि मर्त्य (मनुष्य , सब प्राणियों में बुद्धि बल से श्रेष्ठ प्राणी ) हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो (इस प्रकार की मृत्यु को प्राप्त करो) कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु(अच्छी मृत्यु) तो वृथा(व्यर्थ, बेकार) मरे, वृथा जिए(जीवित रहे),
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके (स्वयं के लिए जीवन नहीं जीता) लिए।
वही पशु-प्रवृत्ति(जानवरों जैसा स्वभाव/ गुण) है कि आप आप ही चरे (खाए, खुद का लाभ सोचे),
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे(जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
उसी उदार (कंजूस न हो, भला करनेवाला, सहृदय ) की कथा(कहानी) सरस्वती बखानती (वर्णन करती है)
उसी उदार से धरा(भूमि) कृतार्थ(धन्य होना) भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव (जीवंत) कीर्ति (यश) कूजती(मधुर ध्वनि हर दिशा में व्याप्त होती है);
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि (सारा संसार) पूजती(आदर देता है, पूजा करता है)।
अखंड(कभी समाप्त न होनेवाला) आत्म भाव(एक होने का भाव) जो असीम(विशाल) विश्व में भरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
क्षुधार्त(भूख मिटाने के उद्देश्य से) रंतिदेव(राजा रंतिदेव) ने दिया करस्थ(हाथ का) थाल भी,
तथा दधीचि(एक ऋषि) ने दिया परार्थ(दूसरों की भलाई हेतु) अस्थिजाल(अपनी हडि्डयों का समूह)भी।
उशीनर(एक स्थान का नाम ) क्षितीश(राजा, राजा का नाम है शिवि ) ने स्वमांस (अपना ग़ोश्त/मांस) दान भी किया,
उशीनर(एक स्थान का नाम ) क्षितीश(राजा, राजा का नाम है शिवि ) ने स्वमांस (अपना ग़ोश्त/मांस) दान भी किया,
सहर्ष (प्रसन्नतापूर्वक) वीर कर्ण ने शरीर-चर्म (शरीर का चमड़ा जो कि अभेद्य कवच था) भी दिया।
अनित्य(जो सदा न रहती हो) देह(शरीर) के लिए अनादि(जो सदा रहता हो) जीव(आत्मा) क्या डरे?
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
सहानुभूति (दुःख को समान अनुभव करने का भाव) चाहिए, महाविभूति(सबसे बड़ी सम्पदा) है यही;
वशीकृता(वश में) सदैव (हमेशा) है बनी हुई स्वयं मही(धरती)।
विरुद्धवाद(विरोध के विचार) बुद्ध का दया-प्रवाह(दया की भावना के बहाव) में बहा,
विनीत(नम्रता के ) लोकवर्ग(संसार के लोग) क्या न सामने झुका रहा?
अहा!(अच्छे का सूचक) वही उदार(खुले दिल का) है परोपकार(दूसरों का भला) जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
रहो न भूल के कभी मदांध (अहंकार में अंधे) तुच्छ(हीन /महत्त्वहीन) वित्त(धन) में,
सनाथ(अपने स्वामी से संरक्षित) जान(समझ) आपको(स्वयं को) करो न गर्व (अभिमान) चित्त(हृदय, मन) में।
अनाथ (जो अपने स्वामी से संरक्षित नहीं ऐसा) कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ(तीनों लोकों के स्वामी अर्थात् परमेश्वर) साथ हैं,
दयालु(कृपालु) दीनबंधु (असहायों की सहायता करनेवाले) के बड़े विशाल हाथ हैं(असीम सहायक)।
अतीव (बहुत ही) भाग्यहीन है अधीर(व्याकुल, बेचैन) भाव जो करे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
अनंत अंतरिक्ष (सीमाहीन ब्रह्मांड) में अनंत(अनगिनत) देव हैं खड़े,
समक्ष(सामने) ही स्वबाहु(अपने सहायता हाथ) जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े।
परस्परावलंब (एक दूसरे को सहारा देते हुए) से उठो तथा बढ़ो सभी,
अभी अमर्त्य-अंक(अमरता की गोद में, मर्त्य यानि मनुष्य, अमर्त्य यानि जो मनुष्य न हो अर्थात् देवता) में अपंक(निष्कलंक, बिना किसी बुराई का पात्र बने) हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे(पूर्ण हो),
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
‘‘मनुष्य मात्र बंधु है’’ (सभी मानव आपस में भाई या मित्र हैं) यही बड़ा विवेक (ज्ञान) है,
पुराणपुरुष(पुराणों में जिसे परमपुरुष कहा गया है) स्वयंभू (जो स्वयं प्रकट हुआ) पिता (सृष्टि का निर्माता) प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के (किये जाने वाले कार्यों के अनुसार) अवश्य बाह्य भेद (बाहरी विभिन्नताएँ) हैं,
परंतु अंतरैक्य(भीतर में एक हुए/ एकाकार हुए) में प्रमाणभूत(मात्रा में समान भूत यानि पंचतत्व, साक्षी) वेद(ज्ञान) हैं।
अनर्थ है कि बंधु (भाई या मित्र) ही न बंधु की व्यथा हरे(पीड़ा दूर करे),
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
चलो अभीष्ट(इच्छित, चाहे गए) मार्ग(पथ, रास्ता) में सहर्ष (प्रसन्नता सहित) खेलते हुए,
विपत्ति(कठिनाई), विघ्न(रुकावट) जो पड़े उन्हें ढकेलते(हटाते) हुए।
घटे न हेलमेल(मिलनसारिता, प्रेमभाव) हाँ, बढ़े न भिन्नता(दुराव) कभी,
अतर्क(बहस से रहित) एक पंथ(एक ही धर्म) के सतर्क (चौकन्ने,सावधान ) पंथ (मार्गी, यात्री ) हों सभी।
तभी समर्थ भाव(काम करने की शक्ति होना) है कि तारता हुआ तरे(अन्यों को दुःखों से मुक्त करता हुआ स्वयं मुक्त हो)
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे (जो दूसरे मनुष्यों के लिए अपना जीवन त्याग दे)।।
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आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh Part-2 for Class 10 CBSE