kathputali

पुली

           - भवानीप्रसाद मिश्र 



 

कठपुतली

गुस्से से उबली

बोली – ये धागे

क्यों हैं, मेरे पीछे-आगे?

 

इन्हें तोड़ दो

मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।

सुनकर बोलीं और-और

कठपुतलियाँ

कि हाँ,

बहुत दिन हुए

हमें अपने मन के छंद छुए।

मगर

पहली कठपुतली सोचने लगी-

ये कैसी इच्छा

मेरे मन में जगी?

 

सरलार्थ समझने के लिए संकेत

 

कठपुतलियाँ निर्जीव होती हैं इसलिए आत्मनिर्भर नहीं होतीं। उनका नियंत्रण दूसरे के हाथ में होता है। ऐसे में यदि उनमें अपने बन्धनों से छुटकारा पाने का विचार आ जाए और वह अन्य मित्रों से कहे  तो विचार के नए होने और आत्मनिर्भर होने की इच्छा से वे भी ऐसा करना चाहेंगी। पर, यहाँ प्रश्न उनके आत्मनिर्भर होने की योग्यता का है। जब स्वयं में किसी कार्य को करने की योग्यता नहीं हो तो वह नेता बनकर अपने साथ-साथ दूसरे के जीवन को भी संकट में डाल देता है। पहली कठपुतली को इसी कारण अपनी योग्यता और किये जानेवाले कार्य को लेकर संदेह पैदा हो जाता है।



*****************************