HIMALAYA KI BETIYAAN

हिमालय की बेटियाँ 

अभी तक मैंने उन्हें दूर से देखा था। बड़ी गंभीर, शांत, अपने आप में खोई हुई लगती थीं। संभ्रांत1 महिला की भाँति वे प्रतीत होती थीं। उनके प्रति मेरे दिल में आदर और श्रद्धा के भाव थे। माँ और दादी, मौसी और मामी की गोद की तरह उनकी धारा2 में डुबकियाँ लगाया करता।

परंतु इस बार जब मैं हिमालय के कंधे पर चढ़ा तो वह कुछ और रूप में सामने थीं। मैं हैरान3 था कि यही दुबली-पतली गंगा, यही यमुना, यही सतलुज समतल मैदानों में उतरकर विशाल कैसे हो जाती हैं! इनका उछलना और कूदना, खिलखिलाकर लगातार हँसते जाना, इनकी यह भाव-भंगी4, इनका यह उल्लास5 कहाँ गायब हो जाता है मैदान में जाकर? किसी लड़की को जब मैं देखता हूँ, किसी कली6 पर जब मेरा ध्यान अटक जाता है, तब भी इतना कौतूहल7 और विस्मय8 नहीं होता, जितना कि इन बेटियों की बाललीला देखकर!

1.  सभ्य, सलीकेवाली

2. बहाव, लहर

3. आश्चर्यचकित

4. हाव-क्षाव

5. खुशी

6. फूल की डोडी

7. उत्सुकता

8. आश्चर्य

कहाँ ये भागी जा रही है? वह कौन लक्ष्य है जिसने इन्हें बेचैन कर रखा है? अपने महान पिता का विराट9 प्रेम पाकर भी अगर इनका हृदय अतृप्त10 ही है तो वह कौन होगा जो इनकी प्यास मिटा सकेगा! बरफ़ जली नंगी पहाड़ियाँ, छोटे-छोटे पौधों से भरी घाटियाँ, बंधुर अधित्यकाएँ11, सरसब्ज उपत्यकाएँ12 -ऐसा है इनका लीला निकेतन13! खेलते-खेलते जब ये ज़रा दूर निकल जाती हैं तो देवदार, चीड़, सरो, चिनार, सफ़ेदा, कैल के जंगलों में पहुँचकर शायद इन्हें बीती बातें याद करने का मौका मिल जाता होगा। कौन जाने, बुड्ढा हिमालय अपनी इन नटखट बेटियों के लिए कितना सिर धुनता होगा14! बड़ी-बड़ी चोटियों से जाकर पूछिए तो उत्तर में विराट मौन15 के सिवाय उनके पास और रखा ही क्या है?

9. असीम, बहुत

10. असंतुष्ट

11. पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि

12. हरीभरी घाटियाँ

13. घर

14. पछतावा करना

सिंधु और ब्रह्मपुत्र-ये दो ऐसे नाम हैं जिनके सुनते ही रावी, सतलुज, व्यास, चनाब, झेलम, काबुल (कुभा), कपिशा, गंगा, यमुना, सरयू, गंडक, कोसी आदि हिमालय की छोटी-बड़ी सभी बेटियाँ आँखों के सामने नाचने लगती हैं। वास्तव में सिंधु और ब्रह्मपुत्र स्वयं कुछ नहीं हैं। दयालु हिमालय के पिघले हुए दिल की एक-एक बूंद न जाने कब से इकट्ठा हो-होकर इन दो महानदों16 के रूप में समुद्र की ओर प्रवाहित17 होती रही है। कितना सौभाग्यशाली है वह समुद्र जिसे पर्वतराज हिमालय की इन दो बेटियों का हाथ पकड़ने का श्रेय मिला!

16. ये दो पुरुषवाची हैं इसलिए नद कहा जाता है| स्त्रीवाची नदी कहलाती है|  

 

17. बहती हैं

 

जिन्होंने मैदानों में ही इन नदियों को देखा होगा, उनके खयाल में शायद ही यह बात आ सके कि बूढ़े हिमालय की गोद में बच्चियाँ बनकर ये कैसे खेला करती हैं। माँ-बाप की गोद में नंग-धडंग होकर खेलनेवाली इन बालिकाओं का रूप पहाड़ी आदमियों के लिए आकर्षक भले न हो, लेकिन मुझे तो ऐसा लुभावना18 प्रतीत हुआ वह रूप कि हिमालय को ससुर और समुद्र को उसका दामाद कहने में कुछ भी झिझक नहीं होती है।

कालिदास19 के विरही20 यक्ष21 ने अपने मेघदूत22 से कहा था-वेत्रवती (बेतवा) नदी को प्रेम का प्रतिदान23 देते जाना, तुम्हारी वह प्रेयसी तुम्हें पाकर अवश्य ही प्रसन्न होगी। यह बात इन चंचल नदियों को देखकर मुझे अचानक याद आ गई और सोचा कि शायद उस महाकवि को भी नदियों का सचेतन24 रूपक पसंद था। दरअसल25 जो भी कोई नदियों को पहाड़ी घाटियों और समतल आँगनों के मैदानों में जुदा-जुदा शक्लों में देखेगा, वह इसी नतीजे पर पहुँचेगा।

18. मन भावक

19. संस्कृत के महान कवि जिनके विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं– ‘अभिज्ञानशाकुन्तल’, ‘मेघदूतऔर हर्षचरितम्

20. प्रेयसी के वियोग में दुखी

21. देवताओं की एक जाति

22. बादल रूपी दूत

23. अपना प्रेम देते जाता अर्थात् बरसते जाना

24. जीवन से पूर्ण, सजीव

25. वास्तव में, सच में

 

काका कालेलकर26 ने नदियों को लोकमाता कहा है। किंतु माता बनने से पहले यदि हम इन्हें बेटियों के रूप में देख लें तो क्या हर्ज़ है? और थोड़ा आगे चलिए...इन्हीं में अगर हम प्रेयसी की भावना करें तो कैसा  रहेगा? ममता का एक और भी धागा है, जिसे हम इनके साथ जोड़ सकते हैं। बहन का स्थान कितने कवियों ने इन नदियों को दिया है। एक दिन मेरी भी ऐसी भावना हुई थी। थो-लिङ् (तिब्बत) की बात है। मन उचट गया था, तबीयत ढीली थी। सतलज के किनारे जाकर बैठ गया। दोपहर का समय था। पैर लटका दिए पानी में। थोड़ी ही देर में उस प्रगतिशील जल ने असर डाला। तन और मन ताजा हो गया तो लगा मैं गुनगुनाने

26. एक साहित्यकार

27. संसार की माता

28. अड़चन, हानि

 

जय हो सतलज बहन तुम्हारी1

लीला अचरज बहन तुम्हारी2

हुआ मुदित मन हटा खुमारी3

जाऊँ मैं तुम पर बलिहारी4

तुम बेटी यह बाप हिमालय5

चिंतित पर, चुपचाप हिमालय6

प्रकृति नटी के चित्रित पट पर7

अनुपम अद्भुत छाप हिमालय8

जय हो सतलज बहन तुम्हारी!9

1. सतलज बहन! तुम्हारी जय हो

2. सतलज बहन तुम्हारे कार्य अद्भुत हैं

3. थकान दूर हुईं, मन प्रसन्न हुआ

4. मैं तुम पर अपनी श्रद्धा-प्रेम समर्पित करता हूँ

5. तुम पुत्री हो, यह हिमालय तुम्हारा पिता है

6. हिमालय चुप हैं, कुछ चिंता में है,

7. लगातार करतब दिखनेवाली प्रकृति के पर्दे पर

8. अद्भुत हिमालय के समान दूसरा नहीं है

9. सतलज बहन! तुम्हारी जय हो




























































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