2. लाख की चूड़ियाँ

Lac ki chudiyaan


सारे गाँव में बदलू मुझे सबसे अच्छा आदमी लगता था क्योंकि वह मुझे सुंदर-सुंदर लाख (एक प्रकार का पदार्थ जिसे कीड़े बनाते हैं; यह बैंगल्स बनाने के काम आता है)   की गोलियाँ बनाकर देता था। मुझे अपने मामा के गाँव जाने का सबसे बड़ा चाव(रुचि) यही था कि जब मैं वहाँ से लौटता था तो मेरे पास ढेर सारी गोलियाँ होतींरंग-बिरंगी गोलियाँ जो किसी भी बच्चे का मन मोह लें (भा जाएँ)  | 

वैसे तो मेरे मामा के गाँव का होने के कारण मुझे बदलू को 'बदलू मामाकहना चाहिए था परंतु मैं उसे बदल मामान कहकर बदल काका कहा करता था जैसा कि गाँव के सभी बच्चे उसे कहा करते थे। बदलू का मकान कुछ ऊँचे पर बना था। मकान के सामने बड़ा-सा सहन(आँगन) था जिसमें एक पुराना नीम का वृक्ष लगा था। उसी के नीचे बैठकर बदलू अपना काम किया करता था। बगल में भट्टी दहकती(जलती) रहती जिसमें वह लाख पिघलाया करता। सामने एक लकड़ी की चौखट(लकड़ी का चौकोर पट्टा) पड़ी रहती जिस पर लाख के मुलायम होने पर वह उसे सलाख के समान पतला करके चूड़ी का आकार देता। पास में चार-छह विभिन्न आकार की बेलननुमा मुँगेरियाँ (लकड़ी की बनी बेलन की बनावट वाली वस्तु)  रखी रहतीं जो आगे से कुछ पतली और पीछे से मोटी होती। लाख की चूड़ी का आकार देकर वह उन्हें मुँगेरियाँ पर चढ़ाकर गोल और चिकना बनाता और तब एक-एक कर पूरे हाथ की चूड़ियाँ बना चुकने के पश्चात वह उन पर रंग करता।

बदलू यह कार्य सदा ही एक मचिये(चौकी, पीढा) पर बैठकर किया करता था जो बहुत ही पुरानी थी। बगल में ही उसका हुक्का रखा रहता जिसे वह बीच-बीच में पीता रहता। गाँव में मेरा दोपहर का समय अधिकतर बदलू के पास बीतता। वह मुझे 'ललाकहा करता और मेरे पहुँचते ही मेरे लिए तुरंत एक मचिया मँगा देता। मैं घंटों बैठे-बैठे उसे इस प्रकार चूड़ियाँ बनाते देखता रहता। लगभग रोज ही वह चार-छह जोड़े (समूह) चूड़ियाँ बनाता। पूरा जोड़ा बना लेने पर वह उसे बेलन पर चढ़ाकर कुछ क्षण चुपचाप देखता रहता मानो वह बेलन न होकर किसी नव-वधू (नई ब्याहता, नव-विवाहित स्त्री) की कलाई हो।

बदलू मनिहार (चूड़ियाँ बनानेवाला) था। चूड़ियाँ बनाना उसका पैतृक पेशा(विरासत में मिला व्यवसाय) था और वास्तव में वह बहुत ही सुंदर चूड़ियाँ बनाता था। उसकी बनाई हुई चूड़ियों की खपत(माल की बिक्री) भी बहुत थी। उस गाँव में तो सभी स्त्रियाँ उसकी बनाई हुई चूड़ियाँ पहनती ही थी आस-पास के गाँवों के लोग भी उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। परंतु वह कभी भी चूड़ियों को पैसों से बेचता न था। उसका अभी तक वस्तु विनिमय(Barting system –वस्तुओं के आदान-प्रदान के माध्यम से व्यवसाय; आज हर देश की मुद्रा होती है जिसके माध्यम से चीजें खरीदी-बेची जाती हैं ) का तरीका था और लोग अनाज के बदले उससे चूड़ियाँ ले जाते थे। बदलू स्वभाव से बहुत सीधा था। मैंने कभी भी उसे किसी से झगड़ते नहीं देखा। हाँशादी-विवाह के अवसरों पर वह अवश्य जिद पकड़ जाता था। जीवन भर चाहे कोई उससे मुफ़्त चूड़ियाँ ले जाए परंतु विवाह के अवसर पर वह सारी कसर निकाल लेता था। आखिर सुहाग के जोड़े (पति के होने की निशानी)का महत्त्व ही और होता है। मुझे याद हैमेरे मामा के यहाँ किसी लड़की के विवाह पर जरा-सी किसी बात पर बिगड़ गया था और फिर उसको मनाने में लोहे लग गए (बहुत मेहनत करनी पड़ी) थे। विवाह में इसी जोड़े का मूल्य इतना बढ़ जाता था कि उसके लिए उसकी घरवालों को सारे वस्त्र मिलतेढेरों अनाज मिलताउसको अपने लिए पगड़ी मिलती और रुपये जो मिलते सो अलग।

यदि संसार में बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो वह थी काँच की चूड़ियों से। यदि किसी भी स्त्री के हाथों में उसे काँच की चूड़ियाँ दिख जाती तो वह अंदर-ही-अंदर कुढ़ उठता (खीजना, चिढ़ना, दुखी होना) और कभी-कभी तो दो-चार बातें भी सुना देता।।

मुझसे तो वह घंटों बातें किया करता। कभी मेरी पढ़ाई के बारे में पूछताकभी मेरे घर के बारे में और कभी यों ही शहर के जीवन के बारे में। मैं उससे कहता कि शहर में सब काँच की चूड़ियाँ पहनते हैं तो वह उत्तर देता, "शहर की बात और हैलला! वहाँ तो सभी कुछ होता है। वहाँ तो औरतें अपने मरद(पति)  का हाथ पकड़कर सड़कों पर घूमती भी हैं और फिर उनकी कलाइयाँ नाजुक होती हैं न! लाख की चूड़ियाँ पहन तो मोच (अंग के जोड़ का इधर-उधर होना) न आ जाए।

कभी-कभी बदलू मेरी अच्छी खासी खातिर (स्वागत सत्कार) भी करता। जिन दिनों उसकी गाय के दूध होता वह सदा मेरे लिए मलाई बचाकर रखता और आम की फसल में तो में रोज़ ही उसके यहाँ से दो-चार आम खा आता। परंतु इन सब बातों के अतिरिक्त जिस कारण वह मुझे अच्छा लगता वह यह था कि लगभग रोज ही वह मेरे लिए एक-दो गोलियाँ बना देता।

मैं बहुधा(प्राय:) हर गर्मी की छुट्टी में अपने मामा के यहाँ चला जाता और एक-आध महीने वहाँ रहकर स्कूल खुलने के समय तक वापस आ जाता। परंतु दो-तीन बार ही में अपने मामा के यहाँ गया होऊँगा तभी मेरे पिता की एक दूर के शहर में बदली हो गई और एक लंबी अवधि(समय) तक मैं अपने मामा के गाँव न जा सका। तब लगभग आठ-दस वर्षों के बाद जब मैं वहाँ गया तो इतना बड़ा हो चुका था कि लाख की गोलियों में मेरी रुचि नहीं रह गई थी। अत: गाँव में होते हुए भी कई दिनों तक मुझे बदलू का ध्यान न आया। इस बीच मैंने देखा कि गाँव में लगभग सभी स्त्रियाँ काँच की चूड़ियाँ पहने हैं। विरले ही हाथों में मैंने लाख की चूड़ियाँ देखीं। तब एक दिन सहसा मुझे बदलू का ध्यान हो आया। बात यह हुई कि बरसात में मेरे मामा की छोटी लड़की आँगन में फिसलकर गिर पड़ी और उसके हाथ की काँच की चूड़ी टूटकर उसकी कलाई में घुस गई और उससे खून बहने लगा। मेरे मामा उस समय घर पर न थे। मुझे ही उसकी मरहम-पट्टी करनी पड़ी। तभी सहसा मुझे बदलू का ध्यान हो आया और मैंने सोचा कि उससे मिल आऊँ। अत: शाम को मैं घूमते-घूमते उसके घर चला गया। बदलू वहीं चबूतरे पर नीम के नीचे एक खाट पर लेटा था।

नमस्ते बदलू काका! मैंने कहा।

नमस्ते भइया! उसने मेरी नमस्ते का उत्तर दिया और उठकर खाट पर बैठ गया। परंतु उसने मुझे पहचाना नहीं और देर तक मेरी ओर निहारता(प्रशंसभरी आँखों से देखना) रहा। | 

मैं हैं जनार्दनकाका! आपके पास से गोलियाँ बनवाकर ले जाता था। मैंने अपना परिचय दिया।

बदलू फिर भी चुप रहा। मानो वह अपने स्मृति पटल(यादों के पर्दे) पर अतीत के चित्र (बीते हुए समय की तस्वीर) उतार रहा हो और तब वह एकदम बोल पड़ाआओ-आओलला बैठो! बहुत दिन बाद गाँव आए।

हाँइधर आना नहीं हो सकाकाका! मैंने चारपाई पर बैठते हुए उत्तर दिया।

कुछ देर फिर शांति रही। मैंने इधर-इधर दृष्टि दौड़ाई। न तो मुझे उसकी मचिया ही नज़र आईन ही भट्टी।

आजकल काम नहीं करते काकामैंने पूछा। 

नहीं ललाकाम तो कई साल से बंद है। मेरी बनाई हुई चूड़ियाँ कोई पूछे तब तो। गाँव-गाँव में काँच का प्रचार हो गया है। वह कुछ देर चुप रहाफिर बोलामशीन युग है न यहलला! आजकल सब काम मशीन से होता है। खेत भी मशीन से जोते जाते हैं और फिर जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती हैलाख में कहाँ संभव है?

लेकिन काँच बड़ा खतरनाक होता है। बड़ी जल्दी टूट जाता है। मैंने कहा। नाजुक(कोमल ) तो फिर होता ही है लला! कहते-कहते उसे खाँसी आ गई और वह देर तक खाँसता रहा।

मुझे लगा उसे दमा(अस्थमा) है। अवस्था के साथ-साथ उसका शरीर ढल चुका था। उसके हाथों पर और माथे पर नसें उभर आई थीं। | जाने कैसे उसने मेरी शंका भाँप ली (संदेह समझ गया)और बोला, “दमा नहीं है मुझे। फसली खाँसी है। यही महीने-दो-महीने से आ रही है। दस-पंद्रह दिन में ठीक हो जाएगी।"

मैं चुप रहा। मुझे लगा उसके अंदर कोई बहुत बड़ी व्यथा(दुःख, पीड़ा) छिपी है। मैं देर तक सोचता रहा कि इस मशीन युग ने कितने हाथ काट दिए(बेरोज़गार कर दिया) हैं। कुछ देर फिर शांति रही जो मुझे अच्छी नहीं लगी।

आम की फसल अब कैसी हैकाकाकुछ देर पश्चात(थोड़ी देर बाद) मैंने बात का विषय बदलते हुए पूछा। | 

अच्छी है ललाबहुत अच्छी हैउसने लहककर उत्तर दिया और अंदर अपनी बेटी को आवाज दीअरी रज्जोलला के लिए आम तो ले आ। फिर मेरी ओर मुखातिब(देखकर) होकर बोलामाफ़ करना ललातुम्हें आम खिलाना भूल गया था।

नहींनहीं काका आम तो इस साल बहुत खाए हैं। 

वाह-वाहबिना आम खिलाए कैसे जाने दूँगा तुमको?

मैं चुप हो गया। मुझे वे दिन याद हो आए जब वह मेरे लिए मलाई बचाकर रखता था।

गाय तो अच्छी है न काकामैंने पूछा। 

गाय कहाँ हैलला! दो साल हुए बेच दी। कहाँ से खिलाता

इतने में रज्जोउसकी बेटीअंदर से एक डलिया(छोटी टोकरी ) में ढेर से आम ले आई। यह तो बहुत हैं काका! इतने कहाँ खा पाऊँगामैंने कहा।

वाह-वाह! वह हँस पड़ाशहरी ठहरे न! मैं तुम्हारी उमर(उम्र) का था तो इसके चौगुने आम एक बखत(वक़्त, समय) में खा जाता था।

आप लोगों की बात और है। मैंने उत्तर दिया। अच्छाबेटीलला को चार-पाँच आम छाँटकर दो। सिंदूरी (हल्के गुलाबी लाल) वाले देना। देखो लला कैसे हैंइसी साल यह पेड़ तैयार हुआ है।

रज्जो ने चार-पाँच आम अंजुली(दोनों हथेलियों को मिलाकर बना स्थान) में लेकर मेरी ओर बढ़ा दिए। आम लेने के लिए मैंने हाथ बढ़ाया तो मेरी निगाह एक क्षण के लिए उसके हाथों पर ठिठक गई। गोरी-गोरी कलाइयों पर लाख की चूड़ियाँ बहुत ही फब(सुन्दर लगना) रही थीं।

बदलू ने मेरी दृष्टि देख ली और बोल पड़ायही आखिरी जोड़ा बनाया था जमींदार साहब की बेटी के विवाह पर। दस आने पैसे मुझको दे रहे थे। मैंने जोड़ा नहीं दिया। कहाशहर से ले आओ।।

मैंने आम ले लिए और खाकर थोड़ी देर पश्चात चला आया। मुझे प्रसन्नता हुई कि बदलू ने हारकर भी हार नहीं मानी थी। उसका व्यक्तित्व(मनुष्य होने की भावना, Personality) काँच की चूड़ियों जैसा न था कि आसानी से टूट जाए।

 

- कामतानाथ

आभार : NCERT