तकनीकी विकास से ही अच्छे दिन आ सकते हैं ।- पक्ष

takniki Vikas se hi achchhe din Aa sakte hain

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

मैं सदन की राय से सहमत हूँ कि तकनीकी विकास से ही अच्छे दिन सकते हैं  

मान्यवर, संसार का समस्त चक्र परमात्मा ने काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्या, भोग, लालसा के तानेबाने में ही बुना है। बड़ी अजीब बात लगती है पर यह जीवन की सच्चाई है कि यह तानाबाना ही मानव जीवन के विकास का आधार है, उसके द्वारा की जा रही नई खोजों का आधार है अन्यथा हमारा जीवन कन्दराओं से कभी निकल ही नहीं पाता। मान्यवर, जीवन में मानव के द्वारा प्रत्येक उपयोग की जाने वाली वस्तु के पीछे आवश्यकता का ही इतिहास छिपा है। मानव द्वारा बनाई गई हमारे आस पास की सभी छोटी-बड़ी वस्तुएँ किसी किसी तकनीक का ही परिणाम है। जिसकी खोज आवश्यकता को पूरा करने के रूप में हुई है। वर्तमान में विकास के सन्दर्भ तकनीकी योगदान को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक मानव जीवन के व्यक्तिगत  आवश्यकता को पूरा करने वाली वस्तुओं के विकास के सम्बन्ध में और दूसरा  देश के विकास के सम्बन्ध में। जब अच्छे दिनों की बात हम करते हैं तो उसका सीधा सम्बन्ध हमारे  देश और  देशवासियों के जीवन स्तर में सुधार आने से लिया जाता है।

मान्यवर, तकनीक पैदा होती है विज्ञान से; विज्ञान पैदा होता है चिन्तन से; चिन्तन पैदा होता है सन्देह से;  सन्देह पैदा होता है जिज्ञासा की  शिक्षा से। सन्देह है तो ज्ञान का वृक्ष के निर्माण होगा। सन्देह है तो नए रहस्यों पर से परदा उठेगा, सन्देह है तो  ज्ञान के द्वार खुलेंगे, सन्देह है तो मानव सभ्यता का विकास होगा, सन्देह है तो तकनीक का विकास होगा और वह मानव सहचरी बन उसके जीवन को बेहतर बनाने में सहयोग देगी।

मान्यवर, आज जो  देश तकनीकी दृष्टि से समृद्ध है वही उन्नत है; आज जिस  देश के नागरिक नई-नई संभावनाओं की, नई खोजों की तलाश में जुटे हुए हैं वह देश विकास की नई सीढ़ियाँ चढ़ रहा है। आज प्रत्येक देश प्राचीन  अंधविश्वासों और रूढ़ियों से विमुख होकर वैज्ञानिक चिंतन के सहारे तर्क पूर्ण  उत्तर को खोजने में लगा है ताकि मानव के जीवन के स्तर को सुधारा जा सके; अपने उत्पादों का पेटेंट कराकर  विश्व के बाजार में उसे बेचकर अपने  देश की आर्थिक स्थिति को और अधिक अच्छा बनाया जा सके।

मान्यवर, क्या तकनीकी विकास आर्थिक रूप से सम्पन्न होने का रास्ता नहीं है; क्या तकनीकी विकास मानव जीवन के स्तर में सुधार लाने में योगदान नहीं देता; क्या तकनीकी विकास मानव जीवन को सरलता की ओर नहीं लेकर जाता; क्या तकनीकी विकास हमारे कार्य को बेहतर बनाने में सहयोग नहीं देता क्या आज भी आप बन्दूकों और तोपों का सामना तलवार और भालों से करना पसन्द करेंगे ? क्या आज भी यात्रा के लिए गाड़ियों के स्थान पर पैदल चलना या पशुओं का सहारा लेना पसन्द करेंगे ? क्या आज भी आप चिकित्सा के लिए काम में ली जाने वाले पुराने औजारों तरीकों से अपना इलाज करवाना पसन्द करेंगे ? मान्यवर, विकास पुराने को छोड़कर नए का स्वागत है और इस नए में ही अच्छे दिन का आगमन है।  आज का अच्छा दिन कल और अच्छा तो हो सकता है पर बुरा नहीं हो सकता।

मान्यवर, तकनीक है तो तर्क है; तर्क है तो तकनीक है। तकनीक है, तो विकास है; विकास है तो तकनीक है। तकनीक हैं तो सुविधाएँ हैं और सुविधाएँ हैं तो तकनीक हैं। तकनीक है तो मोबाइल, कम्पयूटर, विमान, गाड़ियाँ हैं; अच्छे-अच्छे कपड़े हैं; तकनीक है तो इयर फोन है; तकनीक है तो बैंकों का लेन-देन है; तकनीक है तो स्वास्थ्य है; तकनीक है तो हमें एक-दूसरे का महत्व पता है; तकनीक है तो देश का उत्थान है; तकनीक है तो  शिक्षा की किताबें हैं; तकनीक है तो अभिव्यक्ति की कलाएँ हैं; तकनीक है तो जीवन उत्सव हैं; तकनीक हैं तो जागर्ति है कोई दो - राय नहीं कि तकनीक से दुनिया बेहतर बनती है।

मान्यवर, अंत में इतना ही कहना चाहूँगा -

माना कि तकनीक भावनाओं में नहीं बहती,
माना की तकनीक प्रेम का महत्व नहीं समझती,
पर,
उसी ने आदमी का वक्त साधा है;
तकनीक ने जीवन को सँवारा है, सजाया है
मुझे तो बस यही याद है कि जब-जब रोया हूँ माँ ने अपनी गोद से चिपकाया है
और मेरा मन बहलाने के लिए झुनझुना बजाया है।
चौंकिए मत,
वह भी तो एक इजाद है जिसने मेरा मन बहलाया है।

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तकनीकी विकास से ही अच्छे दिन सकते हैं - विपक्ष 

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

मैं सदन की राय से सहमत  नहीं हूँ कि तकनीकी विकास से ही अच्छे दिन सकते हैं

हमारे  देश की समस्याएँ अलग प्रकार की हैं। हर  देश की समस्याएँ अलग-अलग होती हैं। वे उसके समक्ष चुनौतियाँ बनकर खड़ी होती हैं।  हमारे समक्ष चुनौतियाँ हैं  देशवासियों में आई  चारित्रिक गिरावट की, बढ़ती आबादी की, बढ़ती महँगााई की, बढ़ते बेरोजगारों की, घटते संसाधनों की, घटते जल-स्तर की और भी जाने कितनी ही शायद तीन मिनट तो मेरे इन्हें गिनाने में ही निकल जाएँगे। जब तक हमारा  देश इन समस्याओं से निबटना नहीं सीख जाता तब तक अच्छे दिन नहीं सकते इसमें कोई दो-राय नही है।

जब भरे बाजार अस्मत का सौदा हो जाता है, भरे बाजार किसी का खंजर किसी के सीने के आरपार हो जाता है, जब बेटा ही दूध का हत्यारा निकलता है, जब भाई-भाई का कातिल कहलाता है तब कैसे सोच सकता हूँ कि तकनीकी विकास से अच्छे दिन सकते हैं? नल खुला छोड़ दो क्यों की पानी फ्री है; दिन में भी खंभों पर लाइट जली छोड़ दो क्योंकि सरकारी है; गेंहू खुले में पड़ा है भीगने दो, खराब होने दो क्योंकि सरकार का है, मान्यवर जब तक इस सोच में बदलाव नहीं होगा कोई तकनीकी विकास अच्छे दिन नहीं ला सकता है।

मान्यवर, जिस  देश में काम करके कमाने की अपेक्षा भीख माँगना बेहतर समझते हों; दिखावे के चक्कर में करोड़ों रुपए फूँक देना नाक ऊँची रखने का पर्याय समझा जाता हो; हड़ताल, नारेबाजी, बंद, ट्रेन रोकना, पटरियाँ उखाड़ना, तोड़फोड़ करना, आगजनी करना, लूटमार करना आदि अनेक कार्य न्याय पाने के लिए किए जाते हों, अस्पतालों आदि जैसे तमाम सरकारी इमारतों की दीवारों पर पान की पीकें मारना या थूकना सम्मान की बात माना जाता हो वहाँ तकनीकी विकास से अच्छे दिन नहीं सकते।

मान्यवर, तकनीकी विकास अन्य विकास के रास्तों की भाँति जीवन को बेहतर बनाने की एक प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इसमें कोई दो-राय नहीं है कि इसके माध्यम से जीवन को बहुत अच्छा बनाया जा सकता है। पर, तकनीकी विकास के लिए किसी भी देश का मूल ढाँचा व्यवस्थित होना चाहिए और यह मूल ढाँचा हमारे यहाँ पर व्यवस्थित नहीं है। मान्यवर, सुख-सुविधाओं से भरा स्वस्थ एवं सम्पन्न जीवन कौन नहीं जीना चाहता है ?  पश्चिम के आविष्कारों के पीछे यह धारणा काम करती है कि बैठे-बैठे सरलता से सब कुछ हो जाए। और हमारे  देश में यह धारणा काम करती है कि बैठे-बैठे सब कुछ मिल जाए, पाने के लिए कुछ करना पड़े। मान्यवर, फुर्सत तो बहुत थी मेरे पास  देश के लिए पर पेट भर गया तो नींद गईइस वर्ग में रखे जानेवालों की भी कमी नहीं है। यह भी एक समस्या है। इन सब के रहते कैसे कहूँ कि तकनीकी विकास से अच्छे दिन सकते हैं।

मान्यवर, आवश्यकता यह नहीं है कि नए रहस्यों का पता लगाया जाए;  आवश्यकता है,  देशका विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बनना।  आवश्यकता यह नहीं है कि लोग पढ़-लिखकर विद्वान मात्र बने; आवश्यकता है कि जो वस्तुएँ और साधन उन्हें उपलब्ध हैं उनका समुचित प्रयोग करें।  आवश्यकता यह नहीं है कि हम पश्चिम के स्वभाव को अपनाएँ  आवश्यकता है हम अपनी पहचान बनाएँ। आवश्यकता है संसाधनों का संरक्षण समुचित प्रयोग करना सीखें। आवश्यकता है, स्वार्थ की भावना से निकलकर सभी को साथ लेकर चलने की भावना रखें; आवश्यकता है, आपसी सम्बन्धों की गहराई को समझें,  आवश्यकता है दिखावे में धन और समय की बर्बादी करें; आवश्यकता है दूसरों की वस्तुओं पर अधिकार जमाए; आवश्यकता है अपने  कर्तव्यों  का पालन निष्ठा और ईमानदारी से करें तब अच्छे दिन आएँगे।


मान्यवर, तकनीक भावनाओं की समृद्धि का पाठ नहीं पढ़ाती, वह प्रेम और सौहार्द की स्थापना नहीं करती, वह साथ चलने का स्वभाव पैदा नहीं करती वह जिगर की चीरफाड़ कर सकती है पर उसमें भावनाओं का संचार नहीं कर सकती; वह ज्ञान के साधन उपलब्ध करा सकती है पर ज्ञानी नहीं बना सकती इसलिए मैं कहूँगा तकनीक एक साधन है, साध्य नहीं। उसके माध्यम से विकास आत्मघाती भी हो सकता है और जीवन को बनाने वाला भी। पर, यदि भावनाओं और संस्कारों के साथ ज्ञान चरित्र निर्माण पर ध्यान दिया जाए तो अच्छे दिन आएँगे इसमें कोई सन्देह नहीं है।
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