दोहा. 1
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय ॥
अर्थ: इस दोहे के माध्यम से रहीम
प्रेमपूर्ण संबंधों की प्रकृति के बारे में बताते हैं और शिक्षा देते हैं कि मानव
जीवन के आपसी सम्बन्धों में प्रेम की कोमलता (नाजुकता) को समझकर आपसी व्यवहार करना
चाहिए।
प्रेम धागे के समान कोमल
होता है। जिस प्रकार धागा झटका खाकर टूट जाता है और जोड़ने पर पहली वाली स्थिति
में न आकर गाँठ लगाने पर जुड़ता है उसी प्रकार से मानव जीवन में आपसी संबंधों में
मनमुटाव या दरार या दूरी आने के बाद फिर से जुड़ने पर पहले जैसी आत्मीयता और गहराई
नही रहती है।
दोहा. 2
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लेंहैं कोय॥
अर्थ:- रहीम अपने मन में बसी
पीड़ा या दुःख को किसी से भी न बाँटने की शिक्षा देते है। वे कहते हैं कि हमें अपने दुःख या पीड़ा को
किसी से भी कहना नहीं चाहिए। अपने दुःख या पीड़ा को अपने मन में ही छिपाना चाहिए।
रहीम के अनुसार लोग आपके दुःख या पीड़ा को जानकर उसे दूर करने या सहायता करने का
कार्य नहीं करेंगे अपितु उससे उनका मनोरंजन होगा।
दोहा. 3
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अधाय॥
अर्थ:- रहीम के इस दोहे को हम
सांसारिक और आध्यात्मिक अर्थों में ले सकते हैं।
सांसारिक अर्थ की दृष्टि से
रहीम सारे कार्यों को एक साथ नहीं करने की शिक्षा देते हैं। एक-एक करके कार्य किए
जाने पर सारे कार्य पूरे हो जाते हैं। कार्यों में सबसे प्रमुख को पहले किया जाना
चाहिए। ऐसा करने पर सफलता मिलती है और लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
आध्यात्मिक अर्थ की दृष्टि
से रहीम इस सृष्टि के मूल (जड़, प्रमुख) परमात्मा की कृपा
प्राप्त किए जाने की शिक्षा देते हैं। क्योंकि सारा संसार परमात्मा के अधीन है।
परमात्मा ही जीवनदाता है इसलिए उसकी कृपा प्राप्त होने पर सारे कार्य पूर्ण और सफल हो जाते हैं।
दोहा. 4
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध नरेस ।
जा पर विपदा पड़त है, सो आवत यहि देस ॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अयोध्या
के राजा राम वनवास की विपत्ति आनेपर राजपाट छोड़कर चित्रकूट नामक स्थान पर रहने
चले आए थे। इस स्थान की सुन्दरता उनके मन को भा गई। इस संसार में जिस पर विपत्ति
(कष्ट) आते हैं वह शांति और सुकून पाने के लिए इस स्थान पर खिंचा चला आता है। (विपत्ति
आने पर व्यक्ति शांति चाहता है जो उसे प्रकृति में और धार्मिक स्थानों पर मिलती
है)
(चित्रकूट नामक स्थान
मंदाकिनी (गंगा) नदी के किनारे उत्तरप्रदेश में स्थित है। भगवान राम ने अपने वनवास
के लगभग साढे ग्यारह महीने यहीं बिताए थे। प्राकृतिक सुन्दरता से ओतप्रोत यह एक
बहुत ही रमणीक स्थल है। कहा जाता है कि हमारे महान साधकों में ऋषि अत्रि, देवी सती अनुसूया, महर्षि मार्कण्डेय, सरभंगा, सुतीक्ष्ण आदि अनेक ने इस
स्थान पर रहकर ही तपस्या की। यही वह धरती है जहाँ ब्रह्मा, विष्णु महेश ने अवतार
लिया। इस जगह पर आनेवाले को शांति और सुकून मिलता है।)
दोहा. 5
दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं ।
ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिट कूदि चढिं जाहिं ॥
अर्थ:- रहीम कहते हैं कि दोहा एक
ऐसा छंद है जिसमें अक्षर कम होते हैं पर उनमें बहुत गहरा अर्थ छिपा होता है। जिस
प्रकार कोई खेल-तमाशे दिखानेवाला (नट) अपने शरीर को साँप के बैठने की तरह गोल कर
लेता हो और शरीर को सिकोड़लेने का करतब दिखाता हो, कूदने और ऊँचाई पर चढ़ने के करतब दिखाता है
अर्थात् अपने छोटे शरीर से बड़े-बड़े काम कर लेता है उसी प्रकार से दोहा भी कम शब्दों में बड़ी और गहरे
अर्थ वाली बातें कह देता है।
दोहा. 6
धनि रहीम जल पंक को,लघु जिय पिअत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है,जगत पिआसो जाय।।
अर्थ:- रहीम कहते हैं कि महान वही
होता है जो किसी के काम आता हो। जिस प्रकार से कीचड़ और समुद्र में कीचड़ का महत्व इसलिए है क्योंकि उसका जल कितने ही छोटे
जीवों की प्यास को बुझा उनके प्राणों की रक्षा करता है और समुद्र का कोई महत्व
नहीं है क्योंकि अथाह जल होने के बाद भी उसके किनारे आकर संसार के जीव प्यासे के
प्यासे रह जाते हैं ।
दोहा. 7
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछु न दे॥
अर्थ:- रहीम कहते हैं कि किसी को
सहायता देने की स्थिति में होकर भी माँगनेवाले की सहायता नहीं करनेवाला जानवरों से
भी अधिक बुरा होता है। एक हिरण भी संगीत की तान पर अपनी सुध-बुध खोकर अपने प्राण
दे देता है इसलिए जिन लोगों के पास धन है वे किसी पर खुश होकर भी उसे कुछ न दें तब
वे पशुओं से भी अधिक निर्दयी कहे जाते हैं।
दोहा. 8
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
अर्थ:- रहीम मनुष्य को सोच-समझकर
आपसी व्यवहार किए जाने की सीख देते हैं। किसी कारण से यदि बात बिगड़ जाती है तो उस
बात को सम्भालना या संबंध को बिगड़ने न देना असम्भव कार्य हो जाता है। वे उदाहरण
देते हुए कहते हैं कि दूध के फटने पर कितनी ही कोशिश की जाए उसे मथकर मक्खन नहीं
निकाला जा सकता है।
दोहा. 9
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
अर्थ:- मनुष्य का स्वभाव है कि
किसी बलशाली या अधिक योग्य का साथ पाकर उससे कम बलशाली या योग्य को भूल जाता है या
उसकी अवहेलना (महत्व नहीं देना) करता है। रहीम इस दोहे में ऐसे व्यवहार को गलत
बताते हुए कहते हैं कि बड़ी वस्तु को पाकर छोटी वस्तु को नहीं फेंकना चाहिए
क्योंकि प्रत्येक का अपना-अपना महत्व होता है। सुई छोटी होती है उसका कार्य तलवार
नहीं कर सकती है। सुई सिलाई करने या काँटा
निकालने में काम आती है तो तलवार रक्षा करने में। जिस प्रकार सुई और तलवार का
अपना-अपना महत्व है उसी प्रकार जीवन में भी सभी प्रकार के संबंधों का महत्व होता
है।
दोहा. 10
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय ।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सकै बचाय ।
अर्थ:- अपनी जमा की गई धन-दौलत ही
बुरे समय में सहायता देती है। जिस प्रकार कमल सूर्य की किरणें पाकर खिल जाता है पर
यदि पानी नहीं हो तो सूर्य भी कमल को न तो खिला सकता है और न ही उसकी रक्षा कर
सकता है उसी प्रकार से बुरा समय आने पर मनुष्य की अपनी धन-दौलत ही सहायता करती है।
दोहा. 11
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
अर्थ:- रहीम कहते हैं कि मोती का
महत्व तब है जब उसकी चमक (पानी) है, मनुष्य का महत्व तब है जब उसकी प्रतिष्ठा (पानी) है और आटा
तब ही उपयोग में लाया जा सकता है जब जल (पानी) हो। यहाँ पानी शब्द का अर्थ चमक, इज्जत और जल है। रहीमजी मोती की चमक, आदमी की इज्जत और आटे के लिए पानी की रक्षा किए
जाने की शिक्षा देते हैं। (समाप्त)
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