प्रतिपाद्य

PRATIPADYA : PARVAT PRADESH ME PAWAS



प्रकृति के सुकुमार कवि श्री सुमित्रानन्दन पंत ने कविता
 पर्वत-प्रदेश में पावस’ में वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में क्षण-क्षण होने वाले परिवर्तनों का सूक्ष्म व मनोहारी चित्रण किया है । पर्वततालाबझरनों आदि को मानवीय भावनाओं का रूप प्रदान किया है। पर्वत के द्वारा तालाब में अपना प्रतिबिम्ब देखा जानाझरनों की ध्वनि महानता का गान करती प्रतीत होनातालाब पर छाई धुंध का आग लग जाने पर धुएँ-सा प्रतीत होनाबादलों का विचरण आदि प्रकृति की सुन्दरता को देखकर इन्द्र देवता द्वारा जादू दिखाए जाने की व्यंजना निश्चय ही अनुपम है। प्रकृति का मानवीकरण करते हुए उसकी सुन्दरता का सूक्ष्म चित्र शब्दों द्वारा जीवंत हो उठा है ।

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हमें उत्तराधिकार में अपने पूर्वजों से जो वस्तुएँ मिलती हैं उसे हम उनकी स्मृति के रूप में सम्भाल कर रखते हैं। इन वस्तुओं से पता लगता है कि उस समय में देश और समाज की स्थिति कैसी थी। जब अंग्रेज़ भारत में आए थे तब उद्देश्य सिर्फ व्यापार करना था पर धीरे-धीरे वे शासक ही बन गए। कवि ने कम्पनी बागों और पर्यटकों के माध्यम से अंग्रेज़ी शासकों द्वारा किए गए अच्छे कार्यों के बारे में और तोप के माध्यम से अंगेजों द्वारा देशवासियों पर किए गए अत्याचार को बताया है। जो तोप वीरों को टुकड़े-टुकड़े करके डराने के काम में आया करती थी आज आजा़द भारत में वे अपना प्रभाव खो चुकी हैं। बच्चे घुड़सवारी करते हैं तो चिडि़याँ उसपर बैठ चहचहाती है और कभी इसके भीतर भी घुस जाती हैं। इन सभी तथ्यों के साथ कवि बताना चाहता है कि इतिहास की भूलों से सबक लेकर और अच्छी बातों से प्रेरणा लेकर हमें भविष्य को अच्छा बनाना चाहिए । जिस प्रकार से आज यह तोप अपना प्रभाव खोकर एक सजावट का सामान भर बन गई है उसी प्रकार से एक दिन बड़े से बड़े अत्याचारी का अंत होता ही है।