Prashnottar karya : Bade Bhai Saheb
प्रश्न-अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में
दीजिए-
1. कथा नायक की रूचि किन कार्यों में
थी?
2. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल
क्या पूछते थे?
3. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में
क्या परिवर्तन आया?
4. बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े
थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या
करते थे?
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 25-30 शब्दों
में ) लिखिए-
1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय
क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
2. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा
भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
3. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों
दबानी पड़ती थीं?
4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और
क्यों?
5. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार
का क्या फ़ायदा उठाया?
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों दस उत्तर(50-60
शब्दों में) लिखिए-
1. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो
क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।
2. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन
तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?
3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती
है?
4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के
प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?
6. बड़े भाई साहब ने ज़िन्दगी के अनुभव और किताबी
ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?
7. (१ )बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता
है कि-
(क) छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।
(ख) भाई साहब को ज़िन्दगी का अच्छा अनुभव है।
(ग) भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।
(घ) भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।
(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-
1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज़ नहीं, असल चीज़
है बुद्धि का विकास।
2. फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी
आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार और
घुड़कियाँ खाकर भी खेल-कूद का तिरस्कार न कर सकता था।
3. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार
बने?
4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी
पथिक की ओर, जो मंद गति से झूमता पतन की ओर चला आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग
से निकलकर विरक्त मन से नए संस्कार ग्रहण करने जा रही हो।