Nida Fazali (1938)
लेखक परिचय : निदा फ़ाज़ली (1938)
जीवन परिचय :- 12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली में जन्मे निदा फ़ाज़ली का बचपन ग्वालियर में बीता। निदा फ़ाज़ली उर्दू की साठोत्तरी पीढ़ी के महत्त्वपूर्ण कवि माने जाते हैं।
साहित्यिक परिचय एवं पुरस्कार :- आम बोलचाल की भाषा में और सरलता से किसी के भी दिलोदिमाग में घर कर सके, ऐसी कविता करने में इन्हें महारत हासिल है। वही निदा फ़ाज़ली अपनी गद्य रचनाओं में शेर-ओ- शायरी पिरोकर बहुत कुछ को थोड़े में कह देने के मामले में अपने किस्म के अकेले ही गद्यकार हैं।
निदा फ़ाज़ली की लफ्जों का पुल नामक कविता की पहली पुस्तक आई।
शायरी की किताब खोया हुआ सा कुछ के लिए 1999 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित निदा फ़ाज़ली की आत्मकथा का पहला भाग दीवारों के बीच और दूसरा दीवारों के पार शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। इन दिनों फ़ाज़ली उद्योग से सम्बन्ध हैं। यहाँ तमाशा मेरे आगे किताब में संकलित एक अंश प्रस्तुत है।
पाठ परिचय :- कुदरत ने यह धरती उन तमाम जीवधारियों के लिए अता फ़रमाई थी जिन्हें खुद उसी ने जन्म दिया था। लेकिन हुआ यह कि आदमी नाम के कुदरत के सबसे अज़ीम करिश्मे ने धीरे-धीरे पूरी धरती को ही अपनी जागीर बना लिया और अन्य तमाम जीवधारियों को दरबदर कर दिया। नतीजा यह हुआ कि अन्य जीवधारियों की या तो नस्लें खत्म होती गईं या उन्हें अपना ठौर- ठिकाना छोड़कर कहीं और जाना पड़ा या फिर आज भी वे एक आशियाने की तलाश में मारे-मारे फिर रहे हैं।
इतना भर हुआ
रहा होता तब भी गनीमत होती, लेकिन आदमी नाम के इस जीव की सब कुछ समेट लेने की भूख यहीं
पूरी नहीं हुई। अब वह अन्य प्राणियों को ही नहीं खुद अपनी जात को भी बेदखल करने से
ज़रा भी परहेज़ नहीं करता। आलम यह है कि उसे न तो किसी के सुख-दुख की चिंता है, न किसी
को सहारा या सहयोग देने की मंशा ही। यकीन न आता हो तो इस पाठ को पढ़ जाइए और साथ ही
याद कीजिएगा अपने आसपास के लोगों को। बहुत संभव है इसे पढ़ते हुए ऐसे बहुत लोग याद आएँ
जो कभी न कभी किसी न किसी के प्रति वैसा ही बरताव करते रहे हों।
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आभार: एनसीइआरटी (NCERT)
Sparsh Part-2 for Class 10 CBSE