(1595-1663)
जीवन परिचय:- बिहारी का जन्म 1595 में ग्वालियर में हुआ था। जब बिहारी सात-आठ साल के ही थे तभी इनके पिता ओरछा चले आए जहाँ बिहारी ने आचार्य केशवदास से काव्य शिक्षा पाई। यहीं बिहारी रहीम के संपर्क में आए। बिहारी ने अपने जीवन के कुछ वर्ष जयपुर में भी बिताए। बिहारी रसिक जीव थे पर इनकी रसिकता नागरिक जीवन की रसिकता थी। उनका स्वभाव विनोदी और व्यंग्यप्रिय था।1663 में इनका देहावसान हुआ।
मांजी, पौंछी, चमकाइ, युत-प्रतिभा जतन अनेक। दीरघ जीवन, विविध सुख, रची ‘सतसई’ एक।।
बिहारी ने केवल एक ही ग्रंथ की रचना की-‘बिहारी सतसई’। इस ग्रंथ में लगभग सात सौ दोहे हैं। दोहा जैसे छोटे से छंद में गहरी अर्थव्यंजना के कारण कहा जाता है कि बिहारी गागर में सागर भरने में निपुण थे। उनके दोहों के अर्थगांभीर्य को देखकर कहा जाता है -
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगै, घाव करें गंभीर।।
बिहारी की ब्रजभाषा मानक ब्रजभाषा है। सतसई में मुख्यतः प्रेम और भक्ति के सारगर्भित दोहे हैं। इसमें अनेक दोहे नीति संबंधी हैं। यहाँ सतसई के कुछ दोहे दिए जा रहे हैं।
बिहारी मुख्य रूप से श्रृंगारपरक दोहों के लिए जाने जाते हैं, किंतु उन्होंने लोक- व्यवहार, नीति ज्ञान आदि विषयों पर भी लिखा है। संकलित दोहों में सभी प्रकार की छटाएँ हैं। इन दोहों से आपको ज्ञात होगा कि बिहारी कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ भरने की कला में निपुण हैं ।
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आभार: एनसीइआरटी (NCERT)
Sparsh Part-2 for Class 10 CBSE