गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
गीत :- भावनाओँ से पूर्ण वह रचना जिसे गाया जा सके
अगीत :-. भावनाओँ से पूर्ण वह रचना जिसे गाया नहीं जा सके अर्थात् गीत जो गाया न गया हो।
सरलार्थ :- कवि पूछते हैं कि गीत और अगीत में तुलना करें
तो किसे अच्छा कहा जा सकता है। गीत तो भावनाओं से पूर्ण वह रचना है जिसे स्वर मिल
जाते हैं और उसे सुना जाता है। क्योंकि उसे सुना जा सकता है इसलिए वह सुननेवाले के
मन को भी प्रभावित करते हैं। अगीत मन में उमड़ने वाली भावनाओं का वह प्रवाह है
जिसे स्वरों में नहीं बाँधा जा सकता और न ही अनुभव किया जा सकता है पर उस अनुभव का
अन्य के द्वारा अनुमान किया जा सकता है। इसलिए गीत और अगीत में से किसे अच्छा कहा
जा सकता है।
(1)
गाकर गीत विरह(दुःख) के तटिनी(नदी)
वेगवती बहती जाती है,
दिल हलका कर लेने को (दुःख कम करने को)
उपलों(किनारों) से कुछ कहती जाती है।
तट(किनारे) पर एक गुलाब सोचता,
‘देते स्वर यदि मुझे विधाता,
अपने पतझर के सपनों का
मैं भी जग को गीत सुनाता।’
गा-गाकर बह रही निर्झरी(नदी),
पाटल(गुलाब) मूक(चुपचाप) खड़ा तट पर है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
सरलार्थ :- कवि एक बिंब (दृश्य) की कल्पना करते हैं कि नदी
बह रही है और किनारे पर एक गुलाब लगा है। तेज़ गति से बहती नदी की कलकल की आवाज
ऐसी लगती है जैसे वह बिछुड़ने के दुःख का गीत हो जिसे वह किनारों को सुनाकर अपने
दुःख को हल्का (कम) करती बहती जा रही हो। सामन्यतः सागर को नदी के प्रियतम के रूप
में माना जाता है जिससे वह पहाड़ों से निकल बहते हुए मिलती है इसलिए यहाँ नदी का
दुख सागर से चिरकाल से नहीं मिल पाने का दुःख है जिसे वह किनारों को कहकर कम कर
रही हैं। वहीं किनारे पर खड़े गुलाब के मन में यह भावना उमड़ रही हैं कि भगवान ने
यदि उसे आवाज (स्वर) दी होती तो अपने पतझड़ के दिनों में अपने भविष्य से संबंधित
कौन-से सपने उसके भीतर पलते हैं उनके बारे में वह संसार को बोलकर सुनाता।
नदी अपनी भावनाओं को बताती हुई बहती जा रही है
जो कि गीत है और गुलाब उसी तट पर भावनाओं से भरा मूक (चुपचाप) खड़ा है जो कि अगीत
है। कवि की दुविधा है कि इस गीत और अगीत में किसे सुन्दर कहा जाए।
(2)
बैठा शुक(तोता) उस घनी डाल पर
जो खोंते(घोंसले) पर छाया देती।
पंख फुला नीचे खोंते में
शुकी बैठ अंडे है सेती(गर्मी देती)।
गाता शुक जब किरण वसंती(वसंत ऋतु में सूर्य की किरण)
छूती अंग पर्ण(पत्ते) से छनकर।
किंतु, शुकी के गीत उमड़कर
रह जाते स्नेह में सनकर (सराबोर होकर)।
गूँज रहा शुक का स्वर वन में,
फूला मग्न शुकी का पर(पंख) है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
सरलार्थ :- कवि
के इस दूसरे बिंब (चित्र) में एक शुक (तोता) वृक्ष की घनी शाखा(डाल) पर बैठा है
जिसकी छाया नीचे स्थित उसके घोंसले को धूप से बचा रही है। उसकी शुकी (तोती, मादा
तोता) अपने उस घोंसले में बैठी है और अपने पंख फैलाकर अंडों को सह रही है अर्थात्
उष्णता (गर्मी) दे रही है। वसन्त ऋतु के इस दृष्य में जब पत्तों से छनकर सूर्य की
किरण शुक (तोता) को छूती है तब वह अपनी भावनाओं को स्वर प्रदान कर गा उठता है और
उसके इस गीत से पूरा जंगल गुँजायमान हो जाता है । परन्तु शुकी(तोती, मादा
तोता) के भीतर भी प्रेम की भावनाएँ उमड़ रही हैं जिससे वह अपने भीतर ही भीतर
सराबोर है।
शुक ने अपनी भावनाओं को स्वर दिए और वह मधुर
गीत बनकर जंगल में फैल उठा तो शुकी अपने ममत्व की प्रेम पूर्ण भावनाओं में डूबी है
उसका शरीर प्रसन्नता से भरा हुआ है और इस प्रभाव से अपने पंख फुलाकर अंडों को
गर्मी दे रही है। कवि दुविधा में है कि शुक का भावनाओं से पूर्ण गीत सुन्दर है या
शुकी की स्वर रहित भावनाओं का गीत अर्थात् अगीत (बिना स्वर का गीत) ।
(3)
दो प्रेमी हैं यहाँ, एक जब
बड़े साँझ(संध्या) आल्हा गाता है,
पहला स्वर उसकी राधा(प्रेमिका) को
घर से यहाँ खींच लाता है।
चोरी-चोरी खड़ी नीम की
छाया में छिपकर सुनती है,
‘हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की
बिधना’(विधाता, प्रभु), यों मन में गुनती(सोचती) है।
वह गाता, पर किसी वेग से
फूल रहा इसका अंतर(हृदय) है।
गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
सरलार्थ :- कवि
के इस बिंब (चित्र) में प्रेमी और प्रेमिका हैं। प्रेमी सन्ध्या समय आल्हा-ऊदल* के प्रेम और वीरता से भरे गीत को तन्मय होकर (अपनी ही धुन में खोकर) गाता
है तो गीत की आवाज सुनकर उसकी प्रेमिका अपना घर छोड़ उसे सुनने के लिए खींची चली
आती है। वह नीम के पेड़ की छाया में चोरी से छुपकर खड़ी होकर अपनी धुन में खोए
प्रेमी के गीत को सुनती है। अपने प्रेमी को तन्मय होकर प्रेमगीत गाता देखकर उसका
मन भी प्रेम की भावनाओं से भर उठता है वह सोचती है कि हे प्रभु तुमने मुझे भी गीत
की एक कड़ी(पंक्ति) बनाया होता तो मैं आज अपने प्रिय के होंठों पर होती। न वह अपने
पे्रमी से मिल सकती है और नहीं उसके साथ गीत गा सकती है पर उसके भीतर प्रेम की
भावनाएँ उमड़ रही हैं जिसे वह स्वर नही दे पाती ।
क्या प्रेमिका की स्वर रहित भावनाएँ जो कि अनकही हैं, अगीत
हैं सुन्दर कही जाएँ या फिर पे्रमी की स्वरमय व्यक्त भावनाएँ जो कि गीत हैं उन्हें
सुन्दर कहा जाए ? कवि की दुविधा है कि भावनाओं के किस रूप को
सुन्दर बताया जा सकता है।
* आल्हा और ऊदल दो भाई थे। ये बुन्देलखण्ड
(महोबाद) के वीर योद्धा थे। इनकी वीरता प्रेम की
कहानी आज भी उत्तर.भारत के गाँव-गाँव में गायी जाती है।
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