DESHBHAKTI KEE BHAVANA KAL KEE BAAT HO GAI HAI
मान्यवर,
मैं सदन की राय से
पूर्णतः सहमत हूँ कि देशभक्ति की भावना कल की बात हो गई है।
मान्यवर, मुझे
विश्व के कई देशों में घूमने का अवसर मिला। मैंने पाया कि उन
देशों के लोग अपनी देश की स्वच्छता, नियम पालन, नैतिक जिम्मेदारियों
का पूर्णतः पालन करते हैं । पर भारत में ऐसा नहीं है। सरकारी इमारतों में
कोनोंकोनों में भारत के लोगों की मानसिकता का परिचय देती पान की पीकें,
सिगरेट के टुकड़े, गुटखों के रैपर और न जाने क्या-क्या मिल जाता है कहा ही नहीं जा
सकता। रेल्वे स्टेशनों की हालत तो बहुत ही बुरी है। मेरी राय में तो अघिकतर नगरों
का यही हाल है। क्या हमारी देश भक्ति हमें अपने देश को स्वच्छ बनाने
के लिए प्रेरित नहीं करती ।
मान्यवर, ऐसा नहीं है कि
विश्व के देशों में बेईमानी नहीं होती है, वहाँ भी होती है । पर फिर
भी आम आदमी के मन में देश के लिए कुछ करने की भावना रहती है। पर हमारे
करने के नाम पर रोजाना नए -नए स्कैंडल होते हैं; नई’-नई
पोल खुलती है; अखबार प्रतिदिन किसी की धोती उतार रहे होते हैं तो किसी की
पगड़ी। और हम हैं जिनसे न तो धोती संभलती है और न ही पगड़ी फिर भी देश की
व्यवस्था में चार नारे लगाने का योगदान मुँह देखकर कर देते हैं। इस मुँह दिखाई में
जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद और न जाने कितने ही वादों के तिलक किए जाते
हैं। देश को सबसे अधिक नुकसान इन वादों के कारण ही उठाना पड़ा है चाहे
वे धर्म के नाम पर हो या क्षेत्र के या फिर किन्हीं नेताओं के । अपने अतीत की
महानता पर सर उठाकर चलने वालों का सिर तो न संसद में कितनी ही बार धुना गया है
इसका कोई हिसाब ही नहीं है। हमारे प्रतिनिधि जिन्हें हमने देश चलाने के लिए
भेजा है वे और देशचला पाए या नहीं एक दूसरे पर लातघूँसे चलाते हुए जरुर
राष्ट्रीय चैनल पर दिख जाते हैं। राष्ट्रीय-धर्म का मेरी राय में इससे बड़ा कोई और
उदाहरण नहीं हो सकता।
मान्यवर, किसी
राष्ट्रद्रोही को सरेआम फांसी दे दी जानी चाहिए पर हमारे देश में उनके साथ
ऐसा नहीं किया जाता। डाकू चुनाव लड़ते हैं, अपराधी देश चलाते हैं, कानून का
मजाक उड़ाने वाले कानून बनाते हैं और फिर परिणाम भी ऐसा ही होता है। मान्यवर, आजादी
के बाद के वर्षों में हम कोई सच्चा देशभक्त, सच्चा धर्मगुरु पैदा नहीं कर पाए
हैं और जिन्हें पैदा किया है उनसे अच्छी तो उनपर बुलडोजर चलाकर बनी उनकी खाद
ज्यादा अच्छी होगी। मान्यवर, देशप्रेम के नाम पर युवकों का दिल भी
बुझा-बुझा-सा हो गया है क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर प्रेरणा देनेवाले व्यक्ति का
अभाव है। सैन्य-क्षेत्र में सैनिकों की कमी इस बात का प्रमाण है। युवा भी
भटकाव की ओर हैं क्योंकि जो उन्हें मिल रहा है उसे वे चाहते नहीं और जो चाहते हैं
वह मिलता नहीं परिणाम जिन्दगी घूँट और धुएँ के बीच झूलती है और फिर किसी फंदे से
लटककर दम तोड़ देती है। काश, यह दम देश के लिए टूटे !
मान्यवर, गलियों या
चौराहों पर एकजुट होकर नारेबाजी करने से देश के प्रति जज्बा नहीं दिखाई देता है।
भीड़ तो कहीं भी और कैसे भी लग सकती है। प्रश्न होता है, देश की साख को बचाने
के लिए हर आदमी का नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयत्न करना और उच्च-चरित्र
का बनना। पर, हमारे यहाँ ऐसा नहीं है। उन लोगों की संख्या अधिक है जो
गैर-जिम्मेदार है। यह तो देश का भाग्य है कि कुछ जिम्मेदार लोग अपनी
जिम्मेदारी सही ढंग से निभा रहे हैं। वे लोग ऐसे चने हैं जो भाड़ भी फोड़ रहे
हैं और भड़बूझे की आँख भी। ऐसे ही लोगों के सहारे देश चल रहा है। कुल आबादी
के बहुत कम हिस्से के सहारे देश चल रहा है। हम हमारी स्मृति बहुत छोटी है।
बड़ी-बड़ी घटनाएँ बहुत जल्दी भूल जाते हैं फिर देश-प्रेम क्या चीज है। हमारे
आदर्श देश-प्रेम जैसी बातें कहा अब तो हमारे आदर्श वे लोग हैं
जिनके तन और मन के पहनावे छोटे होते जा रहे हैं, लोग भूखों मरे तो मरें, करोड़ो मन
अनाज सड़े तो सड़े, महँगाई बढ़े तो बढ़े पर जिनके दामन सुरसा के मुँह की तरह बढ़ते जा
रहे हैं और जो देश के लोगों की कमाई तो क्या देष को ही खा रहे हैं। ऐसे में
मुझे एक कवि की यह पंक्तियाँ याद आ रही हैं कि फुर्सत तो बहुत थी मेरे पास देश के
लिए, कि फुर्सत तो बहुत थी मेरे पास देश के लिए, पर पेट भर गया तो नींद आ
गई। सच है देश भक्ति की भावना कल की बात हो गई । ॥ धन्यवाद॥
देशभक्ति की भावना कल की बात हो गई है। - विपक्ष
मान्यवर, मैं सदन की राय
से सहमत नहीं हूँ कि देशभक्ति की भावना कल की बात हो गई है।
मान्यवर, देशभक्ति
कल की नहीं आज की बात है। देशभक्ति का जज्बा जैसा कल लोगों के दिलों में हिलोर
मारता था, आज भी मारता है। मेरी बात पर यकीन नहीं है तो काॅमनवैल्थ गेम्स को ही ले
लें। अपने देश की आन को बचाने में सारा राष्ट्र तैयार खड़ा है। जहाँ रुपयों
की बर्बादी होती दिखती है- विरोध के स्वर उठ खड़े होते हैं । ये विरोध के स्वर यों
ही नहीं खड़े होते उसके मूल में देशभक्ति की ही भावना है। विदेशों में बसे भारतीय
चाहते हैं कि हिन्दुस्तान तरक्की करे ; हम लोग जो हिन्दुस्तान में बैठे हैं चाहते
हैं कि हिन्दुस्तान तरक्की करे। शायद ही इस देश का कोई नागरिक ऐसा होगा जो न
चाहता हो कि हिन्दुस्तान की तरक्की हो। बंबई में बम का धमाका हो, अफजल की फांसी
हो, घूसखोरी की बात हो या फिर कहीं कैसी भी त्रासदी हो भारत का एक-एक नागरिक
चौकन्ना और होशियार दिखाई देता है। बुराई के विरोध में आवाज बुलन्द
करता दिखाई देता है तो अच्छाई की हामी भरता दिखाई देता है। ऐसी परिस्थिति को देखकर
कौन कहता है कि देशभक्ति कल की बात हो गई है।
मान्यवर, क्या कोई कहता
है कि मैं अपनी माता-पिता का आदर करता हूँ ? क्या कभी किसी माता-पिता को यह कहते
हुए सुना है कि हम हमारे बच्चे को बहुत प्यार करते हैं ? क्या कभी किसी को कहते
सुना है कि मैं अपने देश से प्यार नहीं करता हूँ । मान्यवर, जो बातें
स्वाभाविक होती हैं उनके लिए नगाड़े बजाने की आवश्यकता ही कहाँ होती है।
देशभक्ति स्वाभाविक-सी बात है। इसलिए उसे जताने की जरुरत नहीं होती।
मान्यवर, हमारे
देशवासियों में देशभक्ति की भावना देखनी है जो कारगिल में शहीद हुए
सैनिकों की संख्या को देखो; विपरीत और भंयकर मौसम में देश की सीमा पर
पहरा दे रहे नौजवानों को देखो; उन वैज्ञानिकों को देखो जो देश को उन्नत
बनाने में लगे हैं; उस किसान को देखो जो मेहनत कर लोगों के जीवन को पालने में लगा
है। देश-सेवा का जज्बा न होता तो भारत के हर छोटे बड़े गाँव से लोग फौज में नहीं
होते। जो अमीरों की विलासिता की बात करते है उन्हें मैं बताना चाहता हूँ कि इस
देश की धरती पर ऐसे-ऐसे व्यापारी हुए हैं जिन्होंने विश्व के आर्थिक
साम्राज्य पर शासन किया है और कर रहे हैं । जी डी बिड़ला, गोयनका, जयपुरिया,
सेकसरिया, पोदार, टाटा आदि न जाने कितने ही घराने हैं जिन्होंने भारत को आर्थिक
दृष्टि से ही मजबूत बनाने का काम नहीं किया वरन् आजादी के बाद नई दिशा दी है । आज
भी लक्ष्मी मित्तल, अंबानी, अजीज प्रेम जी, परमेश्वर गोदरेज और न जाने कितने
ही घराने आज भी देश की आर्थिक तरक्की में अपना योगदान दे रहे हैं।
देशभक्ति सिर्फ हाथ में बंदूक लेकर ल़ड़ना ही नहीं है देशभक्ति है हर
प्रकार से अपने देश को सुरक्षित बनाना, आत्मनिर्भर बनाना और इस देश
में रहनेवालों के दिलों में अपने देश के प्रति स्वाभिमान की भावना पैदा
करना।