KARAK
परिभाषा:- संज्ञा (NOUN) सर्वनाम (PRONOUN) एवं विशेषण (ADJECTIVE) के जिस रूप से उनका सम्बन्ध वाक्य के दूसरे शब्दों के साथ विशेष रूप से क्रिया (VERB) के साथ ज्ञात होता है उसे कारक कहते हैं।
ये कारक आठ प्रकार के होते हैं -
कर्त्ता कारक
कर्म कारक
करण कारक
संप्रदान कारक
अपादान कारक
संबंध कारक
अधिकरण कारक
संबोधन कारक
1. कर्त्ता कारक :-
कर्त्ता कारक
से क्रिया के करने वाले की जानकारी होती है । कर्त्ता का
ज्ञान हमें ‘कौन’ या ‘किसने’ से भी होता है। क्रिया को सामने रखकर सही तरीके ‘कौन’ या
‘किसने’ शब्द
का प्रयोग करते हुए प्रश्न बनाने पर हमें कर्त्ता का
ज्ञान हो जाता है।
एक वाक्य लेते हैं:- पुजारी जी पूजा कर रहे हैं।
यहाँ सही प्रश्न होगा :- कौन पूजा कर रहा है ?
इसका उत्तर मिलता है:- पुजारी जी
यानि यहाँ पद (शब्द) पुजारी जी कर्त्ता कारक
है
यदि हम प्रश्न पूछते कि
- किसने पूजा कर रहा है ? तो यह गलत वाक्य है। इसलिए प्रश्न भी गलत है।
- कौन ने पूजा कर रहा है ? तो यह भी गलत वाक्य है। इसलिए प्रश्न भी गलत है।
एक बात का और ध्यान रखें
कर्त्ता कारक
की पहचान ‘ने’ चिह्न
के द्वारा भी होती है। यानि संज्ञा या सर्वनाम के आगे ‘ने’ लिखा
होने पर भी कर्त्ता का
पता लग जाता है।
जैसे - कृष्ण ने सुदामा की सहायता की।
इस कथन में ‘ने’ कृष्ण
के आगे लिखा है और यदि सही तरह से प्रश्न बनाएँ तो भी कर्त्ता कारक
का पता लग जाता है। जैसे
यदि हम प्रश्न पूछते कि
यहाँ सही प्रश्न होगा :- किसने सुदामा की सहायता की ?
इसका उत्तर मिलता है:- कृष्ण ने
यानि यहाँ पद (शब्द) कृष्ण कर्त्ता कारक
है।
यदि हम प्रश्न पूछते कि
- कौन सुदामा की सहायता की ? तो यह गलत वाक्य है। इसलिए प्रश्न भी गलत है।
- कौन ने सुदामा की सहायता की ? तो यह भी गलत वाक्य है। इसलिए प्रश्न भी गलत है।
नीचे एक तालिका दी गई है जिसमें कारक का नाम , उसकी पहचान किस चिह्न से हो जाती है वह चिह्न, पहचान
करने के लिए प्रश्न में किस शब्द का प्रयोग करें बताया गया है ।
2. कर्म कारक:-
संज्ञा
का वह रूप जो क्रिया के परिणाम से जुड़ा हो, कर्म
कारक होता है। इसकी पहचान करने के लिए ‘क्या’ या
‘किसे’ लगाना
चाहिए। इसका कारक चिह्न ‘को’ है।
उदाहरण देखें -
वाक्य है - रमा पुस्तक पढ़ती है।
प्रश्न पूछा - रमा क्या पढ़ती है ?
इसका उत्तर मिलता है - पुस्तक ( इस वाक्य में पुस्तक कर्म कारक है)
यदि पूछेंगे - रमा किसको पढ़ती है ? (तो यह गलत वाक्य है। इसलिए प्रश्न भी गलत है।)
यदि वाक्य है - रमा ने महेश को पुस्तक दी।
प्रश्न पूछेंगे - रमा ने महेश को क्या दी ? रमा ने किसे पुस्तक दी ?
इसका उत्तर मिलता है - पुस्तक और महेश को
वाक्य में महेश के आगे को लगा है जो कि कर्म कारक का चिह्न है। बताए
गए तरीके से प्रश्न पूछने पर वाक्य के कर्म पता लग जाता है।
3. करण कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो क्रिया के साधन या माध्यम को बताता हो, करण
कारक होता है। इसका चिह्न - से होता है । इसमें से का प्रयोग ‘के द्वारा’ या
‘के साथ’ के
अर्थ में किया जाता है ‘अलग होने’ के
अर्थ में इसका प्रयोग नहीं होता है। इस कारक की पहचान करने के लिए ‘किससे’ लगाकर
प्रश्न पूछने पर भी
पता लग जाता है।
उदाहरण देखें -
वह पेन से लिखता है।
पहली बात - यहाँ
पेन के आगे करण कारक चिह्न ‘से’ लगा
है ।
दूसरी बात - यहाँ
‘से’ का प्रयोग पेन के दूर होने के अर्थ में नहीं है।
4. संप्रदान कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिसके
लिए क्रिया प्रयुक्त होती है, सम्प्रदान
कारक होता है। इसका चिह्न ‘केलिए’ है।
इस कारक की पहचान ‘किसके लिए’ लगाकर
प्रश्न पूछने पर भी हो जाती है।
उदाहरण देखें -
वे मेरे लिए उपहार लाए।
यहाँ किसके लिए का उत्तर ‘मेरे लिए’ है।
यदि किसी वाक्य में मेरे शब्द की जगह किसी का नाम हुआ तब वह सम्प्रदान कारक हो जाएगा।
5. अपादान कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जिससे एक का दूसरे से अलग होना पता चलता हो, अपादान
कारक कहलाता है। इसका
चिह्न ‘से’ है
जो अलग होने का अर्थ देता है। डर और तुलना बताने में भी संज्ञा या सर्वनाम शब्द के बाद ‘से’ का
प्रयोग होता है जो कि अपादान कारक के अंतगर्त ही आता है। इस कारक की पहचान करने के लिए ‘किससे’ लगाकर
प्रश्न पूछने पर भी पता लग जाता है पर यह तुलना /डरना / अलग होना बताता है।
उदाहरण देखें -
आसमान से बूँदे गिरीं।
यहाँ ‘से’ का
प्रयोग बता रहा है कि बूँदे आसमान से अलग हो गईं। यानि ‘से’ अलग
होने को बता रहा है।
अन्य उदाहरण -
वह साँप से डरता है। ( किससे - साँप से
)
मेरी कमीज़ उसकी कमीज़ से सफेद है। (किससे - कमीज़
से)
6. संबंध कारक
संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य में अन्य शब्दों के साथ उसका सबंध बताता हो, संबंध
कारक होता है। इसकी पहचान के लिए चिह्न का,के,की,रा,रे,री होते
हैं। किसका, किसकी, किसके आदि लगाकर प्रश्न पूछने पर भी इसकी पहचान हो जाती है।
उदाहरण देखें -
रमेश की घड़ी खो गई।
(यहाँ रमेश के
आगे ‘की’ लगा
है यह तो संबंध बता ही रहा है और ‘किसकी’ पूछने
पर ‘रमेश की’ उत्तर
मिलता है)
7. अधिकरण कारक
संज्ञा व सर्वनाम का वह रूप जो
क्रिया के समय या स्थान का ज्ञान कराता है, अधिकरण
कारक होता है। इसके चिह्न में, पर, पे होते हैं। किसमें/ किसपर/ किस पे लगाकर प्रश्न पूछने पर भी इसकी पहचान हो जाती है।
उदाहरण देखें -
रमा ने पुस्तक मेज पर रखी।
वह चाबी संदूक में रखती है।
8. संबोधन कारक
संज्ञा व सर्वनाम का वह रूप जो किसी को बुलाने या पुकारने के भाव का ज्ञान कराता है, अधिकरण
कारक होता है।
उदाहरण देखें -
अरे रमेश! यहाँ आओ।
बाबूजी ! आप यहाँ बैठें।