बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन1 हुआ करता है। बूढ़ी
काकी में जिह्वा-स्वाद2 के सिवा और कोई
चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने का, रोने
के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा ही। समस्त इन्द्रियाँ3, नेत्र, हाथ और पैर जवाब दे चुके थे। पृथ्वी पर पड़ी रहतीं और घर वाले कोई बात
उनकी इच्छा के प्रतिकूल4 करते, भोजन
का समय टल जाता या उसका परिमाण पूर्ण न होता अथवा बाज़ार से कोई वस्तु आती और न
मिलती तो ये रोने लगती थीं। उनका रोना-सिसकना साधारण रोना न था, वे गला फाड़-फाड़कर रोती थीं। उनके पतिदेव को स्वर्ग सिधारे कालांतर5 हो चुका था। बेटे तरुण6 हो-होकर चल बसे थे। अब एक भतीजे के अलावा और
कोई न था। उसी भतीजे के नाम उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति लिख दी। भतीजे ने सारी
सम्पत्ति लिखाते समय ख़ूब लम्बे-चौड़े वादे किए, किन्तु
वे सब वादे केवल कुली-डिपो के दलालों7 के दिखाए हुए सब्ज़बाग8 थे। यद्यपि उस
सम्पत्ति की वार्षिक आय डेढ़-दो सौ रुपए से कम न थी तथापि बूढ़ी काकी को पेट भर
भोजन भी कठिनाई से मिलता था। इसमें उनके भतीजे पंडित बुद्धिराम का अपराध था अथवा
उनकी अर्धांगिनी9 श्रीमती रूपा का, इसका
निर्णय करना सहज नहीं। बुद्धिराम स्वभाव के सज्जन थे, किंतु
उसी समय तक जब कि उनके कोष पर आँच न आए। रूपा स्वभाव से तीव्र थी सही, पर ईश्वर से डरती थी। अतएव बूढ़ी काकी को उसकी तीव्रता उतनी न खलती थी
जितनी बुद्धिराम की भलमनसाहत10। |
1.
फिर से आना 2. जीभ के स्वाद 3.
SENSES 4.
विपरीत 5.
बहुत समय 6.
युवा 7.
बोझा ढोनेवालों के दल 8.
झूठा लालच 9.
पत्नी 10.
अच्छा स्वभाव की बात |
बुद्धिराम को
कभी-कभी अपने अत्याचार का खेद1 होता था। विचारते कि इसी सम्पत्ति के कारण मैं इस समय भलामानुष2 बना बैठा हूँ। यदि भौतिक आश्वासन3 और सूखी
सहानुभूति4 से स्थिति में सुधार हो सकता हो, उन्हें कदाचित्5 कोई आपत्ति न होती, परन्तु विशेष व्यय का भय6उनकी सुचेष्टा को दबाए रखता था। यहाँ तक कि यदि
द्वार पर कोई भला आदमी बैठा होता और बूढ़ी काकी उस समय अपना राग अलापने7 लगतीं तो वह आग हो जाते और घर में आकर उन्हें जोर
से डाँटते। लड़कों को बुड्ढों से स्वाभाविक विद्वेष8 होता ही है और फिर जब माता-पिता का यह रंग देखते तो
वे बूढ़ी काकी को और सताया करते। कोई चुटकी काटकर भागता, कोई इन पर पानी की कुल्ली कर देता।
काकी चीख़ मारकर रोतीं परन्तु यह बात प्रसिद्ध थी कि वह केवल खाने के लिए रोती
हैं, अतएव उनके संताप और आर्तनाद9 पर कोई ध्यान नहीं देता था। हाँ, काकी क्रोधातुर10 होकर बच्चों को गालियाँ देने लगतीं तो रूपा
घटनास्थल पर आ पहुँचती। इस भय से काकी अपनी जिह्वा कृपाण11 का कदाचित्
ही प्रयोग करती थीं, यद्यपि उपद्रव-शान्ति12 का यह उपाय रोने से कहीं अधिक उपयुक्त था। सम्पूर्ण
परिवार में यदि काकी से किसी को अनुराग13 था, तो वह बुद्धिराम की छोटी लड़की लाडली थी। लाडली अपने दोनों भाइयों के भय
से अपने हिस्से की मिठाई-चबैना बूढ़ी काकी के पास बैठकर खाया करती थी। यही उसका रक्षागार14 था और यद्यपि काकी की शरण उनकी लोलुपता15 के कारण बहुत मंहगी पड़ती थी, तथापि भाइयों के अन्याय से सुरक्षा
कहीं सुलभ थी तो बस यहीं। इसी स्वार्थानुकूलता ने उन दोनों में सहानुभूति का आरोपण16 कर दिया था। |
1.
दुख 2.
अच्छा इंसान 3.
सांसारिक दिलासा 4.
सिर्फ दया दिखाने मात्र से 5.
कभी 6.
अतिरिक्त खर्च का डर 7.
अपनी बात कहते जाना , यहाँ रोने के अर्थ में 8.
विरोध 9.
रोना और चिल्लाना 10.
क्रोध में भरकर 11.
सुनने में बुरे लगनेवाले शब्दों का प्रयोग 12.
ऊधम / उत्पात से छुटकारा 13.
प्रेम 14.
सुरक्षा स्थल 15.
लालच 16. एकदूसरे के प्रति भावनात्मक जुड़ाव का पैदा होना |
रात का समय था। बुद्धिराम के द्वार पर शहनाई बज रही
थी और गाँव के बच्चों का झुंड विस्मयपूर्ण1 नेत्रों से
गाने का रसास्वादन2 कर रहा था।
चारपाइयों पर मेहमान विश्राम करते हुए नाइयों से मुक्कियाँ3 लगवा रहे
थे। समीप खड़ा भाट विरुदावली4 सुना रहा
था और कुछ भावुक मेहमानों की 'वाह, वाह' पर ऐसा ख़ुश हो
रहा था मानो इस 'वाह-वाह' का यथार्थ5 में वही
अधिकारी है। दो-एक अंग्रेज़ी पढ़े हुए नवयुवक इन व्यवहारों से उदासीन6 थे। वे इस गँवार मंडली7 में बोलना अथवा सम्मिलित होना अपनी प्रतिष्ठा के
प्रतिकूल समझते थे। आज बुद्धिराम के बड़े लड़के सुखराम का तिलक आया है।
यह उसी का उत्सव है। घर के भीतर स्त्रियाँ गा रही थीं और रूपा मेहमानों के लिए
भोजन में व्यस्त थी। भट्टियों पर कड़ाह चढ़ रहे थे। एक में पूड़ियाँ-कचौड़ियाँ
निकल रही थीं, दूसरे में अन्य पकवान बनते थे। एक बड़े हंडे में मसालेदार तरकारी पक रही
थी। घी और मसाले की क्षुधावर्धक8 सुगंधि
चारों ओर फैली हुई थी। बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में शोकमय9 विचार की
भाँति बैठी हुई थीं। यह स्वाद
मिश्रित सुगंधि10 उन्हें बेचैन कर रही थी। वे मन-ही-मन विचार कर रही
थीं, संभवतः
मुझे पूड़ियाँ न मिलेंगीं। इतनी देर हो गई, कोई भोजन लेकर
नहीं आया। मालूम होता है सब लोग भोजन कर चुके हैं। मेरे लिए कुछ न बचा। यह सोचकर
उन्हें रोना आया, परन्तु अपशकुन11 के भय से
वह रो न सकीं। |
1 . आश्चर्य से भरे 2. आनंद लेना 3. मुट्ठी बाँधकर दबवाना 4. प्रशंसा गीत 5. सचमुच में ही 6. रुचि नहीं थी 7. भूखों के समूह 8. भूख बढ़ानेवाली 9. दुःख से भरकर 10. भोजन के स्वाद से भरी सुगंध 11 . बुरे शकुन |
'आहा... कैसी सुगंधि है? अब मुझे कौन पूछता है। जब
रोटियों के ही लाले
पड़े1 हैं तब ऐसे भाग्य कहाँ कि भरपेट पूड़ियाँ मिलें?' यह विचार कर उन्हें रोना आया, कलेजे
में हूक-सी उठने2 लगी। परंतु रूपा के भय से उन्होंने फिर मौन धारण3 कर लिया। बूढ़ी काकी देर तक इन्ही दुखदायक4 विचारों
में डूबी रहीं। घी और मसालों की सुगंधि रह-रहकर मन को आपे से बाहर किए देती थी।
मुँह में पानी भर-भर आता था। पूड़ियों का स्वाद स्मरण करके हृदय में गुदगुदी5 होने लगती थी। किसे पुकारूँ, आज लाडली बेटी भी नहीं आई। दोनों
छोकरे सदा दिक6 किया करते
हैं। आज उनका भी कहीं पता नहीं। कुछ मालूम तो होता कि क्या बन रहा है। बूढ़ी काकी की कल्पना में पूड़ियों की तस्वीर नाचने
लगी। ख़ूब लाल-लाल, फूली-फूली, नरम-नरम होंगीं। रूपा ने भली-भाँति
भोजन किया होगा। कचौड़ियों में अजवाइन और इलायची की महक आ रही होगी। एक पूड़ी
मिलती तो जरा हाथ में लेकर देखती। क्यों न चल कर कड़ाह के सामने ही बैठूँ।
पूड़ियाँ छन-छनकर7 तैयार होंगी। कड़ाह से गरम-गरम निकालकर थाल में रखी
जाती होंगी। फूल हम घर में भी सूँघ सकते हैं, परन्तु वाटिका में कुछ और बात होती
है। इस प्रकार निर्णय करके बूढ़ी काकी उकड़ूँ बैठकर हाथों के बल सरकती हुई बड़ी
कठिनाई से चौखट8 से उतरीं और धीरे-धीरे रेंगती9 हुई कड़ाह
के पास जा बैठीं। यहाँ आने पर उन्हें उतना ही धैर्य हुआ जितना भूखे कुत्ते को
खाने वाले के सम्मुख10 बैठने में
होता है। |
1.
कमी होना 2.
दिल मेँ दर्द -सा हुआ 3.
चुप्पी 4.
पीड़ा देनेवाले 5.
खुशी का अहसास 6.
तंग, परेशान 7.
कढ़ाही के तेल में सिककर 8.
दहलीज़ 9.
घिसटती हुईं 10.
सामने |
रूपा उस
समय कार्यभार से उद्विग्न1 हो रही थी। कभी इस कोठे में जाती, कभी उस कोठे में, कभी कड़ाह के पास जाती, कभी भंडार2 में जाती। किसी ने बाहर से आकर कहा--'महाराज ठंडाई मांग रहे हैं।' ठंडाई देने लगी। इतने
में फिर किसी ने आकर कहा--'भाट3 आया है, उसे कुछ दे दो।'
भाट के लिए सीधा निकाल4 रही थी कि
एक तीसरे आदमी ने आकर पूछा--'अभी भोजन तैयार
होने में कितना विलम्ब5 है? जरा ढोल, मजीरा उतार दो।' बेचारी
अकेली स्त्री दौड़ते-दौड़ते व्याकुल हो रही थी, झुंझलाती
थी, कुढ़ती थी, परन्तु क्रोध प्रकट
करने का अवसर न पाती थी। भय होता, कहीं पड़ोसिनें यह न
कहने लगें कि इतने में उबल पड़ीं। प्यास से स्वयं कंठ सूख रहा था। गर्मी के मारे
फुँकी जाती थी, परन्तु इतना अवकाश न था कि जरा पानी पी ले
अथवा पंखा लेकर झले। यह भी खटका6 था कि जरा
आँख हटी और चीज़ों की लूट मची। इस अवस्था में उसने बूढ़ी काकी को कड़ाह के पास
बैठी देखा तो जल गई। क्रोध न रुक सका। इसका भी ध्यान न रहा कि पड़ोसिनें बैठी
हुई हैं, मन में क्या कहेंगीं।
पुरुषों में लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे। जिस प्रकार मेंढक केंचुए पर झपटता है,
उसी प्रकार वह बूढ़ी काकी पर झपटी और उन्हें दोनों हाथों से झटक
कर बोली-- ऐसे पेट में आग लगे, पेट है या भाड़? कोठरी में बैठते हुए क्या दम घुटता था? अभी
मेहमानों ने नहीं खाया, भगवान को भोग नहीं लगा, तब तक धैर्य न हो सका? आकर छाती पर सवार हो गई। जल
जाए ऐसी जीभ। दिन भर खाती न होती तो जाने किसकी हांडी में मुँह डालती? गाँव देखेगा तो कहेगा कि बुढ़िया भरपेट खाने को नहीं पाती तभी तो इस तरह
मुँह बाए फिरती7 है। डायन
न मरे न पीछा छोड़े। नाम बेचने पर लगी है। नाक कटवा कर दम लेगी। इतनी ठूँसती है
न जाने कहाँ भस्म हो जाता है। भला चाहती हो तो जाकर कोठरी में बैठो, जब घर के लोग खाने लगेंगे, तब तुम्हे भी मिलेगा। तुम
कोई देवी नहीं हो कि चाहे किसी के मुँह में पानी न जाए, परन्तु
तुम्हारी पूजा पहले ही हो जाए। बूढ़ी काकी ने सिर उठाया, न
रोईं न बोलीं। चुपचाप रेंगती हुई अपनी कोठरी में चली गईं। आवाज़ ऐसी कठोर थी कि
हृदय और मष्तिष्क की सम्पूर्ण शक्तियाँ, सम्पूर्ण विचार और
सम्पूर्ण भार उसी ओर आकर्षित हो गए थे। नदी में जब कगार8 का कोई वृहद खंड9 कटकर
गिरता है तो आस-पास का जल समूह चारों ओर से उसी स्थान को पूरा करने के लिए
दौड़ता है। |
1.
परेशान 2.
सामान रखने की जगह 3.
प्रशंसा के गीत गानेवाला 4.
देने के लिए मिठाई आदि 5.
देरी 6.
संदेह, शंका 7.
मुँह खोलना 8.
किनारे 9.
बड़ा टुकड़ा |
भोजन तैयार हो गया है। आंगन में पत्तलें पड़ गईं, मेहमान खाने लगे। स्त्रियों ने जेवनार-गीत1 गाना आरम्भ कर दिया। मेहमानों के नाई और सेवकगण भी
उसी मंडली के साथ, किंतु कुछ हटकर भोजन करने बैठे थे, परन्तु सभ्यतानुसार
जब तक सब-के-सब खा न चुकें कोई उठ नहीं सकता था। दो-एक मेहमान जो कुछ पढ़े-लिखे
थे, सेवकों के दीर्घाहार2 पर झुंझला
रहे थे। वे इस बंधन को व्यर्थ और बेकार की बात समझते थे। बूढ़ी काकी अपनी कोठरी में जाकर पश्चाताप3 कर रही थी
कि मैं कहाँ-से-कहाँ आ गई। उन्हें रूपा पर क्रोध नहीं था। अपनी जल्दबाज़ी पर दुख
था। सच ही तो है जब तक मेहमान लोग भोजन न कर चुकेंगे, घर वाले कैसे खाएंगे। मुझ से इतनी
देर भी न रहा गया। सबके सामने पानी उतर4 गया। अब जब तक कोई बुलाने नहीं आएगा, न जाऊंगी। मन-ही-मन इस प्रकार का विचार कर वह बुलाने की
प्रतीक्षा करने लगीं। परन्तु घी की रुचिकर सुवास5 बड़ी धैर्य-परीक्षक6 प्रतीत हो
रही थी। उन्हें एक-एक पल एक-एक युग के समान मालूम होता था। अब पत्तल बिछ गई
होगी। अब मेहमान आ गए होंगे। लोग हाथ पैर धो रहे हैं, नाई पानी दे रहा है। मालूम होता है
लोग खाने बैठ गए। जेवनार गाया जा रहा है, यह विचार कर वह
मन को बहलाने के लिए लेट गईं। धीरे-धीरे एक गीत गुनगुनाने लगीं। उन्हें मालूम
हुआ कि मुझे गाते देर हो गई। क्या इतनी देर तक लोग भोजन कर ही रहे होंगे। किसी
की आवाज़ सुनाई नहीं देती। अवश्य ही लोग खा-पीकर चले गए। मुझे कोई बुलाने नहीं
आया है। रूपा चिढ़ गई है, क्या जाने न बुलाए। सोचती हो कि
आप ही आवेंगीं, वह कोई मेहमान तो नहीं जो उन्हें बुलाऊँ।
बूढ़ी काकी चलने को तैयार हुईं। यह विश्वास कि एक |
1.
खाने के समय गाये जाने वाले गीत 2.
खाने में ज्यादा समय लगाने पर 3.
पछतावा 4.
इज्जत कम होना 5.
सुगंध 6. मन
की स्थिरता की परीक्षा लेने वाली |
मिनट में पूड़ियाँ और मसालेदार तरकारियाँ1 सामने
आएँगीं, उनकी स्वादेन्द्रियों2 को गुदगुदाने लगा। उन्होंने मन में तरह-तरह के मंसूबे बांधे3-- पहले
तरकारी से पूड़ियाँ खाऊंगी, फिर दही और शक्कर से, कचौरियाँ रायते के साथ
मज़ेदार मालूम होंगी। चाहे कोई बुरा माने चाहे भला, मैं तो
मांग-मांगकर खाऊंगी। यही न लोग कहेंगे कि इन्हें विचार नहीं? कहा करें, इतने दिन के बाद पूड़ियाँ मिल रही हैं
तो मुँह झूठा4 करके थोड़े ही उठ जाऊँगी । वह उकड़ूँ बैठकर सरकते हुए आंगन में आईं। परन्तु
हाय दुर्भाग्य! अभिलाषा5 ने अपने
पुराने स्वभाव के अनुसार समय की मिथ्या6 कल्पना की थी। मेहमान-मंडली अभी बैठी हुई थी। कोई
खाकर उंगलियाँ चाटता था, कोई तिरछे नेत्रों से देखता था कि और लोग अभी खा रहे हैं या नहीं। कोई
इस चिंता में था कि पत्तल पर पूड़ियाँ छूटी जाती हैं किसी तरह इन्हें भीतर रख
लेता। कोई दही खाकर चटकारता7 था, परन्तु दूसरा दोना मांगते संकोच
करता था कि इतने में बूढ़ी काकी रेंगती हुई उनके बीच में आ पहुँची। कई आदमी
चौंककर उठ खड़े हुए। पुकारने लगे-- अरे, यह बुढ़िया कौन है?
यहाँ कहाँ से आ गई? देखो, किसी को छू न दे। पंडित बुद्धिराम काकी को देखते ही क्रोध से तिलमिला
गए। पूड़ियों का थाल लिए खड़े थे। थाल को ज़मीन पर पटक दिया और जिस प्रकार निर्दयी महाजन8 अपने किसी बेइमान और भगोड़े कर्ज़दार को देखते ही
उसका टेंटुआ पकड़9 लेता है उसी तरह लपक कर उन्होंने काकी के दोनों हाथ
पकड़े और घसीटते हुए लाकर उन्हें अंधेरी कोठरी में धम से पटक दिया। आशारूपी वटिका लू10 के एक
झोंके में विनष्ट11 हो गई। |
1.
सब्जियाँ 2.
जीभ 3.
पूर्व योजना 4.
थोड़ा-सा खाकर 5.
मन की इच्छा ने 6.
गलत, झूठी 7.
चाटकर स्वाद लेना 8.
दयाहीन व्यापारी 9.
गला पकड़ लेता 10.
कल्पनाओं का बगीचा 11.
तेज़ गर्म हवा 12.
समाप्त |
मेहमानों ने भोजन किया। घरवालों ने भोजन किया। बाजे
वाले, धोबी,
चमार भी भोजन कर चुके, परन्तु बूढ़ी काकी को
किसी ने न पूछा। बुद्धिराम और रूपा दोनों ही बूढ़ी काकी को उनकी निर्लज्जता1 के लिए दंड
देने क निश्चय कर चुके थे। उनके बुढ़ापे पर, दीनता2 पर, हत्
ज्ञान3 पर किसी को करुणा4 न आई थी।
अकेली लाडली उनके लिए कुढ़5 रही थी। लाडली को काकी से अत्यंत प्रेम था। बेचारी भोली
लड़की थी। बाल-विनोद और चंचलता की उसमें गंध तक न थी। दोनों बार जब उसके
माता-पिता ने काकी को निर्दयता से घसीटा तो लाडली का हृदय ऎंठकर6 रह गया। वह झुंझला रही थी कि हम लोग काकी को क्यों
बहुत-सी पूड़ियाँ नहीं देते। क्या मेहमान सब-की-सब खा जाएंगे? और यदि काकी ने मेहमानों से पहले
खा लिया तो क्या बिगड़ जाएगा? वह काकी के पास जाकर उन्हें
धैर्य देना चाहती थी, परन्तु माता के भय से न जाती थी।
उसने अपने हिस्से की पूड़ियाँ बिल्कुल न खाईं थीं। अपनी गुड़िया की पिटारी7 में बन्द कर रखी थीं। उन पूड़ियों को काकी के पास
ले जाना चाहती थी। उसका हृदय अधीर8 हो रहा था। बूढ़ी काकी मेरी बात सुनते ही उठ
बैठेंगीं, पूड़ियाँ देखकर कैसी प्रसन्न होंगीं! मुझे खूब प्यार करेंगीं। |
1. असम्मानजनक कार्यं 2. विवशता 3. कम बुद्धि 4. क्या 5. मन में दुखी होना 6. कुछ न कर पाने से दुखी होकर रह जाना 7. गुड़िया रखने का डिब्बा 8. बेचैन |
रात को ग्यारह बज गए थे। रूपा आंगन में पड़ी सो रही
थी। लाडली की आँखों में नींद न आती थी। काकी को पूड़ियाँ खिलाने की खुशी उसे
सोने न देती थी। उसने गु़ड़ियों की पिटारी सामने रखी थी। जब विश्वास हो गया कि
अम्मा सो रही हैं, तो वह चुपके से उठी और विचारने लगी, कैसे चलूँ।
चारों ओर अंधेरा था। केवल चूल्हों में आग चमक रही थी और चूल्हों के पास एक
कुत्ता लेटा हुआ था। लाडली की दृष्टि सामने वाले नीम पर गई। उसे मालूम हुआ कि उस
पर हनुमान जी बैठे हुए हैं। उनकी पूँछ, उनकी गदा, सब स्पष्ट दिखलाई दे रही है। मारे भय के उसने आँखें बंद कर लीं। इतने
में कुत्ता उठ बैठा, लाडली को ढाढ़स1 हुआ। कई
सोए हुए मनुष्यों के बदले एक जागता हुआ कुत्ता उसके लिए अधिक धैर्य का कारण हुआ।
उसने पिटारी उठाई और बूढ़ी काकी की कोठरी की ओर चली। बूढ़ी काकी को केवल इतना स्मरण था कि किसी ने मेरे
हाथ पकड़कर घसीटे, फिर ऐसा मालूम हुआ कि जैसे कोई पहाड़ पर उड़ाए लिए जाता है। उनके पैर
बार-बार पत्थरों से टकराए तब किसी ने उन्हें पहाड़ पर से पटका, वे मूर्छित2 हो गईं। जब वे सचेत3 हुईं तो किसी की ज़रा भी आहट4 न मिलती
थी। समझी कि सब लोग खा-पीकर सो गए और उनके साथ मेरी तकदीर5 भी सो गई।
रात कैसे कटेगी? राम! क्या खाऊँ? पेट में अग्नि धधक रही6 है। हा! किसी ने मेरी सुधि न ली7। क्या मेरा पेट काटने8 से धन जुड़ जाएगा? इन लोगों को इतनी भी दया नहीं आती
कि न जाने बुढ़िया कब मर जाए? उसका जी क्यों दुखावें? |
1.
हिम्मत हुई 2.
बेहोश 3.
होश आया 4.
कोई आवाज़ भी 5.
भाग्य 6.
बहुत भूख लग रही है 7.
ध्यान न रखा 8.
भूखा रखने से |
मैं पेट की रोटियाँ ही खाती हूँ कि और कुछ? इस पर यह हाल। मैं अंधी, अपाहिज1 ठहरी, न कुछ सुनूँ, न बूझूँ2। यदि आंगन में चली गई तो क्या बुद्धिराम से इतना
कहते न बनता था कि काकी अभी लोग खाना खा रहे हैं फिर आना। मुझे घसीटा, पटका। उन्ही पूड़ियों के लिए रूपा
ने सबके सामने गालियाँ दीं। उन्हीं पूड़ियों के लिए इतनी दुर्गति3 करने पर भी
उनका पत्थर का कलेजा4 न पसीजा5। सबको खिलाया, मेरी बात तक न पूछी। जब तब ही न
दीं, तब अब क्या देंगे? सहसा कानों में आवाज़ आई-- 'काकी उठो, मैं
पूड़ियां लाई हूँ।' काकी ने लाड़ली की बोली पहचानी। चटपट
उठ बैठीं। दोनों हाथों से लाडली को टटोला और उसे गोद में बिठा लिया। लाडली ने पूड़ियाँ निकालकर दीं। काकी ने पूछा--
क्या तुम्हारी अम्मा ने दी है? लाडली ने कहा-- नहीं, यह मेरे हिस्से की हैं। काकी
पूड़ियों पर टूट पडीं। पाँच मिनट में पिटारी खाली हो गई। लाडली ने पूछा-- काकी पेट भर गया। जैसे थोड़ी-सी वर्षा ठंडक के स्थान पर और भी गर्मी
पैदा कर देती है उस भाँति इन थोड़ी पूड़ियों ने काकी की क्षुधा6 और इच्छा
को और उत्तेजित7 कर दिया था। बोलीं-- नहीं बेटी, जाकर अम्मा से और मांग लाओ। लाड़ली ने कहा-- अम्मा सोती हैं, जगाऊंगी तो मारेंगीं। काकी ने पिटारी को फिर टटोला। उसमें कुछ खुर्चन8 गिरी थी।
बार-बार होंठ चाटती थीं, चटखारे9 भरती थीं। |
1.
चलने में असमर्थ 2.
न सुन सकती ,न समझ सकती 3.
बुरा व्यवहार 4.
भावनाहीन हृदय 5.
दया पैदा होना 6.
भूख 7.
बड़ा 8.
बचे हुए अंश 9.
स्वाद के लिए चाटना |
हृदय मसोस1 रहा था कि और पूड़ियाँ कैसे पाऊँ। संतोष-सेतु2 जब टूट जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित3 हो जाता
है। मतवालों को मद4 का स्मरण करना उन्हें मदांध5 बनाता है।
काकी का अधीर मन6 इच्छाओं के प्रबल प्रवाह7 में बह
गया। उचित और अनुचित8 का विचार जाता रहा। वे कुछ देर तक उस इच्छा को
रोकती रहीं। सहसा लाडली से बोलीं-- मेरा हाथ पकड़कर वहाँ ले चलो, जहाँ मेहमानों ने बैठकर भोजन किया
है। लाडली उनका अभिप्राय9 समझ न सकी।
उसने काकी का हाथ पकड़ा और ले जाकर झूठे पत्तलों के पास बिठा दिया। दीन, क्षुधातुर10, हत् ज्ञान
बुढ़िया पत्तलों से पूड़ियों के टुकड़े चुन-चुनकर भक्षण11 करने लगी।
ओह... दही कितना स्वादिष्ट था, कचौड़ियाँ कितनी सलोनी12, ख़स्ता
कितने सुकोमल। काकी बुद्धिहीन होते हुए भी इतना जानती थीं कि मैं वह काम कर रही
हूं, जो मुझे
कदापि न करना चाहिए। मैं दूसरों की झूठी पत्तल चाट रही हूँ। परन्तु बुढ़ापा तृष्णा13 का अंतिम समय है, जब सम्पूर्ण इच्छाएँ एक ही केन्द्र
पर आ लगती हैं। बूढ़ी काकी में यह केन्द्र उनकी स्वादेन्द्रिय थी। ठीक उसी समय रूपा की आँख खुली। उसे मालूम हुआ कि
लाड़ली मेरे पास नहीं है। वह चौंकी, चारपाई के इधर-उधर ताकने लगी कि कहीं नीचे तो नहीं गिर पड़ी। उसे वहाँ
न पाकर वह उठी तो क्या देखती है कि लाड़ली जूठे पत्तलों के पास चुपचाप खड़ी है
और बूढ़ी काकी पत्तलों पर से पूड़ियों के टुकड़े उठा-उठाकर खा रही है। रूपा का हृदय सन्न14 हो गया। |
1 . दिल में पीड़ा हीना 2. सब्र का बाँध 3. बहुत, सीमाहीन 4. मनमर्जी से काम करने वालों को उनकी ताकत की याद
दिलाने पर 5. ताकत के अहंकार में अंधे 6. बेचैन मन 7. इच्छाओं के तेज़ बहाब में 8. क्या करना सही है क्या गलत है का विचार 9. मतलब 10. भूख से व्याकुल 11. खाने 12. सुन्दर 13. किसी वस्तु को गाने को भयंकर इच्छा का 14. स्तब्ध, कुछ न सोच पाने की स्थिति |
किसी गाय की गरदन पर छुरी चलते देखकर जो अवस्था1 उसकी होती, वही उस समय हुई। एक ब्राह्मणी दूसरों की झूठी पत्तल टटोले, इससे अधिक शोकमय2 दृश्य असंभव था। पूड़ियों के कुछ ग्रासों3 के लिए
उसकी चचेरी सास ऐसा निष्कृष्ट
कर्म4 कर रही है। यह वह दृश्य था जिसे देखकर देखने वालों
के हृदय काँप उठते हैं। ऐसा प्रतीत होता मानो ज़मीन रुक गई, आसमान चक्कर खा रहा है। संसार पर
कोई आपत्ति आने वाली है। रूपा को क्रोध न आया। शोक के सम्मुख5 क्रोध कहाँ? करुणा और भय से उसकी आँखें भर आईं। इस अधर्म का भागी कौन है? उसने सच्चे हृदय से गगन मंडल की ओर हाथ उठाकर कहा-- परमात्मा, मेरे बच्चों पर दया करो। इस अधर्म का दंड मुझे मत दो, नहीं तो मेरा सत्यानाश हो जाएगा। रूपा को अपनी स्वार्थपरता6 और अन्याय
इस प्रकार प्रत्यक्ष रूप7 में कभी न दिख पड़े थे। वह सोचने लगी-- हाय! कितनी
निर्दय हूँ। जिसकी सम्पति से मुझे दो सौ रुपया आय हो रही है, उसकी यह दुर्गति और मेरे कारण। हे
दयामय भगवान! मुझसे बड़ी भारी चूक हुई है, मुझे क्षमा करो।
आज मेरे बेटे का तिलक था। सैकड़ों मनुष्यों ने भोजन पाया। मैं उनके इशारों की
दासी बनी रही। अपने नाम के लिए सैकड़ों रुपए व्यय कर दिए, परन्तु
जिसकी बदौलत हज़ारों रुपए खाए, उसे इस उत्सव में भी भरपेट
भोजन न दे सकी। केवल इसी कारण तो कि वह वृद्धा है, असहाय
है। रूपा ने दिया जलाया, अपने भंडार का द्वार खोला और एक थाली
में सम्पूर्ण सामग्रियाँ सजाकर बूढ़ी
काकी की ओर चली। |
1. स्थिति 2. दुखी करने वाला 3. गस्सा, कौर, टुकड़ा 4. बुरा काम 5. असीम दुःख के सामने 6. स्वार्थीपन 7. अपने सामने |
आधी रात जा चुकी थी, आकाश पर तारों के थाल सजे हुए थे
और उन पर बैठे हुए देवगण स्वर्गीय पदार्थ सजा रहे थे, परन्तु
उसमें किसी को वह परमानंद प्राप्त न हो सकता था, जो बूढ़ी
काकी को अपने सम्मुख थाल देखकर प्राप्त हुआ। रूपा ने कंठारुद्ध1 स्वर में
कहा---काकी उठो, भोजन कर लो। मुझसे आज बड़ी भूल हुई, उसका बुरा न
मानना। परमात्मा से प्रार्थना कर दो कि वह मेरा अपराध क्षमा कर दें। भोले-भोले बच्चों की भाँति, जो मिठाइयाँ पाकर मार और तिरस्कार2 सब भूल जाता है, बूढ़ी काकी वैसे ही सब भुलाकर बैठी
हुई खाना खा रही थी। उनके एक-एक रोंए से सच्ची सदिच्छाएँ3 निकल रही थीं और रूपा बैठी स्वर्गीय दृश्य का आनन्द
लेने में निमग्न4 थी। |
1. रुंधे /भरे गले से 2. घृणा, अपमान 3. अच्छी भावनाएँ 4- डूबी हुई , रमी हुईं , खोई हुईं |
- विविध
- स्पर्श-01(कक्षा-9)
- 1. धूल
- 2. दुःख का अधिकार
- 3. एवरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा)
- 4. तुम कब जाओगे अतिथि
- 5. वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन
- 6. कीचड़ का काव्य
- 7. धर्म की आड़(Removed 23-24)
- 8. शुक्र तारे के समान
- ------------पद्य भाग------------
- 9. रैदास के पद )
- 10. रहीम : दोहे
- 11. आदमीनामा(Removed 23-24)
- 4. एक फूल की चाह (Removed 23-24)
- 5. गीत-अगीत
- 6. अग्निपथ
- 7. नए इलाके में
- 8. खुशबू रचते हैं हाथ
- संचयन-1(कक्षा-9)
- व्याकरण(कक्षा-9)
- स्पर्श-2(कक्षा-10)
- 1. बड़े भाई साहब
- 2. डायरी का एक पन्ना
- 3. तताँरा वामीरो कथा
- 4. तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र )
- 5. गिरगिट (Removed-23-24)
- 6. अब कहाँ दूसरों के दुःख से दुःखी होने वाले
- 7. पतझर में टूटी पत्तियाँ {झेन की देन}
- 8. कारतूस
- ------------पद्य भाग------------
- 1. कबीर : साखी
- 2.मीरा : पद
- 3. बिहारी : दोहे(Removed 23-24)
- 4.मनुष्यता
- 5. पर्वत प्रदेश में पावस
- 6. मधुर मधुर मेरे दीपक जल(Removed 23-24)
- 7. तोप
- 8. कर चले हम फ़िदा
- 9. आत्मत्राण
- संचयन-2(कक्षा-10)
- व्याकरण(कक्षा-10)
- जाँच(Tests)-9
- जाँच(Tests)-10
- कक्षा 10 जाँच:- बड़े भाई साहब (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- डायरी का एक पन्ना (OPEN
- कक्षा 10 जाँच:- मीरा (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- कबीर : साखी (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- तताँरा-वामीरो कथा (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- मनुष्यता (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- पर्वत प्रदेश में पावस (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- मधुर मधुर मेरे दीपक जल (CLOSED)
- कक्षा 10 जाँच:-बिहारी के दोहे (CLOSED)
- -----------------------
- कक्षा 10 जाँच- 1:- समास-1 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच-2:- समास-2 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:-वाक्य एवं वाक्य संश्लेषण-1 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- वाक्य रचना एवम् वाक्य संश्लेषण-2 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- वाक्य रचना एवं वाक्य संश्लेषण-3 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- वाक्य रचना एवं वाक्य संश्लेषण-4 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- वाक्य रचना एवं वाक्य संश्लेषण-5 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ-2 (OPEN NEW)
- कक्षा 10 जाँच:- अपठित गद्यांश–1 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:- अपठित गद्यांश–2 (OPEN)
- कक्षा 10 जाँच:-पदबंध (OPEN)
- वर्ण-विच्छेद (OPEN)
- संधि (OPEN)
- कक्षा 9 जाँच : विराम चिह्न (OPEN)
- अन्य व्याकरण
- मुख के उच्चारण स्थान
- कि और की का प्रयोग
- घ और ध का प्रयोग
- ड, ढ, ड़, ढ़ का प्रयोग व उच्चारण
- श, ष, स का अंतर व प्रयोग
- रेफ का प्रयोग
- द्वित्व व्यंजन प्रयोग
- पंचमाक्षर प्रयोग
- संयुक्ताक्षर
- वर्ण-विच्छेद
- हिन्दी भाषा शब्दकोश कैसे देखें
- लिंग
- वचन
- वाक्य अशुद्धि शोधन
- नुक़्ता
- स्वर संधि
- विराम चिह्न
- चित्र वर्णन
- कारक
- कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों का ज्ञान
- पर्यायवाची शब्द
- मुहावरे
- अन्य पत्र
- Hindi Grammar words in English
- **** कक्षा 8 : वसंत (भाग-2)****
- कक्षा-8 वसंत (भाग-3)
- 2. लाख की चूड़ियाँ
- 3.बस की यात्रा
- 4. दीवानों की हस्ती (कविता)
- 5. चिट्ठियों की अनूठी दुनिया (लेख)
- 6. भगवान के डाकिए (कविता)
- 7. क्या निराश हुआ जाए (निबंध)
- 8.यह सबसे कठिन समय नहीं (कविता)
- 9. कबीर की साखियाँ
- 10. कामचोर (कहानी)
- 11. जब सिनेमा ने बोलना सीखा
- 12. सुदामा चरित (कविता)
- 13. जहाँ पहिया है (रिपोर्ताज)
- 14. अकबरी लोटा (कहानी)
- 15. सूर के पद
- 16. पानी की कहानी (लेख)
- 17. बाज और साँप (कहानी)
- 18. टोपी
1. बूढ़ी काकी
BUDHI KAKI