सोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात।
मनौ नीलमनि-सैल पर आतपु परयो प्रभात।।
शब्दार्थ:-
सोहत - शोभायमान होना, सुन्दर रूप में दिखना
औढ़े - ओढ़कर, पहनकर
पीतु - पीला
पटु - वस्त्र
स्याम - साँवले कृष्ण
सलौंने - सुन्दर
गात - शरीर
मनौ - मानो
नीलमनि-सैल - नीलम के पर्वत पर
आतपु - आकर
परयो - गिरता है
प्रभात - सुबह
2.
कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ।
जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।।
शब्दार्थ:-
कहलाने - कहे जाने भर के लिए
एकत - एक साथ
बसत - रहते हैं
अहि - साँप
मयूर - मोर
मृग - हिरण
बाघ - शेर
जगतु - संसार को
तपोबन - तप के जंगल, ऋषि-मुनि जहाँ साधना करते हो
सौ - जैसा
कियौ - कर दिया
दीरघ-दाघ - बहुत गर्मी
निदाघ - ग्रीष्मकाल की/ गर्मी की ऋतु में
(तपोवन यानि वह वन जहाँ ऋषि&मुनिजन तपस्या करते हैं और उनके तप के प्रभाव से चारों ओर प्रेम का वातावरण बन जाता है।)
3.
बतरस-लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करैं भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाइ।।
शब्दार्थ:-
बतरस - बत यानि बात और रस यानि आनंद (बात करने के आनंद)
लाल - बालक कृष्ण
मुरली - बांसुरी, वंशी
धरी - रख दी
लुकाइ - छिपा कर
सौंह- संकेत
भौंहनु - आँख की हड्डी पर जमे हुए बाल, भृकुटी
हँसै - हँसती है
दैन कहैं - देने को कहने पर
नटि जाइ - मना कर देती हैं।
4.
कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन मैं करत हैं नैननु हीं सब बात।।
शब्दार्थ:-
कहत - कहना
नटत- मना करना
रीझत - मोहित होना
खिझत – झुंझलाना, चिढ़ना
खिलत- चेहरे पर प्रसन्नता आना
लजियात - शरमा जाना, लजा जाना
भौन - घर
नैननु - आँखों से
5.
बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन-तन माँह।
देखि दुपहरी जेठ की छाँहौं चाहति छाँह।।
शब्दार्थ:-
अति - बहुत
सघन - घने
बन - जंगल
पैठि - घुस जाना
सदन- घर
तन - शरीर
माँह - के भीतर
जेठ - हिन्दी में एक महीने का नाम लगभग जून का समय
छाँहौं - छाया
चाहति - इच्छा करना
6.
कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात।
कहिहै सबु तेरौ हियौ, मेरे हिय की बात।।
शब्दार्थ:-
कागद - कागज पर
कहत - कहते हुए
सँदेसु - सन्देश
लजात - शर्म आना
कहिहै - कह देता है
सबु - सब कुछ
हियौ - हृदय, दिल
7.
प्रगट भए द्विजराज-कुल, सुबस बसे ब्रज आइ।
मेरे हरौ कलेस सब, केसव केसवराइ।।
शब्दार्थ:-
प्रगट भए - पैदा हुए
द्विजराज - ब्राह्मण
कुल - वंश
सुबस - अच्छे कार्य करने के लिए या अच्छे कारणों से
बसे - रहना
ब्रज - ब्रज भूमि में
हरौ - दूर करो
कलेस - क्लेश, पीड़ा, दुःख
केसव - कृष्ण का एक नाम
केसवराइ- केशव का पुत्र ( बिहारी के पिता का नाम भी केशव था)
8.
जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन-काँचै नाचै बृथा, साँचै राँचै रामु।।
शब्दार्थ:-
जपमाला - भगवान का नाम लेने के लिए बनी मनकों की माला
छापैं - विभिन्न प्रकार के धार्मिक चिह्न
सरै - सम्भव होना
न - नहीं
एकौ - एक भी
कामु -काम, कार्य
मन-काँचै - मन कच्चा है
नाचै -नाचता रहता है/ भटकता रहता है
बृथा - व्यर्थ ही बेकार ही
साँचै - सच्चा है
राँचै - रचा रहता है, लगा रहता है
रामु - राम की ओर
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आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh Part-2 for Class 10 CBSE