Anudaan se paravalamban
ko badhava milta hai
आदरणीय अध्यक्ष महोदय, आज
की वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है- अनुदान से परावलंबन को बढ़ावा मिलता है और
मैं सदन की राय से पूर्णतः असहमत हूँ।
सर्वप्रथम मैं बताना
चाहूँगा कि अनुदान होता क्या है ? अनुदान शब्द का अर्थ होता है - सहायता देने का
कार्य, दान। परावलंबन का अर्थ होता है दूसरों पर निर्भर होना। मान्यवर,
प्राचीन साहित्य में कहा गया है कि जिनके पास ज्ञान है उन्हें ज्ञान का, जिनके पास
विद्या है उन्हें विद्या का , जिनके पास धन है उन्हें धन का और जिनके पास देने के
लिए कुछ भी नहीं है उन्हें सेवा का दान करना चाहिए। आप दूसरों की
आवश्यकतानुसार सहायता तभी का सकते हैं जब आपकी स्वयं की स्थिति उस सहायता को
करने के लायक हो। जैसे धन आपके पास होगा तभी आप दूसरों की धन संबंधी सहायता कर
सकेंगे। दूसरों की सहायता करने से जहाँ एक ओर स्वयं को आत्मिक संतुष्टि मिलती है
वहीं दूसरी ओर पाने वाले को अपने कष्ट से मुक्ति। जिसे आपके अनुदान की
आवश्यकता ही नहीं है और उसे अनुदान दिया जाए तब अनुदान देने वाला हँसी का
पात्र बन जाता है; निरादर का पात्र बन जाता है। मान्यवर, इस संसार में इस प्रकार
किसी मुकेश अम्बानी को अनुदान देकर कोई भी हँसी का पात्र क्यों बनना चाहेगा।
इसलिए अनुदान योग्य पात्र को ही दिया जाता है।
मान्यवर, क्या हमें
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का पाठ नहीं पढ़ाया जाता ? क्या हमें दूसरों की सहायता करने के
षिक्षा नहीं दी जाती ? क्या हमें यह नहीं बताया जाता है कि देश की सेवा सर्वप्रथम
कर्तव्य है? फिर क्यों यह दोहरा रूप अपनाकर सदन को गुमराह करने का प्रयास
किया जा रहा है? जब तक हममें सेवा करने की भावना नहीं होगी तब तक हम क्या कोई भी
देश और जाति विकास को प्राप्त नहीं हो सकती; जब तक हममें ज्ञान बाँटने की चाह नहीं
होगी तब तक कोई देख या जाति विकास को प्राप्त नहीं हो सकती है; जब तक मानव जीवन को
बेहतर बनाने की भावना नहीं होगी तब तक कोई देश या समाज विकास के
रास्ते पर नहीं हो सकता है। क्या ऐसा होता है कि बच्चा पैदा होते ही अपने कार्य
स्वयं करना चालू कर देता है? क्या ऐसा होता है कि हमें अपने विकास के लिए किसी की
भी सहायता और निर्भरता की आवश्यकता नहीं होती है; क्या ऐसा होता है कि हमें सभी को
एक-दूसरे का सहयोग करके आगे बढ़ने की कल्याणकारी सीख नहीं दी जाती है ? मान्यवर,
ईश्वर ने प्रत्येक प्राणी को परावलम्बित बनाया है। बच्चा माता-पिता पर
निर्भर है; माता पिता समाज और देश पर निर्भर है। किसी न किसी स्तर पर हम सभी
एक दूसरे से जुड़े हुए हैं ऐसे में अनुदान परावलम्बन को बढ़ावा कैसे दे सकता है ?
मान्यवर, अनुदान
शब्द का प्रयोग अत्यंत संकुचित अर्थ में सिर्फ आर्थिक पक्ष के लिए किया जाए
यह सर्वथा गलत होगा। सरकारी और गैर-सरकारी भाषा में अनुदान शब्द का प्रयोग अधिक
देखने व सुनने में आता है। यह अनुदान सरकार के द्वारा लोगों व संस्थाओं को दिया
जाता है तो भामाशाहों द्वारा सरकार को। क्यों होता है ऐसा - क्योंकि सरकार व
भामाशाह दोनों ही चाहते हैं कि धन का सहयोग प्रदान कर लोगों के जीवन के
विभिन्न स्तरों को सुधारा जाए; समाज की स्थितियों में सुधार लाया जाए।
क्या ऐसा करने का विचार करना और किया जाना गलत है ?
मान्यवर, मेरे विपक्षी
वक्ताओं को समझना चाहिए कि अनुदान, अनुदान है; भीख नहीं है ? भीख माँगना और देना
परावलंबन को बढ़ावा देना होता है; काननून अपराध होता है क्योंकि यह निकम्मा बनाती
है परन्तु अनुदान व्यक्ति, समाज और देश के विकास के लिए स्थापित एक व्यवस्था
का नाम है। मान्यवर, विपक्ष वक्ता जब इसे और गहरे अर्थ में लेंगे तब जानेंगे
कि अनुदान निर्माण की एक व्यवस्था है; अनुदान विकास की एक व्यवस्था है; अनुदान सब
को साथ लेकर चलने की एक व्यवस्था है; अनुदान, सभी को समान अवसर प्रदान करने की एक
व्यवस्था है। और प्रत्येक मानव जीवन में इन सभी व्यवस्थाओं का होना जरुरी है।
इसलिए अनुदान से परावलम्बन को बढ़ावा नहीं मिलता है। (समाप्त)
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अनुदान से परावलंबन को बढ़ावा मिलता है- विपक्ष
आदरणीय अध्यक्ष महोदय, आज की
वाद-विवाद प्रतियोगिता का विषय है- अनुदान से परावलंबन को बढ़ावा मिलता है और मैं
सदन की राय से पूर्णतः सहमत हूँ।
मान्यवर, लेने वाले का
हाथ सदा नीचे ही रहता है और देने वाले का हाथ सदा ऊपर - यह हम सभी जानते हैं। इस
संसार में भाँति-भाँति के आदमी हैं । कोई किस प्रकार से व्यवहार करता है तो कोई
किस प्रकार से। पर सभी के साथ एक बात समान रूप से लागू होती है कि सभी के चरित्र
में कोई न कोई कमी अवश्य विद्यमान होती है। लोभ, लालच, मोह ऐसी प्रवृत्तियाँ
हैं जो सभी में कम ज्यादा मात्रा में रहती हैं। फिर एक आम भारत का चरित्र ऐसा होता
जा रहा है कि कोई भी किसी भी प्रकार से मिले मुफ्त लाभ को छोड़ना नहीं चाहता है।
मान्यवर, जब जिम्मेदारी के पदों पर बैठे विशेष योग्यताधारी लोग अपने लाभ के लिए
किसी भी स्तर पर उतर आते हैं तो फिर आम आदमी का तो क्या कहना ? ऐसे में अनुदान
यानि एक प्रकार की मुफ्त में मिलने वाली सहायता के लिए कौन न भागेगा ?
हां
मान्यवर, अनुदान किसी भी
प्रकार का क्यों न हो, देने वाले का हाथ ऊपर और पानेवाले का हाथ नीचे ही रहता है।
जिस मुल्क में हेराफेरी हर स्तर पर बढ़ती जा रही है; राशन-कार्ड में मुर्दो को
जिन्दा कर दिया जाता है ताकि उस व्यक्ति के नाम का राशन मिल सके;
नरेगा में आदमियों की संख्या अधिक बताई जाती है कि उनके नाम से सरकार से
मिलनेवाला पैसा उनके अधिकारी की जेब में जा सके; ट्रैफिक पुलिस 50 रूपए में अपराधी
को छोड़ देती है; 50 हजार में तो किसी का स्थान तो क्या अपराध भी ट्रांसफर हो जाता
है उस स्थिति में अनुदान का क्या होता होगा ? आपने खून दिया पता लगा वह 50 से 100
रूपए में ब्लड-बैंक से निकला और पाँच-सौ में कहीं बिक गया। जहाँ कार्य से पहले
कमीशन की बात आ जाती है उस स्थिति में अनुदान के प्रति लोगों की क्या मानसिकता
होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
मान्यवर, उदाहरण के तौर
पर बताना चाहूँगा कि नरेगा के तहत लगे आदमियों को सरकार अपना वोट बैंक बचाने के
लिए जितना पैसा खर्च कर रही है उसने आज सभी उद्योंगों के सामने एक समस्या खड़ी कर
दी है कि उद्योंगों को अपने यहाँ काम करनेवाले आदमी ही नहीं मिल रहे हैं क्योंकि
पता लगता है कि एक ही परिवार के सभी जने अपना काम-धंधा छोड़कर एक ही काम कर रहें
हैं वह है नरेगा में मजदूरी। दो घंटे में एक जगह खड्ढा खोदकर मिट्टी दूसरी जगह डाल
देना और बाकि छः घंटे बैठकर घर, परिवार से लेकर जमाने भर की बातें करना या फिर
वक्त को धुएँ में उड़ाना। जो अनुदान या सहायता इस प्रकार व्यक्ति को निकम्मा बनाने
में लगी हो कि उसे कुछ करना न पड़े और बैठे-बैठे परिवार का गुजारा चल जाए ऐसा
अनुदान समाज में परावलंबन को बढ़ावा देता है और समाज और देश की प्रगति को अवरूद्ध
कर देता है।
मान्यवर, शिक्षा,
चिकित्सा, न्याय व परिवहन के क्षेत्रों का कहना ही क्या ? आपको हर क्षेत्र में
अनुदान मिलेगा। सरकार वोट की राजनीति खेलती है और नोटों का हस्तांतरण हो जाता है।
गरीबों के जीवन की दशा सुधारने के नाम पर अनुदान की राह पकड़ी जाती है।
रेवड़ियाँ बँटती है पर बाँटने वाला हर आदमी अंधा ही होता है। अनुदान का एक ही काम
है और वह है, आदमी को पूरी तरह नकारा और आश्रित बना देना। शरीर और धन की भूख कभी
समाप्त नहीं होती है। हिन्दुस्तान में एक बार जिसे मुफ्त की रोटियाँ तोड़ने को मिल
जाती हैं; वह चाहता है कि जिन्दगी यदि ऐसे ही चलती रहे तो नुकसान क्या है? इसलिए
अंत में यही कहूँगा कि अनुदान से परावलंबन को बढ़ावा मिलता है।(समाप्त)
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