युवाओं में ही समाज व राष्ट्र में परिवर्तन लाने की शक्ति है। - पक्ष

Yuvaon Me hi samaj va Rashtra me Parivartan Lane ki sakti hai - For

आदरणीय अध्यक्ष महोदय,

मैं सदन के इस विचार से पूरी तरह सहमत हूँ कि युवाओं में ही समाज राष्ट्र में परिवर्तन लाने की शक्ति है।

मान्यवर, जब भी युवाओं के द्वारा कार्य किए जाने की बात आती है तो कहा जाता है कि उनमें  जोश होता है पर होश नहीं होता, उनके पास अनुभव की कमी होती है वे किसी कार्य को धैर्य के साथ करने में असमर्थ होते हैं आदि आदि अनेक बातें है जो युवाओं के विरोध में कही जाती रही हैं और सुनी जाती रही  हैं पर, आज का वातावरण बदल गया है, आज की शिक्षा के मायने बदल गए हैं। जिस गति से युवाओं ने तकनीकी क्षेत्र में कदम जमाए हैं उस गति से ही  देश की उन्नति हुई है। चाहे क्षेत्र विज्ञान का हो, चाहे दूर -संचार का या चिकित्सा का या परिवहन का या कोई अन्य क्षेत्र ही हो हर जगह तरक्की के नए रास्ते खुले हैं। जब युवाओं की प्रतिभा को खिलने का अवसर दिया गया तो उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी पहचान स्थापित की है।

मेरे विपक्षी वक्ताओं ने युवा का अर्थ उम्र की सीमा का निर्धारण करते हुए लिया है। जबकि मेरा मानना है कि युवा होने की कोई उम्र नहीं होती है। जिसमें कुछ कर गुजरने का उत्साह हो, जो सदा नए रास्तों की  तलाश में लगा हुआ हो, जिसके जोश में आगे बढ़ने की भावना समायी हुई हो, जिसका मन फूलों की कोमलता और ताजगी से भरा हुआ हो, उसे मैं युवा कहता हूँ।  पच्चीस साल का वह युवा जिसके लहू में  जोश हो, जीवन की ताजगी हो, आगे बढ़ने के सपने हो उसे युवा कहा जाना सही नहीं है।

मान्यवर, समाज राष्ट्र के पास आज जो कुछ गर्व करने के लायक है वह युवाओं के द्वारा ही दिया हुआ है। हम क्यों भूल जाते हैं कि 47 साल की उम्र से  सन् 1948 तक  देश का  मार्गदर्शन उस युवा ने ही किया था जिसका शरीर भले ही हड्डियों को ढाँचा रहा हो पर मन फौलाद का था।  देश की सारी जनता जिसके एक  इशारे पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहती थी; जिसके कार्य निर्णय ब्रितानी अफसरों की धड़कनों को हिला दिया करते थे और अन्त में ब्रितानी शासन का ही खात्मा हुआ। अमेरिका में हुए सर्वधर्म सम्मेलन में भारतीय  दर्शन की पताका फहराने वाले स्वामी विवेकानन्द को हम क्या कभी भूल सकते हैं। अजीज प्रेमजी, अनिल अंबानी, रतन टाटा, कान्तिकुमार पोदार,  श्रीमती चन्द्रा, श्रीमती किरण मजूमदार आदि अनेक वे युवा लोग हैं जिन्होंने आर्थिक, तकनीकी चिकित्सा विकास में भारत को एक नई  दिशा प्रदान की है।


मान्यवर, परिवर्तन किसी उम्र का मोहताज नहीं, परिवर्तन किसी का दास नहीं, परिवर्तन एक सोच है, एक विचार है जिसे कोई भी अंजाम दे सकता है। उम्र तो हमने बाँटी है, समय को नाम देकर हमने बाँटा है; जिसने अंगारों को सेज माना है उसी ने वक्त को साधा है; और परिवर्तन की नींव भी उसीने रखी है जो वक्त का इंतजार नहीं करता है, जो ठंडी छाँव में बैठकर अंगारों के बुझने का इंतजार नहीं करता है।
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युवाओं में ही समाज राष्ट्र में परिवर्तन लाने की शक्ति है।  - विपक्ष
Yuvaon  Me hi samaj va Rashtra me  Parivartan Lane ki sakti hai - Against

मान्यवर,

दीपक की बाती जब तक पूरी तरह आग नहीं पकड़ लेती जब तक रोशनी नहीं दे पाती है; पेड़ों की कोमल  पत्तियाँ जब तक अपने गुलाबीपन से मुक्त नहीं होती हैं तब तक कच्ची कही जाती है; जब पेड़ बौराता है तब फलों का रास्ता बनता है पर स्वाद तो उसके पकने पर ही आता है। मान्यवर, जब कच्ची मिट्टी को पकाकर आकार दिया जाता है तब ही वह हमारी उपासना का केन्द्र बन मस्तक को झुका जाती है और जब तक कच्ची रहती है तब तक पैरों में ही जगह पाती है। मान्यवर, कैसे कहूँ कि युवाओं में ही समाज राष्ट्र में परिवर्तन लाने की शक्ति है ?  कैसे कहूँ कि मात्र युवा ही समाज और राष्ट्र की दशाबदल सकते हैं ? कैसे कहूँ कि युवा हो तो आपका महत्व है ? क्या उस पीढ़ी का कुछ भी नहीं जिसने अंगुली पकड़कर उसे चलना सिखाया ? क्या उस पीढ़ी का कोई योगदान नहीं जिसने उसे खिलने का अवसर दिया ? क्या उस पीढ़ी का कुछ भी नहीं जिसने शरीर, मन, मस्तिष्क की मज़बूती दी ? सबसे बड़ा परिवर्तन है एक जीवन में परिवर्तन लाना। एक-एक जीवन से मिलकर समाज बनता है और समाज से देश। मान्यवर, युवाओं में ही समाज राष्ट्र में परिवर्तन लाने की शक्ति है- मैं सदन की इस राय से सहमत नहीं हूँ।

मान्यवर, सदन ने अपने विषय में युवाओं में ही कहकर सम्पूर्ण वाद-विवाद को एक केन्द्र पर ला दिया है। इस ही शब्द का प्रयोग बताता है कि युवाओं के अलावा और कोई परिवर्तन ला ही नहीं सकता इसलिए सदन की राय से मैं बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ मान्यवर, परिवर्तन एक हमारे भीतर घटित होता है और दूसरा बाहर समाज में, देश में। जब भीतर परिवर्तन होता है तो वह बाहर भी आता है। तब वह बाहरी स्थितियों को बदलता है। बाहर का परिवर्तन जब भीतर  प्रवेश करता है तब हम उसे अनुसरण करना कहते हैं। और जब भीतर का परिवर्तन बाहर आता है तब हम उसे ज्ञान कहते है। पुरानी पीढ़ी हमारे भीतर परिवर्तन लाती है, पुरानी पीढ़ी एक सपना तैयार करती है और उसके आधार पर आनेवाले परिवर्तन की नींव रखती है। यानि युवाओं के  जोश, उनकी उमंग को इस  प्रकार से  निर्देशित किया जाता है कि आने वाले समय में वे एक रास्ता तैयार कर सकें। ऐसे में परिवर्तन लाने के लिए सिर्फ युवाओं को ही उपयुक्त समझा जाए यह कहना ठीक नहीं है।

मान्यवर, जो संघर्ष की आग में पका हो उसे ही अनुभवी  कहा जाता है। इस अनुभव में धैर्य की शिक्षा होती है, इस अनुभव में ही  दूरदर्शिता होती है, इसी अनुभव में  पारदर्शिता होती है और सबसे महत्वपूर्ण सहन करने की ताकत भी इसी अनुभव से आती है। जिसके ज्ञान में अनुभव की पकावट ही नहीं उससे परिवर्तन की अपेक्षा नहीं की जा सकती, जिसके मन में धैर्य नहीं उससे सही निर्णय की  आशा नहीं की जा सकती और जिसके पास चिन्तन की  दिशा नहीं उससे परिवर्तन की कामना नहीं की जा सकती। युवाओं में  जोश होता है, उमंग होती है, प्रेम का प्रवाह होता है, ज्ञान की खोज में लगा मस्तिष्क होता है पर अनुभव का अभाव होता है।  अनुभवहीन युवा समाज और राष्ट्र में परिवर्तन नहीं ला सकता। परिवर्तन के लिए तो अनुभवी पीढ़ी और युवा पीढ़ी दोनों का साथ होना  आवश्यक है।
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