सरलार्थ - कर चले हम फ़िदा

कविता परिचय:- यह गीत श्री कैफ़ी आज़मी के द्वारा फि़ल्म हक़ीक़त के लिए लिखा गया था। यह फि़ल्म भारत और चीन के मध्य हुए युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित थी।

पद - 1



कर चले हम   फ़िदा जानो-तन साथियो (फ़िदा - न्यौछावर)
अब   तुम्हारे  हवाले  वतन   साथियो (हवाले - सुपुर्द, सौंपना )
साँस  थमती गई,   नब्ज़   जमती गई (साँस थमना- मृत्यु की ओर जाना; नब्ज़ जमना- नाड़ी रूकना)
फिर भी बढ़ते कदम को  रुकने दिया 
कट गए सर हमारे तो कुछ  गम नहीं (गम - दुःख)
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया

मरते-मरते   रहा   बाँकपन   साथियो (बाँकपन - गर्व से पूर्ण)
अब  तुम्हारे  हवाले  वतन    साथियो


सीमा पर लड़ने वाले सैनिक, देशवासियों और सैनिकों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि हम अपने प्राण और शरीर को मातृभूमि के लिए समर्पित कर जा रहे हैं और अब इस मातृभूमि की सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम लोगों की है। युद्धभूमि में हमने बहुत कठिन स्थितियों का सामना किया है। बर्फीली पहाडि़यों और विकट मौसम में हमारी साँसे फूलने लगी और आॅक्सीजन के अभाव के कारण दम भी घुटने लगा पर हमारे हौंसले बुलन्द थे इसलिए हमने इन सब की परवाह नहीं की। दुश्मन  को मार भगाने का अटल इरादा लिए हम आगे बढ़ते ही गए और दुश्मनों का मुकाबला किया। लड़ते-लड़ते यदि घायल भी हो गए और प्राणों पर संकट भी पड़ा तब भी हमने वीरता के साथ दुश्मनों का मुकाबला किया। देश की रक्षा में अपने प्राण भी चले गए तो उसके लिए हमें दुःख नहीं है अपितु हमें गर्व है कि हमारे स्वाभिमान के प्रतीक हिमालय की छाया में बसी भारतभूमि के मस्तक को दुश्मन के आगे झुकने दिया।


हमें गर्व है कि हमारी मृत्यु देश  के लिए हुई है और इसका गर्व आप भी कर सकते हैं। हम अपने प्राण और शरीर को देश  के लिए समर्पित कर जा रहे हैं और अब इस देश  की सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम/आप लोगों की है।



पद - 2  


ज़िंदा  रहने के मौसम बहुत  हैं  मगर 
जान  देने  की  रुत  रोज़ आती  नहीं (रुत - ऋतु)
हुस्न  और इश्क  दोनों को रुस्वा  करे (हुस्न और इश्क - सुंदरता और प्रेम ; रुस्वा-बदनाम)
वो जवानी  जो खूँ  में   नहाती  नहीं

आज  धरती बनी  है दुलहन  साथियो
अब  तुम्हारे  हवाले  वतन  साथियो 


कवि कहते हैं कि जीवन को आनंद के साथ बिताने के अवसर बहुत से आते हैं पर देशवासी या सैनिक को मातृभूमि पर अपने प्राण न्यौछावर करने का अवसर बहुत कम मिलता है। सबसे बड़ा प्रेम, देश-प्रेम है और सबसे बड़ी सुन्दरता देश  के गौरव को बनाए रखने के लिए स्वयं को न्यौछावर करने में है। जो इस बात को समझता हो उसका युवा होना व्यर्थ है। ऐसा व्यक्ति प्रेम और सुन्दरता के महत्त्व को नहीं समझता है। वह सुन्दरता और युवापन को लजाता है।


जब यु़द्ध के लिए सैन्य खाद्यान्न सामग्री जुटाने के लिए धन की आवश्यकता हुई तो भारतीय नारियों ने अपने आभूषण भेंट किए। उनकी इस भेंट को देखकर ऐसा लगा जैसे वे अपने गहनों से भारत माता का श्रृंगार*  कर रही हों। कवि भारत माता को दुल्हन के समान मानते हैं  और इस श्रृंगार* को दुल्हन का श्रृंगार* कहते हैं   सैनिक कहते हैं कि हम अपने प्राण और शरीर को देश  के लिए समर्पित कर जा रहे हैं और अब इस देश  की सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम लोगों की है। (धरती का दुल्हन बनना अर्थात् बलिदान, त्याग, वीरता की भावना से देश अथवा मातृभूमि  का श्रृंगार* करना )

फॉण्ट में सही नहीं आने के कारण श्रृंगार शब्द सही नहीं लिखने में आ रहा है  शुद्ध  रूप  यह है - 



पद  - 3


राह   कुर्बानियों  की  न  वीरान  हो (कुर्बानी- बलिदान; वीरान- खाली)
तुम  सजाते  ही  रहना  नए काफ़िले (काफ़िले - लोगों के समूह) 
फ़तह का जश्न इस जश्न के  बाद है (फ़तह- जीत; जश्न - उत्सव)
ज़िंदगी मौत  से  मिल  रही  है गले

बाँध लो अपने  सर से कफ़न साथियो (मृत्यु के लिए तैयार हो जाओ )
अब  तुम्हारे  हवाले   वतन  साथियो  

सीमा पर लड़ते-लड़ते शहीद होने वाले सैनिक देशवासियों और सैनिकों से कहते हैं कि हमारे जाने के बाद मातृभूमि  के प्रति बलिदान की भावना रखने का ज़ज़्बा समाप्त नहीं होना चाहिए। देश की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहने वाले देशवासियों सैनिकों के समूह तैयार करने की जिम्मेदारी अब तुम्हारी है। उस मृत्यु को प्राप्त करना जो देशसेवा करते-करते मिली हो सबसे सम्मानजनक मृत्यु है। शत्रुओं को परास्त करने के उत्सव से बड़ा उत्सव ऐसी सम्मानजनक मृत्यु को प्राप्त किए जाने में है। इसलिए देश अथवा मातृभूमि  के प्रति त्याग की भावना में कभी कमी नहीं आनी चाहिए।


वे देशवासियों और सैनिकों से कहते हैं कि देश  की रक्षा करने में सदा मृत्यु का वरण करने के लिए तैयार रहो। हम अपने प्राण और शरीर को देश के लिए समर्पित कर जा रहे हैं और अब इस देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी तुम लोगों की है।



पद - 4 


खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर कीर (कीर- रेखा)
इस  तरफ़ आने पाए न रावन  कोई (रावन - मातृभूमि के प्रति दुर्भावना रखनेवाला शत्रु )
तोड़ दो हाथ अगर हाथ  उठने  लगे
छू  न पाए  सीता  का  दामन कोई  (सीता का दामन- मातृभूमि और इसकी स्त्रियों का आँचल)
राम भी तुम,  तुम्हीं लक्ष्मण  साथियो

अब  तुम्हारे  हवाले  वतन  साथियो।

रामायण काल में सीता माता की रक्षा करने के लिए लक्ष्मण ने एक रेखा खींची थी। कोई भी दुष्ट उस रेखा को पार नहीं कर सकता था। इसका उल्लेख करते हुए वे कहते हैं कि तुम भी अपने वीरता और ताकत का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करो कि शत्रु रूपी रावण कभी भी हमारे देश की ओर आँख उठाने की हिम्मत न कर सके। हमारी सीता रूपी धरती माता को कोई नुकसान पहुँचाने की चेष्टा भी करे तो उसका संहार करो, उसके बढ़े हुए हाथों को तोड़ दो। ध्यान रहे कि कोई भी इसे छू तक नहीं पाए। सीता माता की रक्षा के लिए राम और लक्ष्मण जिस प्रकार सदैव प्रस्तुत रहे हैं उसी प्रकार से हे सैनिकों व देश वासियों ! आप भी सदा तैयार रहें। धरती माता के लिए आप ही राम हैं और आप ही लक्ष्मण हैं। हम अपने प्राण और शरीर को देश के लिए समर्पित कर जा रहे हैं और अब इस देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी आप लोगों की है।


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 आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh Part-2 for Class 10 CBSE


अध्याय : कर चले हम फ़िदा