रैदास के पद : सरलार्थ

- रैदास

पद-1

अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा ।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती ।

प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।

प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा ।

सरलार्थ:-  

हे प्रभु! मुझे आपका नाम लेने की आदत हो गई है  और यह अब किसी भी प्रकार से छूट नहीं सकती है। हे प्रभु ! आपका और हमारा संबंध चंदन और पानी की तरह है। जिस प्रकार से चंदन का साथ पाकर पानी सुगंधित हो जाता है और पानी के हर अंश में चंदन की सुगंध समा जाती है उसी प्रकार से हे प्रभु, आप मुझमें समाए हुए हो। आपका प्रेम मेरे रोम-रोम में समाया हुआ है। हे प्रभु, आपका और मेरा संबंध काले बादलों और जंगल में रहने वाले मोर की भाँति हैं। जिस प्रकार बादलों को उमड़ते - घुमड़ते देखकर  मोर प्रसन्न होकर नाचता है उसी प्रकार मैं भी आपका साथ पाकर नाच उठता हूँ अर्थात् आपके दर्शन पाकर खुश हो जाता हूँ। हे प्रभु, जिस प्रकार चकोर नामक पक्षी चाँद की ओर ही देखता रहता है और उसे पाने का प्रयत्न करता है उसी प्रकार मेरा मन भी आपके ध्यान में लगा रहता है और आपकी कृपा और प्रेम पाने की इच्छा रखता है। हे प्रभु, आप दीपक की तरह हो और मैं उसमें जलनेवाली बत्ती की तरह हूँ। जिस प्रकार से बत्ती दीपक से ऊर्जा पाकर जलती है उसी प्रकार से मेरा जीवन भी सदा आपकी कृपा के अनुसार ही चलता है, और आपके प्रेम में ही जलता रहता है। हे प्रभु, जिस प्रकार मोती उज्ज्वल होता है और उसका साथ पाकर धागे का महत्त्व (कीमत) बढ़ जाता है उसी प्रकार आपका साथ पाकर मेरा महत्त्व (कीमत) भी बढ़ गया है। हे प्रभु, जिस प्रकार सुहागा सोने के साथ मिलकर उसे शुद्ध और चमकदार बना देता है उसी प्रकार से आपका साथ पाकर मेरा जीवन भी शुद्ध और पवित्र हो जाता है। हे प्रभु, आप मेरे स्वामी हो और मैं आपकी सेवा में सदा रहनेवाला सेवक। रैदास परमात्मा की सेवा में सदा रहने की इच्छा करते हैं। उनकी भक्ति में ‘दासभाव’ अर्थात् सेवक बनकर सेवा करने का भाव है।    
 रैदास की भक्ति ‘दास्य भाव’ की है। (समाप्त)  

पद-2

ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै ।

गरीब निवाजु गुसाईआ मेरा माथै छत्रु धरै ॥ 

जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै ।

नीचउ ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै ॥

नामदेव कबीरू तिलोचनु सधना सैनु तरै ।

कहि रविदासु सुनहु रे संतहु हरिजीउ ते सभै सरै ॥

सरलार्थ:-

हे प्रभु ! तुम्हारे अलावा कौन ऐसा कृपालु है जो भक्तों के प्रति अपार दया की भावना रखता है। तुम गरीब तथा दीन-दुखियों पर दया करने वाले हो। तुम ऐसे कृपालु स्वामी हो जो मुझ जैसे अछूत और नीच के माथे पर राजाओं जैसा छत्र रख देते हो अर्थात् तुम्हारी कृपा से ही राजाओं जैसा सम्मान प्राप्त होता है। यह संसार जिन्हें अछूत मानकर उनके प्रति घृणा की भावना रखता है; हे प्रभु, आप ही उनके प्रति दया की भावना रखकर संसार में ऊँचा स्थान दिलवाते हो। हे प्रभु, आप किसी से भी डरते नहीं हो। आपकी कृपा से ही संत कबीर, त्रिलोचन, सधना और सैन जैसे अछूत कहे जाने वाले भक्तों को परम-पद प्राप्त हुआ है। संत रैदास (रविदास) संतो से कहते हैं कि भगवान की कृपा से सभी का उद्धार होता है। (समाप्त)

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द्वारा :- hindiCBSE.com
आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh Part-1 for Class 9 CBSE