Prashnottar : Patjhar me tuti pattiyan
प्रश्न अभ्यास
मौखिक
निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर:- एक-दो पंक्तियों में दीजिए -
1. शुद्ध सोना और गिन्नी का सोना अलग क्यों होता है?
उत्तर:- शुद्ध सोना 24 कैरेट का व मिलावट से रहित होता है और गिन्नी के सोने में ताँबा मिला होता है इसलिए यह शुद्ध नहीं होता। सोने में ताँबे का अंश मिलाने पर वह शुद्ध सोने से अधिक मजबूत और चमकदार हो जाता है।
2. ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्ट’ किसे कहते हैं?
उत्तर:- जो लोग आदर्श की पालना करने का दिखावा करते हैं पर आदर्शों को महत्व न देकर उस व्यवहार को अधिक महत्व देते हैं जिससे उनका लाभ या स्वार्थ पूरा हो सके। उन्हें ‘प्रेक्टिकल आइडियालिस्ट’ कहते हैं।
3. पाठ के संदर्भ में शुद्ध आदर्श क्या है?
उत्तर:- शुद्ध आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। जिस प्रकार शुद्ध सोने में मिलावट नहीं होती है उसी प्रकार से शुद्ध आदर्श में भी किसी हानि या लाभ का विचार करके अपने स्वार्थ के अनुसार परिवर्तन नहीं किया जा सकता ।
4. लेखक ने जापानियों के दिमाग में स्पीड का इंजन लगने की बात क्यों कही है?
उत्तर:- अमरिका से होड़ करके उससे आगे निकलने की स्पर्धा के चलते जापानी लोग एक माह का कार्य एक दिन में ही कर डालना चाहते हैं । अपने दिमाग का प्रयोग उसकी क्षमता से अधिक करते हैं जिसे लेखक ने ‘स्पीड का इंजन’ लगने के समान कहा है।
5. जापानी में चाय पीने की विधि को क्या कहते हैं?
उत्तर:- जापानी में चाय पीने की विधि को ‘चा-नो-यू’ कहते हैं।
6. जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है, उस स्थान की क्या विशेषता है?
उत्तर:- जापान में जहाँ चाय पिलाई जाती है वह स्थान एकदम शांत होता है। वह पर्णकुटी से बना होता है और सिर्फ दो-तीन व्यक्तियों के बैठने के लिए होता है। वहाँ चाय बनाने से लेकर पीने तक गरिमा व शांति बनी रहना मुख्य विशेषता होती है।
लिखित
(क) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर (25-30 शब्दों में) लिखिए −
1. शुद्ध आदर्श की तुलना सोने से और व्यावहारिकता की तुलना ताँबे से क्यों की गई है?
उत्तर:- शुद्ध सोना मिलावट से रहित व 24 कैरेट का होता है। शुद्ध आदर्श में स्वयं के हानि-लाभ के अनुसार मिलावट की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। व्यावहारिकता ताँबे के समान कही गई है क्योंकि व्यावहारिकता का आधार स्वार्थ व हानि-लाभ से जुड़ा होता है। कीमत शुद्ध सोने की अर्थात् आदर्शों की ही होती है ताँबे की अर्थात् व्यावहारिकता की नहीं।
2. चाजीन ने कौन-सी क्रियाएँ गरिमापूर्ण ढंग से पूरी कीं?
उत्तर:- चाजीन द्वारा अतिथियों का उठकर स्वागत किया जाना, शांत भाव से अँगीठी सुलगाना और उस पर चायदानी रखना, चाय के बर्तन लाना व उन्हें हौले-हौले तौलिए से पोंछकर उनमें चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ सहज और शांतभाव से गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की गईं।
3. टी-सेरेमनी में कितने आदमियों को प्रवेश दिया जाता था और क्यों?
उत्तर:- टी-सेरेमनी में सिर्फ तीन आदमियों को ही प्रवेश दिया जाता था क्योंकि इसमें शांति मुख्य बात होती है। भागमभाग के जीवन से दूर रहकर अतीत व भविष्य की चिंता छोड़कर शांतिमय वातावरण में कुछ समय बिताकर अपने मन और मस्तिष्क को शांति देना इस सेरेमनी का प्रमुख उद्देश्य होता है।
4. चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या परिवर्तन महसूस किया?
उत्तर:- चाय पीने के बाद लेखक ने महसूस किया कि उसका दिमाग शांत होता जा रहा है, उसकी सोचने-विचारने की शक्ति धीरे-धीरे धीमी पड़ रही है। उसे आभास हुआ कि वह अतीत और भविष्य की चिंता से मुक्त होकर वर्तमान के उसी क्षण में जी रहा है। उसे सन्नाटे की आवाज भी सुनाई देने लगी। उसका मन-मस्तिष्क दोनों शांत हो गए थे।
(ख) निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए -
1. गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी - उदाहरण सहित इस बात की पुष्टि कीजिए?
उत्तर:- गाँधीजी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। वे आदर्शों को सदा महत्व देते थे। व्यावहारिकता के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए उसमें भी आदर्श की स्थापना करते थे। उनके द्वारा चलाए गए भारत छोड़ो आन्दोलन, दांडी मार्च, सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आदि सभी आन्दोलनों में व्यावहारिकता का आदर्श रूप देखने को मिलता है यानि ये सभी आन्दोलन व्यावहारिक थे पर छल, कपट, झूठ, फ़रेब, हिंसा आदि से दूर अपने-आप में आदर्शों से पूर्ण आन्दोलन थे और इन सबके माध्यम से अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ने में सफलता मिली। यही कारण है कि पूरा भारत उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में याद करता है।
2. आपके विचार से कौन-से ऐसे मूल्य हैं जो शाश्वत हैं? वर्तमान समय में इन मूल्यों की प्रांसगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- बड़ों को आदर देना, महिलाओं का सम्मान करना, झूठ और बेईमानी को पाप समझना, परोपकार, सत्य, सहिष्णुता और धैर्य का पालन करना, हिंसा को बुरा मानना, जीवों के प्रति दया की भावना रखना, हारे को हिम्मत बँधाना, राष्ट्र, समाज व अपने परिजनों के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करना आदि अनेक ऐसे मूल्य हैं जो कि शाश्वत हैं और जिनपर चलकर मानव जीवन व मानव समाज का उत्थान ही होता आया है।
4. शुद्ध सोने में ताबे की मिलावट या ताँबें में सोना, गाँधीजी के आदर्श और व्यवहार के संदर्भ में यह बात किस तरह झलकती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- आदर्श शुद्ध सोने की ही भाँति ही होते हैं। ताँबा मिला सोना मिलावटी है। गाँधीजी ने जीवन भर आदर्शों का पालन किया। वे एक कदम भी आदर्शों के बिना उठाने के लिए तैयार नहीं हुआ करते थे। वे व्यावहारिकता में आदर्शों की स्थापना करते थे एवं आदर्श का महत्व बना रहे इसका ध्यान रखते थे ताकि लोग भी अपने व्यावहारिक जीवन में आदर्शों को महत्व दें और समाज का उत्थान हो सके। जिस प्रकार ताँबा सोने का साथ पाकर महत्व पा जाता है क्योंकि कीमत सोने की होती है उसी प्रकार व्यावहारिकता में आदर्शों की स्थापना आदर्श का महत्व बनाए रखती है। वे जानते थे कि बिना व्यावहारिक हुए जीवन नहीं चल सकता है पर उसमें आदर्शों की स्थापना होने पर ही समाज उन्नति की ओर बढ़ता है। यदि सिर्फ व्यावहारिक ही रहते तो उन्हें भी स्वार्थी - केवल अपना नफ़ा-नुकसान सोचकर काम करनेवाला- ही कहा जाता।
छात्रों के समझने के लिए:- शुद्ध सोना तब तक ही शुद्ध होता है जब तक उसमें कोई मिलावट न हो। आदर्श शुद्ध सोने की ही भाँति ही होते हैं। ताँबा मिला सोना मिलावटी है। शुद्ध सोने के आभूषण नहीं बनते इसलिए उसमें ताँबा मिलाया जाता है पर इससे सोना अपनी शुद्धता खो देता है और ताँबा सोने का साथ पाकर महत्व पा जाता है पर कीमत सोने की ही होती है। यदि ताँबा जिसे व्यावहारिकता कहा गया है उसमें सोना यानि आदर्श मिला दिए जाएँ तो ताँबे का महत्व बढ़ जाएगा यानि व्यावहारिकता में भी आदर्श स्थापित होगा जिसके प्रभाव से समाज उन्नति की तरफ ही बढ़ेगा पतन की तरफ नहीं।
5. गिरगिट कहानी में आपने समाज में व्याप्त अवसरानुसार अपने व्यवहार को पल-पल में बदल डालने की एक बानगी देखी। इस पाठ के अंश ‘गिन्नी का सोना’ का संदर्भ में स्पष्ट कीजिए कि ‘अवसरवादिता’ और ‘व्यावहारिकता’ इनमें से जीवन में किसका महत्व है?
उत्तर:- गिरगिट कहानी का मुख्य-पात्र इंस्पेक्टर आॅचुमेलाॅव स्वार्थी है और वह अपने हानि-लाभ की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है। ऐसे अवसरवादी लोग व्यवहारवादी कहे जाते हैं यानि ताँबे के समान हैं। पाठ ‘गिन्नी का सोना’ में इस बात पर महत्व दिया गया है कि आदर्श शुद्ध सोने के समान हैं। जीवन के प्रत्येक कार्य में यदि हम आदर्शों की पालना करेंगे तो समाज का विकास होता है। मात्र व्यवहारवादी बनकर सिर्फ हानि-लाभ का विचार करके कार्य करेंगे तो समाज पतन की तरफ जाएगा। उदाहरण के लिए परोपकार करनेवाले को तब ही परोपकारी कहा जाता है जब वह अपने हानि-लाभ का विचार किए बिना सदा दूसरों की सहायता करता है। जब वह अपने हानि-लाभ की बात सोचकर ही कार्य करेगा तो उसे व्यावसायिक स्वभाव का कहा जाएगा परोपकारी नहीं। इसलिए समाज के उत्थान में न तो अवसरवादी होने का महत्व है न ही व्यवहारवादी होने का अपितु ‘आदर्शपूर्ण व्यवहारवादी’ होने का महत्व है।
6. लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के क्या-क्या कारण बताए? आप इन कारणों से कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर:- लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताएँ हैं कि वह प्रतिस्पर्धा के कारण एक महीने का काम एक दिन में करना चाहता है, वह अपने दिमाग को हजार गुना अधिक गति से दौड़ाता है जिसके कारण मानसिक तनाव बढ़ जाता है। वह स्वयं में खोकर बकने और बड़बड़ाने लग जाता है। लेखक ने अपनी जापान यात्रा का सत्य अनुभव लिखा है। हम भी अपने दैनिक जीवन में अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने की कोशिश करते हैं तो तनावग्रस्त हो जाते हैं। स्थिति की गंभीरता में ऐसे ही लक्षण प्रकट होते हैं।
7. लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:- जो समय बीत गया वह आता नहीं है और भविष्य यथार्थ न होकर सपना मात्र होता है। हम या तो अतीत में उलझे रहते हैं या भविष्य के सपनों में और इस प्रकार भूत या भविष्य काल में जीते हैं। असल में दोनों काल मिथ्या हैं क्योंकि एक चला गया दूसरा आया नहीं इसलिए लेखक ने कहा - ‘वर्तमान ही सत्य है उसी में जीना चाहिए।’
(ग) निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए -
1. समाज के पास अगर शाश्वत मूल्यों जैसा कुछ है तो वह आर्दशवादी लोगों का ही दिया हुआ है।
उत्तर:- आदर्शवादी लोग किसी कार्य में अपना हानि-लाभ देखकर कार्य नहीं करते। जैसे बड़ों को आदर देना, महिलाओं का सम्मान करना, झूठ और बेईमानी को पाप समझना, परोपकार, सत्य, सहिष्णुता और धैर्य का पालन करना, हिंसा को बुरा मानना, जीवों के प्रति दया की भावना रखना, हारे को हिम्मत बँधाना, राष्ट्र, समाज व अपने परिजनों के प्रति अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करना आदि अनेक ऐसे मूल्य हैं जो कि शाश्वत हैं और जिनपर चलकर मानव जीवन व मानव समाज का उत्थान ही होता आया है।
2. जब व्यावहारिकता का बखान होने लगता है तब प्रेक्टिकल आइडियालिस्टों के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझ-बूझ ही आगे आने लगती है?
उत्तर:- व्यावहारिकता का संबंध हानि-लाभ से जुड़ा है। जो लोग व्यावहारिकता के साथ आदर्शों का पालन करते हैं वहाँ एक कमी रह जाती है कि वे आदर्शों का महत्व और स्तर ऊँचा नहीं रख पाते जिसके कारण व्यावहारिक सूझबूझ को ही महत्व दिया जाने लगता है। लोग आदर्शों से प्ररित न होकर व्यावहारिक सूझबूझ से प्रेरित होकर कार्य करने लगते हैं।
3. हमारे जीवन की रफ्तार बढ़ गई है। यहाँ कोई चलता नहीं बल्कि दौड़ता है। कोई बोलता नहीं, बकता है। हम जब अकेले पड़ते हैं तब अपने आपसे लगातार बड़बड़ाते रहते हैं।
उत्तर:- जापान में सर्वाधिक मानसिक रोगी होने का कारण बताते हुए मित्र ने लेखक को जानकारी दी कि अमरीका से आगे निकलने की होड़ के कारण लोग बहुत तेजी से काम करना चाहते हैं जिसके कारण उनके जीवन की गति बढ़ गई है और परिणामस्वरूप मानसिक तनाव व निराशा में भी वृद्धि हई है। इस तनाव का असर देखने में आता है कि लोग बेवजह बोलते रहते हैं; अकेले में बड़बड़ाते रहते हैं।
4. सभी क्रियाएँ इतनी गरिमापूर्ण ढंग से कीं कि उसकी हर भंगिमा से लगता था मानो जयजयवंती के सुर गूँज रहे हों।
उत्तर:- जयजयवंती शिवजी का प्रिय राग (संगीत का राग) कहा जाता है। चाजीन द्वारा अतिथियों का स्वागत किया जाना, अँगीठी सुलगाकर चायदानी रखना, चाय के बर्तन लाकर उन्हें हौले-हौले तौलिए से पोंछकर चाय डालना आदि सभी क्रियाएँ इतने शांतभाव और गरिमापूर्ण ढंग से पूरी की जा रही थीं कि लेखक को जयजयवंती के स्वरों से मिलनेवाली शांति और सुकून का अहसास हुआ।
भाषा अध्यन
1. नीचे दिए गए शब्दों का वाक्यों में प्रयोग किजिए −
व्यावहारिकता, आदर्श, सूझबूझ, विलक्षण, शाश्वत
उत्तर:-
(क) व्यावहारिकता- गाँधी की व्यावहारिकता अनुकरणीय है।
(ख) आदर्श - आदर्श व्यक्ति और समाज को ऊँचाई पर लेकर जाते हैं।
(ग) सूझबूझ - ड्राईवर की सूझबूझ से दुर्घटना टल गई।
(घ) विलक्षण - ए पी जे कलाम विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।
(ङ) शाश्वत - गाँधीजी ने सत्य, अहिंसा जैसे शाश्वत मूल्यों को जीवन में अपनाने पर बल दिया।
2. नीचे दिए गए द्वंद्व समास का विग्रह कीजिए −
(क) माता-पिता
उत्तर:- माता और पिता
(ख) पाप-पुण्य
उत्तर:- पाप और पुण्य
(ग) सुख-दुख
उत्तर:- सुख और दुख
(घ) रात-दिन
उत्तर:- रात और दिन
(ङ) अन्न-जल
उत्तर:- अन्न और जल
(च) घर-बाहर
उत्तर:- घर और बाहर
(छ) देश-विदेश
उत्तर:- देश और विदेश
3. नीचे दिए गए विशेषण शब्दों से भाववाचक संज्ञा बनाइए −
(क) सफल
उत्तर:- सफलता
(ख) विलक्षण
उत्तर:- विलक्षणता
(ग) व्यावहारिक
उत्तर:- व्यावहारिकता
(घ) सजग
उत्तर:- सजगता
(ङ) आर्दशवादी
उत्तर:- आर्दशवादिता
(च) शुद्ध
उत्तर:- शुद्धता
4. नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित अंश पर ध्यान दीजिए और शब्द के अर्थ को समझिए −
शुद्ध सोना अलग है।
बहुत रात हो गई अब हमें सोना चाहिए।
ऊपर दिए गए वाक्यों में ‘सोना’ का क्या अर्थ है? पहले वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है धातु ‘स्वर्ण’। दुसरे वाक्य में ‘सोना’ का अर्थ है ‘सोना’ नामक क्रिया। अलग-अलग संदर्भों में ये शब्द अलग अर्थ देते हैं अथवा एक शब्द के कई अर्थ होते हैं। ऐसे शब्द अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के भिन्न-भिन्न अर्थ स्पष्ट करने के लिए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए −
उत्तर, कर, अंक, नग
उत्तर:-
(क) उत्तर :- मैंने सभी प्रश्नों के उत्तर लिख लिए हैं।
तुम्हें उत्तर दिशा में जाना है।
(ख) कर :- हमें अपने सभी कर चुकाने चाहिए।
गाँधीजी ने अपने कर-कमलों से दीप प्रज्ज्वलित किया।
(ग) अंक :- पढ़ोगे तो परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर सकोगे।
डरकर वह अपनी माँ के अंक में दुबक गया।
(घ) नग :- हीरा एक कीमती नग है।
पर्वत को नग भी कहते हंै।
5. नीचे दिए गए वाक्यों को संयुक्त वाक्य में बदलकर लिखिए −
(क) 1. अँगीठी सुलगायी।
2. उस पर चायदानी रखी।
उत्तर:- अँगीठी सुलगायी और उसपर चायदानी रखी।
(ख) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
उत्तर:- चाय तैयार हुई और उसने वह प्यालों में भरी।
(ग) 1. बगल के कमरे से जाकर कुछ बरतन ले आया।
2. तौलिये से बरतन साफ किए।
उत्तर:- बगल के कमरे में जाकर कुछ बरतन ले आया और तौलिए से बरतन साफ किए।
6. नीचे दिए गए वाक्यों से मिश्र वाक्य बनाइए −
(क) 1. चाय पीने की यह एक विधि है।
2. जापानी में उसे चा-नो-यू कहते हैं।
उत्तर:- यह चाय पीने की एक विधि है जिसे जापानी चा-नो-यू कहते हैं।
(ख) 1. बाहर बेढब-सा एक मिट्टी का बरतन था।
2. उसमें पानी भरा हुआ था।
उत्तर:- बाहर बेढब सा एक मिट्टी का बरतन था जिसमें पानी भरा हुआ था।
(ग) 1. चाय तैयार हुई।
2. उसने वह प्यालों में भरी।
3. फिर वे प्याले हमारे सामने रख दिए।
उत्तर:- जब चाय तैयार हुई तो उसने प्यालों में भरकर हमारे सामने रख दी।