Ravindra Kelekar (1925)
रवींद्र केलेकर (1925)
जीवन परिचय :- मार्च 1925 को कोंकण क्षेत्र में जन्मे रवींद्र केलेकर छात्र जीवन से ही गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हो गए
थे। गांधीवादी चिंतक के रूप में विख्यात केलेकर ने अपने लेखन में जन-जीवन के विविध
पक्षों, मान्यताओं और व्यक्तिगत विचारों को देश और समाज के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत
किया है। इनकी अनुभवजन्य टिप्पणियों में अपने चिंतन की मौलिकता के साथ ही मानवीय सत्य
तक पहुँचने की सहज चेष्टा रहती है।
साहित्यिक परिचय एवं पुरस्कार :- कोंकणी और मराठी के शीर्षस्थ लेखक और पत्रकार रवींद्र
केलेकर की कोंकणी में पच्चीस, मराठी में तीन, हिंदी और गुजराती में भी कुछेक पुस्तकें प्रकाशित हैं। केलेकर ने काका कालेलकर की अनेक पुस्तकों का संपादन और अनुवाद भी किया
है।
गोवा कला अकादमी के साहित्य पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित
केलेकर की प्रमुख कृतियाँ हैं - कोंकणी में
उजवाढाचे सूर, समिधा, सांगली, ओथांबे; मराठी
में कोंकणीचें राजकरण, जापान जसा दिसला और
हिंदी में पतझर में टूटी पत्तियाँ।
पाठ परिचय:- ऐसा माना जाता है कि थोड़े में बहुत कुछ कह देना कविता का गुण है। जब कभी
यह गुण किसी गद्य रचना में भी दिखाई देता है तब उसे पढ़ने वाले को यह मुहावरा याद नहीं
रखना पड़ता कि ‘सार-सार को गहि रहे, थोथा देय उड़ाय’। सरल लिखना, थोड़े शब्दों में लिखना
यादा कठिन काम है। फिर भी यह काम होता रहा है। सूक्ति कथाएँ, आगम कथाएँ, जातक कथाएँ,
पंचतंत्र की कहानियाँ उसी लेखन के प्रमाण हैं। यही काम कोंकणी में रवींद्र केलेकर ने
किया है। प्रस्तुत पाठ के प्रसंग पढ़ने वालों से थोड़ा कहा बहुत समझना की माँग करते हैं।
ये प्रसंग महज पढ़ने-गुनने की नहीं, एक जागरूक और सक्रिय नागरिक बनने की प्रेरणा भी
देते हैं। पहला प्रसंग गिन्नी का सोना जीवन
में अपने लिए सुख-साधान जुटाने वालों से नहीं बल्कि उन लोगों से परिचित कराता है जो
इस जगत को जीने और रहने योग्य बनाए हुए हैं।
दूसरा प्रसंग झेन
की देन बौद्ध दर्शन में वर्णित ध्यान की उस पद्धति की याद दिलाता है जिसके कारण जापान
के लोग आज भी अपनी व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कुछ चैन भरे पल पा जाते हैं।
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आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh
Part-2 for Class 10 CBSE