लेखक परिचय : रवींद्रनाथ ठाकुर

Rabindranath Thakur
रवींद्रनाथ ठाकुर (1861-1941)

जीवन परिचय:-  मई 1861 को बंगाल के एक संपन्न परिवार में जन्मे रवींद्रनाथ ठाकुर की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। छोटी उम्र में ही स्वाध्याय से अनेक विषयों का ज्ञान अर्जित कर लिया। बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए विदेश भेजे गए लेकिन बिना परीक्षा दिए ही लौट आए।

साहित्यिक परिचय:- रवींद्रनाथ की रचनाओं में लोक-संस्कृति का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित होता है। प्रकृति से इन्हें गहरा लगाव था। इन्होंने लगभग एक हज़ार कविताएँ और दो हज़ार गीत लिखे हैं। चित्रकला, संगीत और भावनृत्य के प्रति इनके विशेष अनुराग के कारण रवींद्र संगीत नाम की एक अलग धारा का ही सूत्रापात हो गया। इन्होंने शांति निकेतन नाम की एक शैक्षिक और सांस्कृतिक संस्था की स्थापना की। यह अपनी तरह का अनूठा संस्थान माना जाता है।

रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रमुख कृतियाँ हैं . गीतांजलि नैवैद्य, पूरबी, बलाका, क्षणिका, चित्र  और सांध्यगीत, काबुलीवाला और सैकड़ों अन्य कहानियाँ, उपन्यास.गोरा, घरे बाइरे  और रवींद्र के निबंध।

पुरस्कार:- अपनी काव्य कृति गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए  रवींद्रनाथ ठाकुर नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय हैं।

पाठ परिचय:- तैरना चाहने वाले को पानी में कोई उतार तो सकता है, उसके आस-पास भी बना रह सकता है, मगर तैरना चाहने वाला जब स्वयं हाथ-पाँव चलाता है तभी तैराक बन पाता है। परीक्षा देने जाने वाला जाते समय बड़ों से आशीर्वाद की कामना करता ही है, बड़े आशीर्वाद देते भी हैं, लेकिन परीक्षा तो उसे स्वयं ही देनी होती है। इसी तरह जब दो पहलवान कुश्ती लड़ते हैं तब उनका उत्साह तो सभी दर्शक बढ़ाते हैं, इससे उनका मनोबल बढ़ता है, मगर कुश्ती तो उन्हें खुद ही लड़नी पड़ती है।

प्रस्तुत पाठ में कविगुरु मानते हैं कि प्रभु में सब कुछ संभव कर देने की सामथ्र्य है, फिर भी वह यह कतई नहीं चाहते कि वही सब कुछ कर दें। कवि कामना करता है कि किसी भी आपद-विपद में, किसी भी द्वंद्व में सपफल होने के लिए संघर्ष वह स्वयं करे, प्रभु को कुछ न करना पड़े। फिर आखिर वह अपने प्रभु से चाहते क्या हैं?
रवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिन्दी में अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। द्विवेदी जी का हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में अपूर्व योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा’ को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम है।

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द्वारा :- www.hindiCBSE.com
आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh Part-2 for Class 10 CBSE