(1952)
जीवन परिचय :- धीरंजन मालवे
का जन्म बिहार के नालंदा जिले के डुँवरावाँ गाँव में 9 मार्च 1952 को हुआ। ये एम.एस
सी. (सांख्यिकी), एम.बी.ए. और एल.एल.बी. हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से जुड़े मालवे अभी
भी वैज्ञानिक जानकारी को लोगों तक पहुँचाने के काम में जुटे हुए हैं। आकाशवाणी और बी.बी.सी.
(लंदन) में कार्य करने के दौरान मालवे रेडियो विज्ञान पत्रिका ‘ज्ञान-विज्ञान’ का संपादन
और प्रसारण करते रहे।
साहित्यिक परिचय :- मालवे की
भाषा सीधी, सरल और वैज्ञानिक शब्दावली लिए हुए है। यथावश्यक अन्य भाषाओं के शब्दों
का प्रयोग भी वे करते हैं। मालवे ने कई भारतीय वैज्ञानिकों की संक्षिप्त जीवनियाँ लिखी
हैं, जो इनकी पुस्तक ‘विश्व-विख्यात भारतीय वैज्ञानिक’ पुस्तक में समाहित हैं।
पाठ परिचय :- प्रस्तुत पाठ ‘वैज्ञानिक चेतना के
वाहक रामन्’ में नोबेल पुरस्कार विजेता प्रथम भारतीय वैज्ञानिक के संघर्षमय जीवन का
चित्राण किया गया है। वेंकट रामन् कुल ग्यारह साल की उम्र में मैट्रिक, विशेष योग्यता
के साथ इंटरमीडिएट, भौतिकी और अंग्रेज़ी में स्वर्ण पदक के साथ बी.ए. और प्रथम श्रेणी
में एम.ए. करके मात्रा अठारह साल की उम्र में कोलकाता में भारत सरकार के पफाइनेंस डिपार्टमेंट
में सहायक जनरल एकाउंटेंट नियुक्त कर लिए गए थे। इनकी प्रतिभा से इनके अध्यापक तक अभिभूत
थे।
सन् 1930 में नोबेल पुरस्कार पाने
के बाद सी.वी. रामन् ने अपने एक मित्र को उस पुरस्कार-समारोह के बारे में लिखा था
: जैसे ही मैं पुरस्कार लेकर मुड़ा और देखा कि जिस स्थान पर मैं बैठाया गया था, उसके
ऊपर ब्रिटिश राज्य का ‘यूनियन जैक’ लहरा रहा है, तो मुझे अफ़सोस हुआ कि मेरे दीन देश
भारत की अपनी पताका तक नहीं है। इस अहसास से मेरा गला भर आया और मैं फूट-फूट कर रो
पड़ा।
चंद्रशेखर वेंकट रामन् भारत में विज्ञान
की उन्नति के चिर आकांक्षी थे तथा भारत की स्वतंत्रता के पक्षधर थे। वे महात्मा गांधी
को अपना अभिन्न मित्र मानते थे। नोबेल पुरस्कार समारोह के बाद एक भोज के दौरान उन्होंने
कहा था : मुझे एक बधाई का तार अपने सर्वाधिक प्रिय मित्र (महात्मा गांधी) से मिला है,
जो इस समय जेल में हैं।
एक मेधावी छात्रा से महान वैज्ञानिक
तक की रामन् की संघर्षमय जीवन यात्रा और उनकी उपलब्धियों की जानकारी यह पाठ बखूबी कराता
है।