कम्प्यूटर क्रांति वरदान है।

Computer Kranti Vardan Hai - For  / Against


मान्यवर, मैं  सदन की राय से सहमत हूँ कि कम्प्यूटर क्रांति वरदान है।


मान्यवर, कम्प्यूटर के आविष्कार और बढ़ते प्रचलन के बाद सम्पूर्ण संसार में एक क्रांति पैदा हो गई है। व्हील-चेयर पर जीवन बिताने के लिए मजबूर या अन्य प्रकार से अपंग के जीवन से लेकर संसार का प्रत्येक छोटा-बड़े व्यक्ति और उनके कार्य में अंतर आ गया है । यात्रा, साहित्य, उद्योग, ज्ञान-विज्ञान, समाचार, दूरभाष, स्वास्थ्य, कृषि, वस्त्र, खनन व निर्माण आदि अनेक क्षेत्र हैं जिनमें कम्प्यूटर के आने के बाद विकास की गति बढ़ी है और आज का मानव पल-पल की खबर से परिचित है, पूर्व की अपेक्षा अधिक गतिवान व क्षमतावान बना है। सत्य ही है कि कम्प्यूटर के आने से अंधो का आँख मिली है, असहायों को सहारा, प्रतिभा को विस्तार मिला है और मानव जीवन की अपूर्णता को पूर्णता ।


मान्यवर, कंप्यूटर ने मानव के सोचने, समझने, जानने, विश्लेषण करने और वस्तुओं का बेहतर निर्माण करने की दक्षता को कई गुणा बढ़ा दिया है। कार्य करने की गति में वृद्धि हुई है, आंकड़ो का विश्लेषण सटीक हुआ है। कुल मिलाकर कम्प्यूटर ने मानव जीवन को सुख, सुविधा और गतिवान बनाने में ही सहायता की है  और इस प्रकार कम्प्यूटर मानव जीवन के लिए वरदान ही साबित हुआ है।


मान्यवर, आग रोशनी भी देती है तो जला भी सकती है, बादल बरसकर भूमि की प्यास बुझा सकता है और हमें राहत दे सकता है तो वही फट कर मौत का ताण्डव भी कर सकता है, वायु का प्रवाह हमें खुशनुमा माहौल में ले जा सकता है तो भयंकर तूफान के रूप में तबाही भी ला सकता है । यह प्रकृति  है जो निर्माण और विनाश दोनों को अपने साथ-साथ लेकर चलती है। निर्माण और विनाश जीवन की सच्चाई है। फिर कम्प्यूटर को दोष क्यों ? कम्यूटर से आँखे खराब हो गईं या अंगुलियाँ खराब हो गई या फिर शरीर का कोई पुर्जा काम नहीं कर रहा है तो इसके लिए जिम्मेदार कम्प्यूटर को कैसे ठहराया जा सकता है? हर वस्तु के प्रयोग का तरीका होता है, उसके प्रयोग के कुछ नियम होते हैं। अति की जाएगी तो परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे । आँख बिना हिलाए-डुलाए गड़ाकर  स्क्रीन पर देखेंगे तो आँखें ही क्या मस्तिष्क भी खराब होगा । इसमें दोष कम्प्यूटर का नहीं उसे इस्तेमाल करनेवाले का है ।
मान्यवर, समाज का विकास विज्ञान और तकनीक के विकास से जुड़ा हुआ है। जो देश इस दृष्टि से मजबूत होंगे उनके ही विकास की गति निरंतर बनी रहेगी अन्यथा वह पिछड़ जाएगा। भारत के संदर्भ में हम पाते हैं कि कम्प्यूटर के आने के बाद ही हमारे विकास की रफ्तार बढ़ी है । लोगो के काम करने की क्षमता और हमारा उत्पादन बढ़ा है जिस कारण आम आदमी की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है । वह सुख और सुविधा से पूर्ण जीवन बिताने लगा है । चिकित्सा के क्षेत्र में आई क्रांति हमसे छुपी हुई नहीं है।  ऑपरेशन चाहे आँख का हो या घुटनों का पहले कि अपेक्षा कम खर्चीला और कम समय में कम  परेशानी वाला हो गया है । लम्बी-लम्बी थकाने वाली और उबाऊ कतार में खड़े होने से मुक्ति मिली  है, घंटो का काम मिनटों में होने लगा है और मिनटों का काम कुछ ही समय में होने लगा है यह सब कम्प्यूटर क्रांति के कारण सम्भव हुआ है।


मान्यवर अंत में मैं इतना ही कहूँगा कि कम्प्यूटर ने हमारे जीवन की दशा ही बदल दी है, उसने मानव जीवन को पहले से सुखी और सम्पन्न बनाने का काम किया है इसलिए वह हमारा शुभ-चिंतक ही है , हमारा शत्रु नहीं ।



कम्प्यूटर क्रांति वरदान नहीं है ।      विपक्ष
मेरी बेटी को देखिए डाॅक्टर साहेब पता नहीं इसे क्या हो गया है ? इसकी अंगुलियाँ कभी-कभी जकड़ जाती हैं, उनमें दर्द रहता है । इसकी गर्दन में खिंचाव रहता है और आँखों से पानी गिरता है । सिर में भारीपन बना रहता है और रीड़ की हड्डी में और कमर में कभी -कभी इतना दर्द हो जाता है कि इससे सीधा भी नहीं बैठा जा सकता है । आँखों के नीचे कालापन बना ही रहता है और अब यह पाँव सुन्न होने की शिकायत करने लगी है ।
मान्यवर, यह किसी फिल्म की कहानी का डायलाॅग नहीं है, यह तो उस जीवन की वास्तविकता है जिसे कंप्यूटर क्रांति ने जन्म दिया है । यही तो वह वीभत्स वरदान है, जो कम्प्यूटर क्रांति की गोद में पल  रहा है और, जिसके कारण हमारी युवा पीढ़ी अपना युवापन निरंतर खोती जा रही है। आज का मानव कम्प्यूटर की गोद में बैठकर भले ही स्वयं को विश्वविजेता मानने का दम्भ करे पर उसके इस आधुनिक संसार में पल रही ऐसी बुराई को झुठलाया नहीं जा सकता। ऐसी खोज किस काम की जो अपने ही जीवन के लिए अभिशाप बन जाए! इस कम्प्यूटर के विकास ने जीवन में ऐसी गति ला दी है जो स्वाभाविक नहीं है और, जो स्वाभाविक नहीं होता उसका अस्तित्व भी कम समय में ही समाप्त हो जाता है। आप दौड़ेंगे तो जल्दी ही थक भी जाएँगे। जो स्वाभाविक गति से चलते हैं अंत में जीतते भी वही हैं। कम्प्यूटर का मानव जीवन में प्रवेश क्या हो गया कि बच्चे की माँ  गर्व से कहती है कि उसका चार साल का मुन्नु कम्प्यूटर चलाना जानता है और घंटो उसपर काम करता रहता है। कम्प्यूटर पर ऐसी -ऐसी ड्रांइग बनाता है कि देखने वाले देखते ही रह जाते हैं । मगर आठ साल बाद वही माँ कहती है कि पता नहीं किस की नजर लगी मेरे लाल को जिसके कारण इसके चश्मा चढ़ गया और गर्दन में दर्द रहता है। हाय! मेरा लाल सूख गया, देखो सूख कर काँटा हुआ जा रहा है । बेचारी उस माँ को क्या पता कि नजर किसी और की नहीं उस कम्प्यूटर की लग गई  जिसने उसके हीरे के हीरे छीन लिए। कितना प्यारा वरदान दिया है हमारे मानव की दुनिया ने अपनी पीढ़ी को। ऐसे वरदान से तो अच्छा है बिना वरदान के रह जाना ।
मान्यवर, प्रगति होनी चाहिए, विकास होना चाहिए पर साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए की हम इस के सहारे मानव जीवन के संहार का रास्ता तो तैयार नहीं कर रहे हैं। जो कम्प्यूटर क्रांति के वरदान होने की बात करते हैं उनसे पूछना चाहूँगा कि इसके सहारे क्या मौसम की सही जानकारी दे पाए हैं, सुनामी जैसे खतरों और अनगिनत भूकंप को पूर्णतः जान पाए हैं,? क्या अजमेर जैसे छोटे से कस्बे में जहाँ कम्प्यूटर पर काम करना सिखाने की बड़ी-बड़ी दुकाने लगी हैं वैज्ञानिक सोच कि दिशा पैदा कर पाएँ हैं ? हम सभी जानते हैं कि जो हमारे दिमागी काम थे वे सब आज कम्प्यूटर कर रहें हैं तो क्या आपको यह मानव मस्तिष्क को नाकाम करने की  साजिश नहीं लगती है ? मानव को खत्म करने का सबसे बड़ा उपाय है उसकी मानसिक क्षमता में परिवर्तन ला दो । मानव को खत्म करने का सबसे बड़ा उपाय है कि उसकी पीढ़ी को ऐसा पंगु बना दो कि वह चलना भी न सीख सके। कम्प्यूटर क्रांति ने भले ही उत्पादन को बढ़ाया हो,  कंप्यूटर क्रांति ने भले ही रेल्वे पर टिकट काटने  और ए टी एम से पैसा निकालने को आसान कर दिया हो पर सच्चाई यह भी है कि इसने अचूक हथियारों के भंडार को जन्म दिया है, इसने ऐसी  अवस्था को जन्म दिया है जो आनेवाले वर्षों में मानव जीवन के विनाश का कारण बनेगी । कैसे कहूँ की कम्प्यूटर क्रांति वरदान है ! मेरे मुख से सुनना चाहते हैं तो मेरी आँखों पर वह पट्टी बाँध दो जिसे मेरे विपक्षी वक्ताओं ने बाँध रखा है, जिसे मासूम बच्चे की माँ ने बाँध रखा है । मान्यवर, अंधे को अंधा कहेंगे तो बुरा तो मानेगा ही, जमाना ही बदल रहा है दोषी को दोषी कहे जाने पर बूरा मानने लगा है । एक कृष्ण की रास लीला थी जिसमें आदमी भक्ति में डूब जाता था और आज इस कम्प्यूटर की लीला है जो बच्चे से उसका बचपन ऐसे छीन रही है कि न तो बचपन ही ढँग से बीता पाता है और न ही उसकी जवानी ढँग से बीतती है और बुढ़ापा वह स्वयं क्या देखेगा उसे तो और ही देखेंगे।
मान्यवर, स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है । पहला सुख नीरोगी काया को कहा गया है। इनके बाद कुछ कहने के लिए नहीं रह जाता है । अतः अंत में इतना ही कहूँगा- ‘चिलमन में तो हर चेहरा बहुत खूबसूरत नजर आता है , देखना ही है तो चिलमन उठा कर तो देख ।’

धन्यवाद