अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम से लोकतंत्र की भावना आहत होती है।

abhivyakti ki svatantrata

मैं सदन की राय से सहमत हूँ कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम से लोकतंत्र की भावना आहत होती है। - पक्ष

मान्यवर, हमारा संविधान हमें अभिव्यक्ति की आजादी प्रदान करता है। इसकी 19, 20, 21 तथा 22 क्रमांक की धाराएँ नागरिकों को बोलने व  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देती है। इस के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक अपने विचारों को बेबाक दूसरों के समक्ष रख सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि बोलना, लिखना ये सभी अभिव्यक्ति के माध्यम हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार को लोकतंत्र की आत्मा स्वीकार किया जाता है।

मान्यवर, समस्या का आरंभ तब होता है जब सरकार द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी का हनन किया जाता है। जो लोग अपनी बात खुलेतौर पर जनता तक पहुँचाना चाहते हैं उन्हें किसी न किसी तरह से ऐसा करने से रोक दिया जाता है। उनके द्वारा लिखे आलेखों को जब्त कर लिया जाता है।

मान्यवर, प्रश्न ये नहीं है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अन्ना हजारे या सटैर्निक वर्सेंस की वजह से विवादों में आए सलमान रश्दी के प्रति सरकार का रवैया क्या रहा है। प्रश्न है धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहे जाने वाले भारत में सरकार संविधान द्वारा नागरिकों को दिए गए अभिव्यक्ति के अधिकार को छीनने के लिए क्यों तत्पर हो जाती है? प्रश्न यह है कि ऐसी कौनसी-बात है कि मिडिया, प्रेस, लेखक, विचारक आदि अनेकों के सवैंधानिक अधिकार का हनन सरकार द्वारा किया जाता है? प्रश्न यह है कि सरकार के इस प्रकार के व्यवहार से क्या लोकतंत्र की आत्मा आहत नहीं होती है? प्रश्न ये है कि जिस लोकतंत्र के नाम पर सारे विश्व में हमें आदर दिया जाता है क्या वहाँ हमारी छवि कथनी और करनी के नाम पर धूमिल नहीं होती है?

मान्यवर, यह कैसा लोकतंत्र है जहाँ एक ओर तो हम जन-प्रतिनिधियों को सरकार के रूप में चुनते हैं और वहीं दूसरी और उन्हीं के द्वारा हमारे संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के नागरिक अधिकार को अंकुशित कर दिया जाता है? ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का विश्वास जनता पर से ही उठा दिखाई देता है? ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ जनता अपने विचारों को मौखिक और लिखित रूप में खुलकर व्यक्त नहीं कर सकती है? मान्यवर, जिस देश की सरकार स्वयं को न्यायपालिका से भी बड़ा मानकर कार्य करने लगे क्या ऐसी अवस्था में हम उस देश में पूर्ण लोकतंत्र का होना स्वीकार कर सकते हैं ? क्या ऐसी सरकार को अंकुशित नहीं किया जाना चाहिए?

मान्यवर, सच तो यह है कि आज लोगों के लिए आजादी बहुत सस्ती हो गई है। जिन्होंने विदेशी शासकों का अत्याचार देखा था वे देश की आजादी का महत्व समझते थे, वे व्यक्ति की आजादी का महत्व समझते थे। परन्तु आज जो सत्ता पर काबिज़ होता है वह पहले अपना घर भरने की बात सोचता है; देश तो उसके बाद की बात है। ये वे लोग है जिन्हें बिना कुछ किए सिर्फ कुछ लोगों को धर्म, जाति, भाषा, संप्रदाय आदि के नाम पर बाँटने मात्र से वोट मिल जाते हैं; उन लोगों की ताकत को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने का पासपोर्ट मिल जाता है और गुमराह हुए लोगों की आँखों पर ऐसी पट्टी बाँध दी जाती है जिसे वे चाहकर भी नहीं खोल पाते हैं। यदि हमारे लोकतंत्र की ऐसी तस्वीर नहीं होती तब मैं अवश्य कहता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम से लोकतंत्र की भावना आहत होती है पर आज ज़रूरत है कि लोग भ्रष्टाचार के विरोध में आवाज उठाएँ; लोग समाज में फैली बुराईयों के प्रति आवाज उठाएँ, लोग देश को कमजोर बनाने वाले इन नेताओं और अफसरों का राजफ़ाश करें ताकि स्वस्थ देश का निर्माण हो सके। अंत में यही कहूँगा कि
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए!
।।धन्यवाद॥

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मैं सदन की राय से सहमत नहीं हूँ कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम से लोकतंत्र की भावना आहत होती है। - विपक्ष

मान्यवर, जिस देश में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही शासन चलाएँ वहाँ लोकतंत्र की भावना आहत न हो इसलिए अभिव्यक्ति पर लगाम होना बहुत जरुरी है।

मान्यवर , हमारे संविधान के अनुसार हमारा देश एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र है। यहाँ नागरिकों को अभिव्यक्ति का अधिकार प्राप्त है। पर यह अधिकार किस तरह से है इसका समझा जाना बहुत जरुरी है। एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के सबसे प्रमुख है कि उसमें रहने वाले विभिन्न धर्म के लोगों की भावनाएँ किसी के द्वारा आहत न की जाएँ और प्रत्येक नागरिक  को आगे बढ़ने और जीवन यापन का समान अधिकार हो। जब जिसके मन में आए वह दूसरे धर्मावलम्बियों पर कीचड़ उछालने के लिए स्वतंत्र नहीं है। प्रजा के हितों की रक्षा किसी भी सरकार का प्रमुख कर्त्तव्य होता है। अलगाव व साम्प्रदायिकता जैसी स्थितियों से देश की भीतरी सुरक्षा के लिए जरुरी है कि संवेदनशील मुद्दों पर न तो प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए और न ही उन्हें बढ़ावा दिया जाए। तब ही देश की भीतरी और बाहरी सुरक्षा स्थाई रह सकती है।

मान्यवर, माना कि लोकतंत्र की आत्मा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। परन्तु, इसका ये मतलब तो नहीं कि लोगों को अपने देश की सीमाओं में रहने वाले विभिन्न जातियों, संप्रदायों, धर्मौं, भाषाओं के लोगों पर मनमानी टीका-टिप्पणी करने की आजादी मिल जाए। सबसे बड़ी बात हमारे लोकतंत्र में न्यायपालिका का दर्जा सबसे बड़ा हैं और उसकी अनदेखी कर अपने विचारों से देश में उत्तेजना फैलाने, समाज के निर्णयों को अपने हाथ में लेने, बिना किसी संवैधानिक तरीके के मात्र प्रसिद्ध होने के लिए ऐसी बातें लिखने या बोलने के लिए जिनसे रातोंरात यश और समृद्धि के द्वार खुल सकें, यह किस प्रकार की अभिव्यक्ति की आजादी है? - यह मेरी समझ से परे है। कानून के दायरे में रहकर ही सत्ता को चलना होता है तो कानून की सीमाओं में ही प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन जीने की आजादी है क्योंकि हमारा संविधान ही सबसे बड़ा कानून है।

मान्यवर, जो प्रेस, मिडिया की अभिव्यक्ति की आजादी कीे बात करते हुए उसे अंकुशित किए जानेपर लोकतंत्र की भावना का आहत होना मानते हैं, उन्हें बताना चाहूँगा कि आपके बोलने पर या लिखने पर अंकुश नहीं है । अंकुश आपके असामाजिक विचारों, व्यवहारों और कार्यकलापों पर है जो देश की गरिमा और उसके निवासियों के हितों को नुकसान पहुँचाने का कार्य करते हों। अपने विपक्षी मित्रों से पूछना चाहूँगा कि क्या वे अपने न चाहनेवालों से गालियाँ सुनना पसन्द करेंगे; क्या वे अखबारों और दूरदर्शन या वेबसाइटों पर अपने या अपने प्रियजनों के बारे में अभद्र टिप्पणियाँ पढ़ना या सुनना सहन कर सकेंगे? यदि अभिव्यक्ति की मर्यादा का पालन न करवाया जाए तो यही होगा और फिर हमारी सामाजिक स्थिति पतन के किस गड्ढे में जाएगी, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है। हमारे देश में यदि नारियों को देवी का दर्जा दिया गया है तो फिर दूसरे देश के नागरिक को भी इस भूमि पर आकर इसकी पालना करनी ही होगी। यदि हम अपने देवी-देवताओं के मंदिर में चप्पल-जूते नहीं लेकर जाते हैं तो दूसरे देश के व्यक्ति को भी इस देश में आकर इसकी पालना करनी ही होगी। यदि कोई देशी या विदेशी लेखक की पुस्तक या विचार देश की मर्यादा को आहत करने वाले हैं तो उसे अंकुशित किया ही जाना चाहिए। अन्यथा हमारा लोकतंत्र, लोकतंत्र न रह पाएगा।

मान्यवर, मेरे विपक्षी वक्ताओं को बताना चाहूँगाा कि ‘भारतीय प्रेस परिषद्’ एक संविधिक स्वायत्तशासी संगठन है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने व उसे बनाए रखने, जन-अभिरूचि का उच्च मानक सुनिश्चित करने से और नागरिकों के अधिकारों व दायित्वों के प्रति उचित भावना उत्पन्न करने का दायित्व निबाहता है। प्रेस परिषद् प्रेस से प्राप्त या प्रेस के विरूद्ध प्राप्त शिकायतों पर विचार करती है। परिषद् सरकार सहित किसी समाचार-पत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकती है या निंदा कर सकती है या किसी सम्पादक या पत्रकार के आचरण को गलत ठहरा सकती है। परिषद् के निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

काफी मात्रा में सरकार से धन प्राप्त करने के बावजूद इस परिषद् को काम करने की पूरी स्वतंत्रता है तथा इसके संविधिक दायित्वों के निर्वहन पर सरकार का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है।   
 
अतः अंत में यही कहूँगा लोकतंत्र की रक्षा के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम होना बहुत जरुरी है अन्यथा हमारा देश किसी दिन गृह-युद्ध के कगार पर पहुँच जाएगा।

॥ धन्यवाद।।
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