माँ का उपहार
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शैवाल चक्रवर्ती
सन
1942 में महात्मा गाँधी द्वारा चलाया गया 'अंग्रेजो,
भारत छोड़ो!' आंदोलन1 सारे देश में आग की तरह फैल
चुका था। बंगाल का बच्चा-बच्चा आंदोलन में भाग लेने के लिए उठ खड़ा हुआ था। इन्हीं
दिनों इस आंदोलन के दौरान कलकत्ता (अब कोलकाता) में स्वतंत्रता के दीवानों ने एक
मौन2
जुलूस निकाला। जुलूस चुपचाप शांत-भाव से तिरंगा झंडा लिए हुए शहर की मुख्य सड़क
पर आया। जुलूस के आते ही उस पर गोलियों की बौछार होने लगी। सबसे पहली गोली सत्तर3 वर्ष की उस वृद्ध महिला
को लगी, जो तिरंगा झंडा हाथों में
लिए जुलूस में सबसे आगे थी। गोली लगते ही वह वृद्धा "वंदे मातरम्' कहती हुई धड़ाम से गिर पड़ी। इससे पहले कि उसके हाथों से तिरंगा झंडा
नीचे गिरता, एक छोटे-से लड़के ने दौड़कर झंडे को सँभाल
लिया। लेकिन पुलिस तो जुल्म ढाने4 पर
उतरी हुई थी। वह लगातार गोलियाँ चलाती रही, जिससे वह
छोटा-सा लड़का भी गोली लगने से शहीद हो गया। पुलिस की इस गोलाबारी और लाठी-चार्ज
से तीन महिलाएँ और कई बच्चे शहीद हो गए। जुलूस पर गोली चलाने का आदेश देने वाला पुलिस कमिश्नर5 था - गोर्डन जैक्सन। |
1.
उथल-पुथल करनेवाला सुनियोजित सामूहिक
संघर्ष 2.
शांत प्रदर्शन (Procession) 3.
70 4.
अत्याचार करना 5.
पुलिस आयुक्त |
अरुण
को अपनी स्कूल की किताबों के अलावा कहानी की किताबें पढ़ने का भी शौक1 है। वह ज्यादातर बहादुर और साहसिक काम
करने वालों की जीवनियाँ व घटनाएँ पढ़ना पसंद करता है। |
1.
रुचि |
अरुण
जब तेरह वर्ष का था, तभी उसके पिता का
अचानक स्वर्गवास हो गया। इसलिए शारदा देवी ने एक कन्या विद्यालय में अध्यापिका
की नौकरी कर ली और अरुण को एक बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया। अरुण को माँ से दूर
रहना अच्छा नहीं लगा, लेकिन बाद में बोर्डिंग स्कूल में
अपने दोस्तों के साथ उसका मन लग गया। अरुण अपने स्कूल का जाना-माना छात्र था।
उसे 'सबसे कुशल तैराक' का पुरस्कार
तीन वर्षों से लगातार मिल रहा था। वैसे वह भारतीय वायुसेना में पायलट बनना चाहता
था। उसका
बोर्डिंग स्कूल सिलीगुड़ी में था- सेंट कोलंबस बोर्डिंग स्कूल। यह स्कूल तीस्ता
नदी के किनारे पर बना था। |
|
इस
नदी से अरुण को बहुत लगाव1 था।
इम्तहान के दिनों में जब वह देर रात तक पढ़ता रहता तो सुनसान अँधेरे में तीस्ता
के बहने की आवाज़ उसे बहुत अच्छी लगती थी। गर्मियों में पानी कम होने से तीस्ता
का बहाव मंद2 पड़ जाता और वर्षा ऋतु
के आते ही वह बहुत तेजी से बहने लगती। जब भी अरुण अकेलापन महसूस करता,
उसके किनारे जा बैठता। तीस्ता उसे अपनी माँ जैसी धीर3 गंभीर4 लगती थी। स्कूल
के नियमानुसार अरुण पूरे साल में केवल दो बार घर आ सकता था। एक बार दुर्गापूजा
की छुट्टियों में, दूसरी बार क्रिसमस की
छुट्टियों में। इसके बीच वह माँ को लगातार पत्र लिखता रहता और जवाब में आए माँ
के पत्रों को बार-बार पढ़ता। माँ की सभी चिट्ठियाँ उसने एक छोटे लकड़ी के डिब्बे
में संभालकर रख रखी थीं। जब भी उसे माँ की याद आती, वह
पत्र निकाल लेता और उन्हें पढ़ता। पत्र पढ़ते हुए उसे ऐसा महसूस होता कि माँ
उसके सामने ही बैठी हैं और उससे बातें कर रही हैं। दुनिया में उसे माँ से ज्यादा
प्यारा कोई न था। लेकिन इस बार दुर्गापूजा की छुट्टियों में जब वह आया तो अपनी
माँ से गुस्सा हो गया। गुस्से का कारण यह था कि शारदा देवी के पास आज भी
रिवाल्वर था जिससे उन्होंने जैक्सन पर गोली चलाई थी। |
1.
अपनापन, मोह, आकर्षण 2.
धीमा 3.
जो मन से लगा रहता
हो, स्थिरचित्त 4.
शांत 5.
विचारशील, कम बोलने
और हँसी-मजाक से दूर रहने वाला, शांत |
गोली
चलाने के बाद उन्होंने रिवाल्वर फेंक दिया था,
परंतु उनके किसी साथी ने उठा लिया था। वर्षों बाद जब भारत
स्वतंत्र हो गया तो वह रिवाल्वर उसने उन्हें भेंट कर दिया था। वह रिवाल्वर उनके
लिए एक महत्वपूर्ण यादगार1 था।
उन्होंने एक छोटे-से बक्से में उसे बहुत संभालकर रख छोड़ा था। अरुण उस रिवाल्वर
को देखना चाहता था। इसके लिए उसने माँ से कई बार कहा, परंतु
माँ ने हर बार उसे यह कहकर टाल दिया कि अभी तुम छोटे हो। लेकिन इस बार अरुण ने
जिद ही पकड़ ली, "मुझे वह रिवाल्वर दिखाओ, मैं अब बड़ा हो गया हूँ ।“ "नहीं, अभी नहीं! सही समय पर मैं तुम्हें खुद दिखा दूंगी।“ बस!
अरुण इसी बात पर माँ से नाराज था। अरुण
के स्कूल की अलग-अलग देशों में पांच शाखाएँ थीं। एक-दूसरे देश के स्कूलों में
छात्र आते-जाते रहते थे। छात्रों के इस तरह आने-जाने का उद्देश्य यह था कि बच्चे
आपस में एक-दूसरे देश के छात्रों से मिलें। उनके रहन-सहन,
खान-पान, रीतिरिवाज और संस्कृति को खुद देखें
और उसके बारे में जानें। इस
बार का क्रिसमस अरुण के जीवन में नया मोड़ लेकर आया। क्रिसमस की छुट्टियों से
पहले अरुण के स्कूल की लंदन वाली शाखा के दस बच्चे सिलीगुड़ी आए। अरुण और उसके
दोस्त उनसे मिलकर बहुत खुश थे। वे आपस में मिल बैठते,
ढेर-सी बातें करते और एक-दूसरे के बारे में ज्यादा से ज्यादा
जानने की कोशिश करते। उन्हें महसूस2
हुआ कि उनमें आपस में काफी समानताएँ हैं। अरुण
ने अपनी माँ को पत्र में उनके बारे में लिखा था। उसने पत्र में उस पिकनिक का भी
वर्णन किया, जिसमें एक बड़ी दुर्घटना
घटते-घटते बच गई थी। |
1.
स्मृति चिह्न , भेंट
जो किसी निशानी के तौर पर रखी हो 2.
मालूम, ज्ञात
|
घटना
यह थी कि लंदन लौटने से केवल एक दिन पहले पिकनिक का प्रोग्राम बनाया गया। रविवार
का दिन था। सूरज की धूप बहुत अच्छी लग रही थी। ठंड के दिनों में खिली हई धूप का
तो अपना ही आनंद होता है। इतिहास के अध्यापक सुबीर राय और लंदन से आए फादर
रोनाल्ड पिकनिक में बच्चों के साथ थे। सुबीर राय के जिम्मे खाने-पीने का इंतजाम
करना था। कुछ लड़के गप्पे मार रहे थे तो कुछ बैडमिंटन खेल रहे थे। तभी कुछ लड़कों
को तीस्ता नदी में नहाने की बात सूझी। वे सुबीर सर के पास पूछने गए। सुबीर सर ने
कहा, "नहाने के लिए नदी में वे ही
बच्चे जाएँ, जिन्हें तैरना आता हो|’’ अठारह
बच्चे नहाने के लिए तैयार हो गए। उनमें एक बच्चा लंदन से आया डिक भी था। डिक
अरुण से एक वर्ष छोटा था। उसकी आँखें नीली थी। वह माउथआर्गन
बहुत अच्छा बजाता था। जब रात में सब बच्चे खाना खाकर हॉल में जमा होते,
तब डिक माउथआर्गन बजाता। उसे बहुत-सी धुनें आती थीं। इसलिए उसे
सभी बहुत चाहते थे। अरुण
ने पत्र में लिखा था-"तुम जानती नहीं हो माँ,
तीस्ता नदी का स्वभाव कैसा है। वह कभी-कभी तो बहुत शाँत बहती है। मगर कभी-कभी इतनी उग्र1 हो जाती है कि तुम सोच भी नहीं सकती।
सबसे खतरनाक बात यह है कि वह कब अपना स्वभाव बदल लेगी, इसका
कुछ पता नहीं चलता।“ "उस
दिन हमें यह पता नहीं चला कि तीस्ता इस तरह अचानक अपना स्वरूप बदल लेगी। पहले दस
बच्चों ने नदी में छलाँग लगाई। डिक भी उन्हीं में से एक था। मैं तीस्ता के
किनारे रेत में बैठा था कि तभी 'बचाओ-बचाओ'
की आवाज सुनाई दी। मैंने देखा डिक पानी के बहाव के साथ बहा जा रहा
है और सहायता के लिए हाथ-पाँव मार रहा है। तैर रहे दूसरे लड़के उसके पास पहुँचना
तो चाह रहे थे, पर पहुँच नहीं पा रहे थे क्योंकि पानी का
बहाव बहुत तेज़ था। इस दृश्य ने मेरे दिमाग को झन्ना दिया। माँ, मैं समझ गया था कि डिक को तैरना अच्छी तरह नहीं आता। अगर कुछ और देर हुई
तो वह भँवर की तरफ खिंचा चला जाएगा। उसका जीवन खतरे में था।” |
माउथआर्गन
1.
भयानक, तीव्र 2.
लहरों का चक्कर
(Whirlpool) |
"मैंने
फौरन छलाँग लगा दी। मैं जानता था कि डिक की तरफ जाने का मतलब हैअपने को खतरे में
डालना, लेकिन मैं अपने दोस्त को किस तरह
डूबने देता? क्या यह हम सबके लिए शर्म की बात नहीं होती। मैंने
तेज़ और तेज़ तैरने की कोशिश की। मैंने उस समय तैराकी के वे सभी तरीके अपनाए जो
मैंने सीखे थे। मैंने अपना सिर ऊँचा रखा और जब किनारे की ओर देखा तो वहाँ फ़ादर
रोनाल्ड और सुबीर सर खड़े थे, जो मेरा
उत्साह बढ़ा रहे थे और डिक को लगातार तैरने के लिए कह रहे थे।" "मैं
बता नहीं सकता माँ कि मैं किस तरह और कितनी देर में डिक के पास पहुँचा। मुझे अब
हलका-सा ही याद है कि मैंने डिक के बर्फ जैसे ठंडे शरीर को खींचा और वापस किनारे
पर ले आया।" "जब
मेरी आँख खुली तो शाम हो चुकी थी। मैं स्कूल के अस्पताल के पलंग पर लेटा था।
मैंने देखा, फ़ादर रोनाल्ड और हमारे
प्रिंसिपल साहब मि. मार्टिन मेरे पास ही खड़े थे।“ उन्हें
देखते ही मैंने पूछा, "डिक कैसा है?“ "वह
ठीक है," मि. मार्टिन ने कहा, "तुम कैसे हो बेटा?“ "मैं
ठीक हूँ सर!" मैंने मुसकराकर जवाब दिया। मि.
मार्टिन मेरा सिर सहलाते हुए बोले,
"तुमने बड़े साहस का काम किया अरुण! तेज बहाव में लगभग तीन मील तैरना कोई
आसान काम नहीं था, मेरे बच्चे!“ "बहुत
बहादुर हो तुम!" फ़ादर रोनाल्ड ने भरे हुए गले से कहा। "धन्यवाद
सर!" मैंने धीमे-से कहा। मेरी आँखें एक बार डिक को देखना चाह रही थीं। मैं
बिस्तर से जरा-सा उचका तो सामने के पलंग पर डिक लेटा दिखाई दिया। वह मेरी तरफ
देखकर मुसकराया। "बदमाश
लड़के, जब तुम ठीक से तैरना नहीं जानते थे तो
नदी से खिलवाड़ करने क्यों उतरे?" मैंने उसे प्यार से
डपटते हुए कहा। मि.
मार्टिन ने हमें गर्म-गर्म कोको पीने को दिया। फ़ादर रोनाल्ड ने मेरा हाथ अपने
हाथ में ले लिया, उनकी आवाज़ बहुत गंभीर और
गला भरा हुआ था। उन्होंने कहा, "अरुण, कल हम लोग वापस लंदन जा रहे हैं। तुम्हारा साहस मेरी यात्रा की सबसे
कीमती यादगार है। यदि तुम डिक को नहीं बचाते तो मैं उसके माता-पिता को मुँह
दिखाने लायक नहीं रहता। मैं उनसे क्या कहता? ईश्वर तुम्हें
लंबी उम्र दे, मेरे बच्चे।“ उनकी आँखों में आँसू भरे थे। "जानते
हो अरुण, डिक का नाम भारत आने वाले
बच्चों में नहीं था। इसकी जिद पर ही इसे साथ लाया गया।" सुधीर सर ने कहा। "जिद, कैसी जिद?“ "उसका
कहना था कि भारत से उसका विशेष संबंध है।“ "विशेष
संबंध, हमारे भारत से?"
मैंने पूछा। "हाँ, क्योंकि वर्षों पहले उसके पिता जी यहाँ सर्विस करते थे।“ "जब
फ़ादर रोनाल्ड ने उसके पिता का नाम बताया तो माँ,
मैं एक मिनट के लिए सन्न रह गया। मैं मिलने पर उसके बारे में बाकी
बातें बताऊँगा, जिन्हें सुनकर आप आश्चर्य करेंगी।“ "मि, मार्टिन ने मुझे छुट्टी दे दी है, ताकि मैं कुछ
दिन आपके पास रह सकूँ और मेरा टिकट भी बुक करा दिया है। रविवार की सुबह
दार्जिलिंग मेल से मैं सियालदह पहुँच जाऊँगा। आशा है, आप
मुझे लेने स्टेशन पर आएंगी। आपका प्यारा बेटा अरुण" |
|
पत्र
मिलने के दिन से ही शारदा देवी अपने बेटे का बेसब्री से इंतजार कर रही थी। सुबह
ट्रेन आने से पहले ही वह स्टेशन पहुँच गई। उन्हें मि. मार्टिन का भी एक पत्र
मिला था, जिसमें उन्होंने अरुण के
साहस की प्रशंसा लिखते हुए यह भी लिखा था कि डॉक्टर ने उसे कुछ दिन आराम करने की
सलाह दी है। अतः हम चाहते हैं कि वह छुट्टियों के दिन आपके पास बिताए। प्लेटफॉर्म
पर ट्रेन के रुकते ही अरुण माँ से लिपट गया। "आप
कैसी हैं, माँ?“ "मैं
तो ठीक हूँ, तुम बताओ?" माँ ने उसे निहारते हुए पूछा। "मैं
तो बिलकुल ठीक हूँ।" आत्मविश्वास से-भरे अरुण ने जवाब दिया। वे
दोनों टैक्सी में बैठ गए। तब शारदा देवी ने पूछा, "बेटे, तुमने डिक के बारे में कुछ बताने के
बारे में पत्र लिखा था, बताओ न, मैं
भी बहुत उत्सुक हूँ।“ "हाँ
माँ, यह एक संयोग की बात है, इसलिए मैं चाहता था कि आपसे मिलने पर ही यह बात बताऊँ।“ "क्या
आप अंदाज़ लगा सकती हैं माँ कि डिक कौन है ? "माँ, डिक मि. गोर्डन जैक्सन का सबसे छोटा
बेटा है, जो सन 1942 में कलकत्ता में पुलिस कमिश्नर थे और
जिन पर गोली चलाने के कारण ही आपको जेल हुई थी।“ शारदा
देवी अरुण की बात सुनकर सन्न1 रह
गईं। उनकी आँखों के सामने उस समय की गई पुलिस की बर्बरता का दृश्य घूम गया कि
किस तरह जुलूस पर जैक्सन ने गोली चलवाकर छोटे-छोटे बच्चों तक को मरवा डाला था। अरुण
यह बात समझ नहीं पा रहा था कि आखिर उसकी माँ एकाएक उदास क्यों हो गईं। वह लगातार
टैक्सी की खिड़की से बाहर देखें जा रही थीं। "माँ," उसने पुकारा, परंतु उन्होंने कोई जवाब नहीं
दिया। अरुण निराश हो गया कि डिक को बचाने की उसकी बहादुरी पर माँ ने कुछ नहीं
कहा। "क्या मिस्टर जैक्सन के लड़के को बचा लेना माँ को अच्छा नहीं लगा?" अरुण अभी सोच ही रहा था कि घर आ गया। टैक्सी से उतरकर शारदा देवी
ने किराया दिया। रामू काका अरुण का सामान अंदर ले गए। "तुम
मेरे साथ आओ, अरुण!" माँ ने उससे
कहा। |
1.
भौचक्का, स्तब्ध |
सोने
के कमरे में पहुँचकर शारदा देवी ने अलमारी खोली। उसमें से एक बक्सा निकाला और
बोली, "अरुण बेटे, देखो यह रिवाल्वर! मैंने इसे हमेशा अपने पास रखा क्योंकि यह शहीदों की
यादगार है। आज तुम्हारे साहस, तुम्हारे विचार और तुम्हारे
मित्रता के इस व्यवहार को देखकर यह रिवाल्वर सिर्फ
दिखा ही नहीं रही, बल्कि तुम्हें सौंप भी रही हूँ। क्योंकि
अब तुम बड़े हो गए हो, इसे सँभालकर रखने योग्य भी!" "अरुण
ने रिवाल्वर को बड़े आदर से अपने माथे से लगाया और फिर झुककर माँ के पाँव छू
लिए।" "शारदा
देवी की आँखों में आँसू छलक आए। परंतु उनके होठों पर मुसकराहट थी।
उनका चेहरा एक अलौकिक1 गर्व2 से चमक रहा था।" अरुण
के दिमाग में एक और मुसकराता चेहरा घूम रहा था,
वह था डिक जैक्सन का। |
1.
अद्भुत, अपूर्व 2.
अभिमान |
{ साभार – नूतन कथा कलिका (भाग-7), हिंदी कहानियों का
एक बहुत ही अच्छा संग्रह है इसका प्रकाशन गोयल ब्रदर्स प्रकाशन के द्वारा किया
जाता है| }