इस समय, देश
में धर्म की धूम है। उत्पात किए जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर, और
जि़द की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर। रमुआ पासी और
बुद्धु मियाँ धर्म और ईमान को जानें, या न जानें, परंतु उनके नाम पर उबल पड़ते हैं और जान लेने
और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
देश के सभी शहरों का यही हाल
है। उबल पड़नेवाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं
समझता-बूझता, और
दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं, उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ
चलते-पुरज़े पढे़-लिखे लोगों का, जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्साह का
दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, ज़ाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्व और
बड़प्पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्हें सबसे
सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी।
साधारण से साधारण आदमी तक के
दिल में यह बात अच्छी तरह बैठी हुई है कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक
दे देना वाजि़ब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को क्या जाने? लकीर
पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्था से चालाक लोग इस समय बहुत
बेज़ा फ़ायदा उठा रहे हैं। पाश्चात्य देशों में, धनी लोगों की, गरीब
मज़दूरों की झोंपड़ी का मज़ाक उड़ाती हुई अट्टालिकाएँ आकाश से बातें
करती हैं! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं, और
उसी के बल से, वे
सदा इस बात का प्रयत्न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहें। यह भयंकर अवस्था है!
इसी के कारण, साम्यवाद, बोल्शेविज़्म
आदि का जन्म हुआ।
हमारे देश में, इस
समय, धनपतियों
का इतना ज़ोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा
चूसा जाना इतना बुरा नहीं है, जितना बुरा यह है कि वहाँ है धन की मार, यहाँ
है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है, और फिर मन-माना धन पैदा करने के लिए जोत दिया
जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए
लेना, और
फिर, धर्म, ईमान, ईश्वर
और आत्मा के नाम पर अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना।
मूर्ख बेचारे धर्म की
दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेलते और थोड़े-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा
करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किए जाने वाले इस भीषण
व्यापार को रोकने के लिए, साहस और दृढ़ता के साथ, उद्योग
होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्य-प्रति बढ़ते जाने
वाले झगड़े कम न होंगे।
धर्म की उपासना के मार्ग में
कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में
जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्वर और आत्मा के बीच का
संबंध हो, आत्मा
को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो।
वह, किसी
दशा में भी, किसी
दूसरे व्यक्ति की स्वाधीनता को छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस
तरह का धर्म आप मानें, और दूसरों का मन चाहे, उस
प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्न धर्मो के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्थान न हो। यदि किसी धर्म के
मानने वाले कहीं ज़बरदस्ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य
देश की स्वाधीनता के विरुद्ध समझा जाए।
देश की स्वाधीनता के लिए जो
उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निःसंदेह, अत्यंत
बुरा था, जिस
दिन, स्वाधीनता
के क्षेत्र में खिलाफ़त, मुल्ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान दिया जाना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता
के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल
आज हमें भोगना पड़ रहा है। देश को स्वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी
और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्हें
अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ है कि इस समय, हमारे
हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और देश
में मज़हबी पागलपन, प्रपंच और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।
महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं।
वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु उनकी बात ले उड़ने के
पहले, प्रत्येक
आदमी का कर्तव्य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्माजी के ‘धर्म’ का
स्वरूप क्या है? धर्म
से महात्माजी का मतलब धर्म ऊँचे और उदार तत्त्वों ही
का हुआ करता है। उनके मानने में किसे एतराज़ हो सकता है।
अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज़ पढ़ने का नाम धर्म नहीं है।
शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और
पंच-वक्ता नमाज़ भी अदा कीजिए, परंतु ईश्वर को इस प्रकार रिश्वत के दे चुकने
के पश्चात्, यदि
आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझते हैं तो, इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब
तो, आपका
पूजा-पाठ न देखा जाएगा, आपकी भलमनसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगी।
सबके कल्याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे
तो नमाज़ और रोज़े, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्य लोगों की
आज़ादी को रौंदने और देश-भर में उत्पातों का कीचड़ उछालने के लिए आज़ाद न छोड़
सकेगी।
ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो, वे
ला-मज़हब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्छे और ऊॅँचे हैं, जिनका
आचरण अच्छा है, जो
दूसरों के सुख-दुःख का ख़याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्वार्थ-सिद्धि के लिए
उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्वर इन नास्तिकों और ला-मज़हब लोगों को अधिक प्यार
करेगा, और
वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, मुझे
मानो या न मानो, तुम्हारे मानने ही से मेरा ईश्वरत्व कायम नहीं
रहेगा, दया
करके, मनुष्यत्व
को मानो, पशु
बनना छोड़ो और आदमी बनो!
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द्वारा :- hindiCBSE.com
आभार: एनसीइआरटी (NCERT) Sparsh Part-1 for Class 9 CBSE