Sir mujhe samvad lekhan chahiye pani ki kami pr jo ki 2 yatri k bich ho rhi hai..
बेटेजी, मुझ से अपना होमवर्क करवा रहे हो ! :)
यात्रियों के बीच पानी पर सम्वाद
यात्री एक- कैसा समय आ गया है एक तरफ नल में पानी बह रहा है और दूसरी तरफ बोतलों में बिक रहा है ?
यात्री दूसरा- पानी का महत्व कोई समझना ही नहीं चाहता है। लोग नल खुला ही छोड़ देते हैं। यदि सरकारी नल हो तो और भी बुरी स्थिति देखने में आती है ।
यात्री एक- हाँ, लोग समझते हैं कि उनका क्या जा रहा है ? पानी तो सरकार का है ! नल से बहे तो बहे।
यात्री दूसरा- लगता है जैसे लेागों को पानी का महत्व और उसका संरक्षण कैसे करें यह बताना सिर्फ सरकार का ही काम रह गया है !
यात्री एक- हमारे गाँव में पानी की कमी रहने लगी थी। उसे दूर करने के लिए गाँववालों ने मिलकर जगह-जगह खड्ढे खोदे हैं ताकि बरसात का पानी जमा हो सके। इससे वर्षा का पानी उनमें इकट्ठा हो जाता है और इससे उनके कुओं में भी काफी समय पानी भरा रहता है।
यात्री दूसरा- अरे वाह! ऐसा तो कहीं भी किया जा सकता है।
यात्री एक- बिल्कुल। हमारे गाँव की देखादेखी आस-पास के गाँवों में भी यह तरीका अपनाने लगे हैं।
यात्री दूसरा- मैं भी अपने गाँव में यह काम कराता हूँ।
यात्री एक- लो मेरा स्टेशन आ गया। आपके साथ समय अच्छा कटा।
यात्री दूसरा- पानी के संरक्षण के बारे में बताने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। नमस्कार!
यात्री एक- नमस्कार।
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Kisi kavi ke saath hui baat par samvad
बेटेजी, मुझ से अपना होमवर्क करवा रहे हो ! :)
किसी कवि के साथ बातचीत
छात्र- मैं भी आपकी तरह कविता लिखना चाहता हूँ। मुझे बताएँ कि क्या करना चाहिए।
कवि- वाह! अच्छी बात है। प्रतिदिन कुछ लिखा करो। प्रत्येक लाइन का अन्तिम अक्षर एक लय में लिखने का प्रयास करो जैसे -
उस कुर्सी पर लड़का बैठा है।
बैठ के देखो कैसा ऐंठा है।
छात्र- अरे वाह! यह तो मैं कर सकता हूँ।
कवि - बस, अलग-अलग विषयों पर यों लय बनाकर लिखने का अभ्यास करो। धीरे-धीरे अच्छा लिखने लगोगे।
छात्र- नए-नए विषय कहाँ से मिलेंगे ?
कवि - विषय तो चारों तरफ बिखरे पड़े हैं। पेड़, पक्षी, पशु, घड़ी , टी. वी आदि कितनी ही चीजें हमारे आस-पास बिखरी हुई हैं ।
छात्र- यह तो बहुत आसान है।
कवि - हाँ। रोजाना नए शब्दों का प्रयोग करो, नए विषयों पर लिखो, कोई सीख की बात बताओ और लय का ध्यान रखो तुम भी अच्छा लिखने लग जाओगे।
छात्र - आपने जैसा मुझे बताया है वैसा ही करुँगा। आपका बहुत-बहुत आभार। आशीर्वाद दें।
कवि - खुश रहो! तरक्की करो!
समाप्त
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प्रिय अनूप,
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17.03.17 G.s. kushwah
31/12/2016 की पूर्व संध्या पर परिवार के साथ होटल में हुए वृतान्त को संवाद के रूप में भेजें
होटल प्रबंधक: नमस्कार! आपका स्वागत है! बतायें मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ।
परिवार सदस्य: आपकी होटल में हमने दो कमरे आरक्षित कराए थे।
होटल प्रबंधक: किस नाम से आरक्षित कराए थे ?
परिवार सदस्य: महेश कुमार।
होटल प्रबंधक: जी ! कृपया आरक्षित करने की तारीख बताएँ।
परिवार सदस्य: 17 मार्च 17 सायं लगभग 5 बजे फोन पर श्री अरूण कुमार से वार्ता हुई थी।
होटल प्रबंधक: पर, इस नाम से तो हमारे होटल में कोई कमरा आरक्षित नहीं है।
परिवार सदस्य: ऐसे कैसे हो सकता है? श्री अरूण कुमार जी को बुलाएँ उन्होंने आरक्षित किया है।
होटल प्रबंधक: आपके फोन पर कोई संन्देश आया होगा।
परिवार सदस्य: जी हाँ! यह सन्देश है। स्वयं देख लें।
होटल प्रबंधक: श्रीमान् हमारे होटल का नाम ‘आम्रपाली पैलेस’ है और आपने ‘आम्रपाली होटल’ में कमरे आरक्षित कराए हैं। यह होटल सड़क के दूसरी तरफ सामने ही है।
परिवार सदस्य: ओह! माफी चाहूँगा आपको कष्ट दिया।
होटल प्रबंधक: यह तो हमारा फ़र्ज़ है। भविष्य में हमारे होटल में भी आएँ। आपको अच्छा लगेगा।
परिवार सदस्य: जी अवश्य! धन्यवाद। नमस्कार!
होटल प्रबंधक: नमस्कार!
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02 Jan 2017
मुझे पक्षी और पिंजरे की सलाखे पर संवाद लेखन भेजे on संवाद-लेखन
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Kiran Kumar Das
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on 02/01/17
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पिंजरे की सलाखें:- दोस्त! तुम्हारा इस नए घर में स्वागत है।
पक्षी :- मुझे तुम्हारी दीवारें बिलकुल भी अच्छी नहीं लगती।
पिंजरे की सलाखें:- मैं इसमें क्या कर सकता हूँ। मुझे बनाया ही ऐसा है।
पक्षी :- तुम हमारी आज़ादी छीनने में क्यों सहयोग करते हो?
पिंजरे की सलाखें:- मैं ठहरा निर्जीव, मनुष्य के हाथों की कठपुतली। वह जैसे चाहे वैसे मेरा इस्तेमाल कर। मैं कुछ नहीं कर सकता। पर, तुम तो समझदार हो; दुनिया का चक्कर लगाते हो फिर उसके प्रलोभन में कैसे फँस जाते हो।
पक्षी :- हर मनुष्य बुरा नहीं होता बस कुछ ही बुरे होते हैं इसलिए हम अच्छे के पीछे छिपे बुरे को स्वभाव को पहचान नहीं पाते और उसकी कैद में फँस जाते हैं।
पिंजरे की सलाखें:- मैं पराधीन विवश हूँ। तुम्हारी सहायता भी नहीं कर सकता।
पक्षी :- तुम खुले रह जाओगे तो मैं उड़ जाऊँगा।
पिंजरे की सलाखें:- मैं कोशिश करूँगा कि तुम जल्दी से आज़ाद हो सको। पर तुम्हें भी चौक्कना रहना होगा।
पक्षी :- ठीक है।
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पिंजरे की सलाखें:- मेरे दोस्त! मुझे तुमसे पूरी हमदर्दी है। तुम दुखी मत हो। जल्दी ही मेरी सलाखों से आज़ाद हो जाओगे।
पक्षी :- कैसे? तुम मुझे जाने ही नहीं देते।
पिंजरे की सलाखें:- कल जब मालिक मेरी सफाई करेंगे तब मैं अपना तार उनके कपड़े में उलझा लूँगा। वो जब उसे छुड़ाने लगें तब तुम तेज़ी से उड़ जाना।
पक्षी :- तुम्हारा अहसान रहेगा मुझ पर।
पिंजरे की सलाखें :- अपने दोस्तों से कहना मनुष्य से बचकर रहे। वह अब क्रूर और निर्दयी हो गया है और अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है।
पक्षी :- तुम कितने अच्छे हो। मैं तुम्हें भूल नहीं सकूँगा।
पिंजरे की सलाखें:- मैं भी।
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03 मार्च 2017
बँधाओ शब्द का अर्थ
प्रिय कार्तिक सिंघल,
बँधाओ शब्द का मूल शब्द है बन्ध। जिसका अर्थ बन्द, गाँठ, कैद, योग की एक मुद्रा, किसी वस्तु का बाँधा जाना, लगाव, फँसाव, शरीर आदि से होता है। धारण कराओ, वचन का पालन कराओ, मुकर्रर (तय) कराओ, देना आदि को बताने के लिए बँधाओ का प्रयोग करते हैं। मैं समझता हूँ कि आपका प्रश्न ‘आत्मत्राण’ कविता के सन्दर्भ में ‘हिम्मत बँधाओ’ से जुड़ा हुआ है। इसलिए यहाँ बँधाओ’ शब्द हिम्मत के साथ मिलकर साहस/ शक्ति/ क्षमता/ ताकत/ योग्यता आदि देने के अर्थ से जुड़ा हुआ है।
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